tag:blogger.com,1999:blog-56876483138986204672024-02-18T19:53:02.568-08:00नमस्कारविविध विषयों पर मुझ जैसे नासमझ की समझVivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.comBlogger129125tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-45892587150435678042022-04-26T20:21:00.001-07:002022-04-26T20:21:09.217-07:00 नरेंद्र मोदी ... दशकों बाद देश को मिला एक अनुकरणीय नेतृत्व <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGANCDb5pDILRCg_9AdPxTMYx1U1NSEcwLUSNbQgqt6r9LomDL9YpfTC6RoG93IxoxwE-4ovWVjUgM3J6pPBBmtBjffYKTGprYnRcY-hMCTAjXFkbWFADseuWxKktGCiOUDP5D-kZvlmeVCx4TwnBToXLXCogscCl5-5VDYnBeMCpIFbMNmaMCDOcP/s739/mahamodi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="415" data-original-width="739" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGANCDb5pDILRCg_9AdPxTMYx1U1NSEcwLUSNbQgqt6r9LomDL9YpfTC6RoG93IxoxwE-4ovWVjUgM3J6pPBBmtBjffYKTGprYnRcY-hMCTAjXFkbWFADseuWxKktGCiOUDP5D-kZvlmeVCx4TwnBToXLXCogscCl5-5VDYnBeMCpIFbMNmaMCDOcP/s320/mahamodi.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">नरेंद्र मोदी ... दशकों बाद देश को मिला एक अनुकरणीय नेतृत्व </span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">कृष्ण मोहन झा की किताब "महानायक मोदी" के बहाने</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">... विवेक रंजन श्रीवास्तव</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">वो महात्मा गांधी थे जिनके एक आव्हान पर लोग बिना स्वयं की परवाह किये आंदोलन में कूद पड़ते थे , या चौरी चौरा जैसे निर्णायक मुकाम तक पहुंचहने के बाद भी सब शांत हो जाता था , प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे जिनके आव्हान पर लोगों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया था . दशकों के बाद देश को फिर एक अनुकरणीय नेता महानायक मोदी जी के रूप में मिला है .</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">युवा पत्रकार श्री कृष्ण मोहन झा इलेक्ट्रानिक व वैचारिक पत्रकारिता का जाना पहचाना नाम है . देश के अनेक बड़े राजनेताओ से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं . उन्होने भारतीय राजनीति में पार्टियों , राज्य व केंद्र के सत्ता परिवर्तन बहुत निकट से देखे और समझे हैं . उनकी लेखनी की लोकप्रियता बताती है कि वे आम जनता की आकांक्षा और उनके मनोभाव पढ़ना वे खूब जानते हैं . श्री झा को उनकी सकारात्मक पत्रकारिता के प्रारम्भ से ही मैं जानता हूं . वे डिजियाना पत्रकारिता समूह के सलाहकार व आई एफ डब्लू जे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं हाल ही उनकी किताब "महानायक मोदी" सरोजनी पब्लिकेशन , नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है . विगत दिनों मुझे उनकी इस पुस्तक के अध्ययन का सुअवसर मिला .इससे पहले भी वे "यशस्वी मोदी" व राजनैतिक परिदृश्यो के विश्लेषण पर आधारित अन्य दो पुस्तकें लिख चुके हैं , जो चर्चित रही हैं . इस पुस्तक के बहाने मोदी के रूप में देश को दशकों बाद मिले इस अनुकरणीय नेता का व्यक्तित्व तथा उनकी कार्य शैली सभी के समझने योग्य है . </span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"> लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जन प्रतिनिधि के नेतृत्व में असाधारण शक्ति संचित होती है . अतः राजनीति में नेतृत्व का महत्व निर्विवाद है . जननायको के किचित भी गलत फैसले समूचे राष्ट्र को गलत राह पर ढ़केल सकते हैं . विगत दशको में भारतीय राजनीति का पराभव देखने मिला . चुने गये नेता व्यक्तिगत स्वार्थों में इस स्तर तक लिप्त और निरंकुश हो गये कि आये दिन घपलों घोटालों की खबरें आने लगीं . नेतृत्व के आचरण में इस अधोपतन के चलते सक्षम बुद्धिजीवी युवा पीढ़ी विदेशों की ओर रुख करने लगी , अधिकांश आम नागरिक देश से पहले खुद का भला तलाशने लगे . इस दुष्कर समय में गुजरात की राजनीती से श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण किया . उन्होने स्व से पहले समाज का मार्ग ही नही दिखलाया बल्कि हर पीढ़ी से सीधा संवाद स्थापित करने का प्रयास करते हुये राष्ट्र प्रथम की विस्मृत भावना को नागरिकों में पुर्जीवित किया . स्वयं अपने आचरण से उन्होने एक अनुकरणीय नेतृत्व की छबि स्थापित करने में सफलता पाई . वे सबको साथ लेकर , नये रास्ते बनाते हुये बढ़ रहे हैं .</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"> मोदी विश्व पटल पर भारत की सशक्त उज्जवल छबि निर्माण में जुटे हुये हैं , उन्होने भगवत गीता , योग , दर्शन को भारत के वैश्विक गुरू के रूप में स्थापित करने हेतु सही तरीके से दुनिया के सम्मुख रखने में सफलता अर्जित की है . जन संवाद के लिये नवीनतम टेक्नालाजी संसाधनो का उपयोग कर उन्होने युवाओ में अपनी गहरी पैठ बनाने में सफलता अर्जित की है . देश और दुनिया में वैश्विक महानायक के रूप में उनका व्यक्तित्व स्थापित हो चला है . ऐसे महानायक की सफलताओ की जितनी विवेचना की जावे कम है , क्योंकि उनके प्रत्येक कदम के पारिस्थितिक विवेचन से पीढ़ीयों का मार्गदर्शन होना तय है . मोदी जी को कोरोना , अफगानिस्तान समस्या , यूक्रेन रूस युद्ध , भारत की गुटनिरपेक्ष नीती के प्रति प्रतिबद्धता बनाये रखने वैश्विक चुनौतियों से जूझने में सफलता मिली है . तो दूसरी ओर उन्होंने पाकिस्तान पोषित आतंक , काश्मीर समस्या , राममंदिर निर्माण जैसी समस्यायें अपने राजनैतिक चातुर्य व सहजता से निपटाई हैं. देश की आजादी के अमृत काल का सकारात्मक सदुपयोग लोगों में राष्ट्रीयता जगाने के अनेकानेक आयोजनो से वे कर रहे हैं . समय समय पर लिखे गये अपने ३४ विवेचनात्मक लेखों के माध्यम से श्री झा ने मोदी जी के महानायक बनने के सफर की विशद , पठनीय , तथा तार्किक रूप से आम पाठक के समझ में आने वाली व्याख्या इस किताब में की है . निश्चित ही यह पुस्तक संदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों द्वारा बारम्बार पढ़ी जावेगी . किताब का मूल्य पाँच सौ रुपये है , 160 पृष्ठ की यह सजिल्द पुस्तक मोदी जी के विभिन्न निर्णयों की विवेचनात्मक व्याख्या करती है . मैं श्री कृष्णमोहन झा को उनकी पैनी दृष्टि , सरल शैली , और महानायक मोदी पर सामयिक कलम चलाने के लिये बधाई देता हूं व इस किताब को खरीदकर पढ़ने की अनुशंसा करता हूं .</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">विवेक रंजन श्रीवास्तव</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">भोपाल </span></p>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-73144217025727192422021-08-17T17:54:00.001-07:002021-08-17T17:54:38.086-07:00खूनी तालिबानी पंजे कट्टरता के<p> कट्टरता के काले पंजे</p><p><br /></p><p>विवेक रंजन श्रीवास्तव</p><p><br /></p><p>कठपुतली की तरह नचाते हैं</p><p>अवाम को </p><p>कट्टरता के काले पंजे</p><p>छीन कर ताकत</p><p>सोचने समझने की </p><p>डाल देते हैं</p><p>दिमाग पर काले पर्दे</p><p>कट्टरता के काले पंजे</p><p><br /></p><p>ओढ़ा देते हैं बुर्के औरतों को,</p><p>कैदखाना बना देते हैं </p><p>घर घर को</p><p>अदृश्य काले पंजे</p><p><br /></p><p>मनमानी व्याख्या कर लेते हैं</p><p>पवित्र किताबों की</p><p>जिंदगी को </p><p>जहन्नुम बना देते हैं</p><p>फासिस्ट क्रूर काले पंजे</p><p><br /></p><p>बंदूक की नोक</p><p>बम और बारूद </p><p>अमानवीय नृशंसता</p><p>तो महज दिखते हैं</p><p>दरअसल कठमुल्ले विचार </p><p>हैं काले पंजे</p><p><br /></p><p>हिटलर के गोरे शरीर में </p><p>छिपे थे ऐसे ही काले पंजे</p><p>तालिबानी ताकत हैं</p><p>ये ही काले पंजे</p><p><br /></p><p>सावधान</p><p>रखना है दिल दिमाग</p><p>हमें कभी कठपुतली </p><p>न बना सकें</p><p>कोई काले या सफेद </p><p>दृश्य या अदृश्य </p><p>प्रत्यक्ष या परोक्ष </p><p>फासिस्ट काले या गोरे पंजे</p>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-52010880847305392712021-06-05T06:50:00.000-07:002021-06-05T06:50:25.203-07:00आत्म साक्षात्कार<p> आत्म साक्षात्कार</p><p>प्रतिबिम्ब ...</p><p>विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" </p><p>बंगला नम्बर ए १ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८</p><p><br /></p><p>हर बार एक नया ही चेहरा कैद करता है कैमरा मेरा ...</p><p>खुद अपने आप को अब तक</p><p>कहाँ जान पाया हूं, </p><p>खुद की खुद में तलाश जारी है</p><p>हर बार एक नया ही रूप कैद करता है कैमरा मेरा</p><p>प्याज के छिलकों की या</p><p>पत्ता गोभी की परतों सा</p><p>वही डी एन ए किंतु</p><p>हर आवरण अलग आकार में ,</p><p>नयी नमी नई चमक लिये हुये</p><p>किसी गिरगिट सा,</p><p>या शायद केलिडेस्कोप के दोबारा कभी</p><p>पिछले से न बनने वाले चित्रों सा </p><p>अक्स है मेरा .</p><p>झील की अथाह जल राशि के किनारे बैठा</p><p>में देखता हूं खुद का</p><p>प्रतिबिम्ब .</p><p>सोचता हूं मिल गया मैं अपने आप को</p><p>पर</p><p>जब तक इस खूबसूरत</p><p>चित्र को पकड़ पाऊं</p><p>एक कंकरी जल में</p><p>पड़ती है</p><p>और मेरा चेहरा बदल जाता है</p><p>अनंत</p><p>उठती गिरती दूर तक</p><p>जाती</p><p>लहरों में गुम हो जाता हूं मैं . </p><p><br /></p><p>कोई बता दो हमारे बारे में हम खुद बताएं भी तो क्या ...</p><p><br /></p><p>जलाभिषेक गागर से बूंद बूंद ...</p><p>बिन्दु रूप परिचय</p><p>१९५९ में मण्डला के एक साहित्यिक परिवार में जन्म .</p><p>माँ ... स्व दयावती श्रीवास्तव ...सेवा निवृत प्राचार्या</p><p>पिता ... प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध ... वरिष्ठ साहित्यकार</p><p>पत्नी ... श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव ... स्वतंत्र लेखिका</p><p>इंजीनियरिंग की पोस्ट ग्रेडुएट शिक्षा के बाद विद्युत मण्डल में शासकीय सेवा . संप्रति जबलपुर मुख्यालय में मुख्य अभियंता के रूप में सेवारत . परमाणु बिजली घर चुटका जिला मण्डला के प्रारंभिक सर्वेक्षण से स्वीकृति , सहित अनेक उल्लेखनीय लघु पन बिजली परियोजनाओ , १३२ व ३३ कि वो उपकेंद्रो , केंद्रीय प्रशिक्षण केंद्र जबलपुर आदि के निर्माण का तकनीकी गौरव . बिजली का बदलता परिदृश्य , जल जंगल जमीन आदि तकनीकी किताबें . हिन्दी में वैज्ञानिक विषयों पर निरंतर लेखन , हि्ंदी ब्लागिंग .</p><p>१९९२ में नई कविताओ की पहली किताब आक्रोश तार सप्तक अर्ध शती समारोह में भोपाल मे विमोचित , इस पुस्तक को दिव्य काव्य अलंकरण मिला ..</p><p>व्यंग्य की किताबें रामभरोसे , कौआ कान ले गया , मेरे प्रिय व्यंग्य , धन्नो बसंती और बसंत , बकवास काम की , जय हो भ्रष्टाचार की ,समस्या का पंजीकरण , खटर पटर व अन्य प्रिंट व किंडल आदि प्लेटफार्म पर .</p><p>मिली भगत , एवं लाकडाउन नाम से सँयुक्त वैश्विक व्यंग्य संग्रह का संपादन .</p><p>व्यंग्य के नवल स्वर , आलोक पौराणिक व्यंग्य का ए टी एम , बता दूं क्या , अब तक 75 , इक्कीसवीं सदी के 131 श्रेष्ठ व्यंग्यकार , 251 श्रेष्ठ व्यंग्यकार , निभा आदि संग्रहो में सहभागिता</p><p>हिन्दोस्तां हमारा , जादू शिक्षा का नाटक संग्रह चर्चित व म. प्र. साहित्य अकादमी से सम्मानित, पुरस्कृत</p><p>पाठक मंच के माध्यम से नियमित पुस्तक समीक्षक</p><p>https://e-abhivyakti.com के साहित्य सम्पादक</p><p>म प्र साहित्य अकादमी ,पाथेय , मंथन ,वर्तिका , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , तुलसी साहित्य अकादमी व अनेक साहित्यिक़ संस्थाओं , सामाजिक लेखन के लिये रेड एण्ड व्हाईट सम्मान से सम्मानित .</p><p>वर्तिका पंजीकृत साहित्यिक सामाजिक संस्था के संयोजक</p><p>टी वी , रेडियो , यू ट्यूब , पत्र पत्रिकाओ में निरंतर प्रकाशन .</p><p>ब्लॉग</p><p>http://vivekkevyang.blogspot.com</p><p>व अन्य ब्लॉग</p><p>संपर्क</p><p>readerswriteback@gmail.com</p><p><br /></p><p>और जानना है , तो पढ़िये ...</p><p>जो जाना खुद के बारे में मम्मी पापा से ...</p><p>कान्हा राष्ट्रीय अभयारण्य के लिये विश्व प्रसिद्ध , गौंड़ , बैगा , आदिवासी बहुल जिले मण्डला में जिला मुख्यालय की बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में साहित्यकार व लोकप्रिय व्याख्याता श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव "विदग्ध" होस्टल वार्डन थे . उनकी पत्नी श्रीमती दयावती श्रीवास्तव भी मण्डला के ही रानी रामगढ़ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता थीं . अपनी कुण्डली में पढ़ा है , भुनसारे प्रातः ५ बजकर २५ मिनट पर , २८.जुलाई.१९५९ को सूर्य रश्मियों के आगमन के साथ ही रिमझिम बरसात के मौसम में इस दम्पति के घर मंडला में विवेक रंजन श्रीवास्तव का जन्म हुआ . मण्डला में तब बिजली आई आई ही थी . घरों में बिजली के नये नये कनेक्शन हुये थे . मतलब बिजली के लट्टू की सुनहरी रोशन रोशनी से अपना जन्मजात नाता है . बिजली थी तो हमारे जन्म पर तांबे की जाली के एरियल और डायोड लैंम्प वाला बुश बैरन रेडियो खरीदा गया था . आज भी बाकायदा चालू हालात में पत्नी ने उसे ड्राइंग रूम में एंटीक पीस के रूप में सहेज रखा है . कुर्सी पर बैठे हुये एक प्यारे से बच्चे की हार्ड बोर्ड माउन्टेड बडी सी ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो , जो घर पर फोटोग्राफर बुलवाकर खिंचवाई गई थी , घर पर है , जिसमें पेंसिल से निक नेम लिखा हुआ है " गुड्डा ". जी हाँ , माँ प्यार से आजीवन मुझे गुड्डा बुलाती रहीं .</p><p>विवेक रंजन अपनी उच्चशिक्षित एक बड़ी बहन तथा दो छोटी बहनो के इकलौते भाई हैं . बचपन से ही मेधावी छात्र के रूप में उन्होने अपनी पहचान बनाई .किशोरावस्था आते आते उन पर माता पिता के साहित्यिक संस्कारो का प्रभाव स्पष्ट दिखने लगा . कक्षा चौथी में जबलपुर के विद्यानगर स्कूल में जब महात्मा गांधी का पात्र अभिनित किया तो "मोहन" के इस रोल में वे ऐसे डूब गये कि मुख्य अतिथि ने उन्हें वहीं तुरंत ५१ रुपयो का नगद पुरस्कार दिया .लिखने की जरूरत नही कि वर्ष १९६८ में ५१ रुपये क्या महत्व रखते थे . शायद तभी विवेक रंजन में नाटककार के बीज बोये जा चुके थे . जो आगे चल आज नाटक लेखक के रूप में मुखरित हुये .</p><p><br /></p><p>अपने होश में ...</p><p>कक्षा छठवीं के विवेक रंजन के लेखक होने के प्रमाण मौजूद हैं , सरायपाली उच्चतर माध्यमिक शाला की शालेय पत्रिका "उन्मेष" में प्रकाशित मेरे लेख की कतरन मौजूद है . कक्षा आठवीं की बोर्ड परीक्षा में मेरिट में स्थान मिला . हाईस्कूल की शिक्षा के लिये ग्रामीण प्रतिभावान छात्रवृत्ति मिली . रायपुर अभियांत्रिकी महाविद्यालय से सिविल इजीनियरिंग में बी ई की परीक्षा आनर्स के साथ उत्तीर्ण की . कालेज की पत्रिका आलोक का लगातार संपादन , आकाशवाणी रायपुर के युववाणी कार्यक्रम में विज्ञान कथाओ की प्रस्तुतियां की . तत्कालीन युववाणी प्रभारी लक्ष्मेंद्र चौपड़ा जी थे . बाद के दिनों में रायपुर , जबलपुर व भोपाल के आकाशवाणी केन्द्रो से भी प्रसारण हुये . तभी से रेडियो रूपक भी लिख रहे हैं .स्मरण है रायपुर आकाशवाणी से १९७८ में युववाणी के पहले प्रसारण के लिये ३० रुपये का चैक प्राप्त हुआ था . पुरानी बातें मन में हुलास भर देतीं है . मेरी परिचर्चायें रायपुर के अखबारों महाकौशल , देशबन्धु और नवभारत आदि में छपा करती थीं , स्व अजीत जोगी तब जिलाधीश रायपुर थे , वे मूलतः मेकेनिकल इंजीनियर थे और उनकी पत्नी श्रीमती रेणु जोगी डाक्टर थीं . मैंने अजीत जोगी जी का साक्षात्कर किया था . बाद में उन्हें अपने होस्टल डे पर अतिथि के रूप में भी बुलाया था . मंच संचालन मैं ही कर रहा था . कालेज की सांस्कृतिक गतिविधियो से जुड़े ही रहता था .इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स के स्टूडेंट चेप्टर व कालेज के फोटोग्राफी क्लब का अध्यक्ष भी रहा . वे दिन थे जब डार्करूम में लाल लाइट में सिल्वर आयोडाइड से फिल्म धोई जाती थी . मुझे फोटोग्राफी में अनेक पुरस्कार भी मिले . उद्यानकी में भी रुचि है . बागवानी का शौक रहा , मेरे बनाये ४० वर्ष पुराने बरगद , पीपल आदि बोनसाई अभी भी मेरे बगीचे में मुझसे बातें करते हैं .</p><p><br /></p><p>इंजीनियर विवेक ...</p><p>बी ई के तुरंत बाद फाउंडेशन इंजीनियरिंग में मौलाना आजाद रीजनल कालेज भोपाल से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की . तुरंत ही १९८१ में मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल में सहायक इंजीनियर के रूप में अपनी सेवायें प्रारंभ की थीं .सर्वे व अनुसंधान विभाग में इस युवा इंजीनियर ने अनेक लघु पन बिजली परियोजनाओ सहित १९८४ में परमाणु बिजलीघर चुटका की प्रारंभिक फिजिबिलिटी तैयार की , उल्लेखनीय है कि अब मण्डला जिले में यह महत्वपूर्ण बिजली परियोजना स्वीकृत हो चुकी है . भीमगढ़ तथा चरगांव जटलापुर लघु पन बिजली परियोजनायें अभी तक लगातार विद्युत उत्पादन कर रही हैं . मेरा मानना है कि शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है , सेवारत रहते हुये मैंने इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट मे डिप्लोमा , ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी से इनर्जी मैनेजर की उपाधियां अर्जित की हैं . अब सेवानिवृति की कगार पर मुख्य अभियंता हूं .</p><p>दो से चार हाथ ...</p><p> विवाह वरिष्ठ कवि स्व वासुदेव प्रसाद खरे की पुत्री स्वतंत्र लेखिका श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव से २२ जनवरी १९८७ को हुआ . जीवन संगीनी ने साहित्य यात्रा को और आगे बढ़ाया . पिता की भूमिका में भी सफल हैं , बच्चे इंजीनियर अनुव्रता एक प्रतिष्ठित मल्टी नेशनल संस्थान में दुबई में मैनेजर हैं , बेटी अनुभा ने लंदन स्कूल आफ इकानामिक्स से ला की पढ़ाई की है तथा वे ला एशोसियेट के रूप में कार्यरत हैं , बेटा अमिताभ भारत सरकार के एक मात्र प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थान , इण्डियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर से पढ़कर , न्यूयार्क यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेज्युएशन के बाद न्यूयार्क में प्रतिष्ठित वैज्ञानिक है .</p><p>देश से बाहर भी ...</p><p>मेरा मानना है कि पर्यटन साहित्य का जनक होता है क्योकि देशाटन से अनुभव संसार समृद्ध होता है . मुझे भारत के शीर्ष जम्मू काश्मीर , हिमालय की बर्फ आच्छादित पर्वत श्रंखला के साथ सिक्किम पूर्वांचल , से कन्या कुमारी के लहराते समुद्र तक , कोलकोता के हावड़ा ब्रिज से मुम्बई के समुद्र सेतु , गोवा के पश्चिम तट तक पर्यटन के अनेक अवसर मिले . श्रीलंका , भूटान , दुबई , अबूधाबी , अमेरिका में न्यूयार्क , वाशिंगटन , नियाग्रा फाल्स तक घूमने का सौभाग्य मिला है . ढ़ेर से चित्र और डायरी नोट्स , रचना रूप में मुखरित होने के लिये मौके की तलाश में हैं .</p><p>गूगल में ढ़ूंढ़ा खुद को ...</p><p>भले मोहल्ले में कोई न जानता हो पर दुनियाभर में अपना नाम सर्च कर लो गूगल पर तो 1 सेकेंड में बहुत सा मिल जाएगा . वर्ष २००५ से ही जब हिन्दी ब्लाग बहुत नया था , हिन्दी में नियमियित ब्लागिंग कर रहा हूं . व्यंग्य , कविता , व तकनीकी विषयो पर मेरे ब्लाग लोकप्रिय हैं . वेबदुनिया जो हिन्दी का सबसे पुराना पोर्टल है उसके सहित अनेक अखबारो , बी बी सी , रेडियो डायचेवेली हिन्दी आदि के सामूहिक ब्लाग्स में भी लिखा . दुनिया की पहली ब्लागजीन "ब्लागर्स पार्क" थी . जिसमें ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री में से चुनिंदा रचनायें पत्रिका के रूप में प्रकाशित की जाती थीं . इस पत्रिका के संपादक मण्डल का मानद सदस्य रहा . हिन्दी ब्लागिंग पर कई कार्यशालायें करके अनेक युवा लेखको को ब्लाग जगत से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है , ज्ञानवाणी से हिन्दी ब्लागिंग पर मेरी वार्ता बहुत सराही गई है . मुझे आर्कुट की याद है . ब्लागस ,फेसबुक और अब ट्वीटर की माइक्रो ब्लागिंग से इंस्टाग्राम , लिंक्डिन सोशल मीडीया कि स्व संपादित दुनियां , फेक ई मेल आई डी का , लाईक , कमेंट , हैकिंग वाला संसार भी मजेदार है . बोलकर , स्केन कर या बिना स्याही के पेन से मोबाईल स्क्रीन पर लिखना टेकसेवी होने के मजे बडे हैं .</p><p>अभिव्यक्ति का माध्यम कलम , कैमरा और कभी वीडीयो भी ...</p><p> सुरभि टीवी सीरियल में मण्डला के जीवाश्मो पर मेरी लघु फिल्म का प्रसारण हुआ . हैलो बहुरंग में मेरी निर्मित लघु फिल्मो के लिये युवा फिल्मकार का सम्मान भी मिला . किताबें जल जंगल और जमीन , बिजली का बदलता परिदृश्य , कान्हा अभयारण्य परिचायिका , "रानी दुर्गावती" व "मण्डला परिचय" पर तैयार फोल्डर पाठको में पसंद किये गये . जिला पुरातत्व समिति मण्डला में सदस्य रहे . इंजीनियर होते हुये साहित्यकार के रूप में जटिल वैज्ञानिक विषयो पर सहज जन भाषा हिन्दी में नियमित अपनी कलम चलाई है . म. प्र. साहित्य अकादमी की पाठक मंच योजना के मण्डला व जबलपुर शहर में लम्बे समय तक सक्रिय संयोजक रहा . मण्डला में हिन्दी साहित्य समिति मण्डला , साहित्य विकास परिषद एवं तुलसी मानस परिषद के सचिव के रूप में निरंतर सक्रिय रहा . अभियान के साथ कई राष्ट्रीय स्तर के सफल आयोजन किये . </p><p> रचना प्रक्रिया ... मन से कवि , स्वभाव से व्यंग्यकार </p><p>मूलतः व्यंग्य , लेख , विज्ञान विषयक लेख , बाल नाटक ,विज्ञान कथा , कविता , समीक्षा आदि मेरी अभिव्यक्ति की प्रमुख विधायें हैं . मैंने नाटक संवाद शैली में ही लिखे हैं . विज्ञान कथायें वर्णनात्मक शैली की हैं . व्यंग्य की कुछ रचनायें मिश्रित तरीके से अभिव्यक्त हुई हैं . व्यंग्य रचनायें प्रतीको और संकेतो की मांग करती हैं . मैं सरलतम भाषा , छोटे वाक्य विन्यास , का प्रयोग करता हूं . उद्देश्य यह होता है कि बात पाठक तक आसानी से पहुंच सके . जिस विषय पर लिखने का मेरा मन बनता है , उसे मन में वैचारिक स्तर पर खूब गूंथता हूं , यह भी पूर्वानुमान लगाता हूं कि वह रचना कितनी पसंद की जावेगी . मेरी रचनायें कविता या कहानी भी नितांत कपोल कल्पना नही होती .मेरा मानना है कि कल्पना की कोई प्रासंगिकता वर्तमान के संदर्भ में अवश्य ही होनी चाहिये . मेरी अनेक रचनाओ में धार्मिक पौराणिक प्रसंगो का चित्रण मैंने वर्तमान संदर्भो में किया है . रचना को मन में परिपक्व होने देता हूं , सामान्यतः अकेले घूमते हुये , अधनींद में , सुबह बिस्तर पर , वैचारिक स्तर पर सारी रचना का ताना बाना बन जाता है फिर जब मूड बनता है तो सीधे कम्प्यूटर पर लिख डालता हूं . आजकल कागज पर हाथ से मेरा लिखा हुआ कम ही है . मेरा मानना है कि किसी भी विधा का अंतिम ध्येय उसकी उपयोगिता होनी चाहिये .यह बिल्कुल सही है कि रचना आत्म सुख देती है , किन्तु उसमें समाज कल्याण अंतर्निहित होना ही चाहिये अन्यथा रचना निरर्थक रह जाती है . समाज की कुरीतियो , विसंगतियो पर प्रहार करने तथा पाठको का ज्ञान वर्धन व उन्हें सोचने के लिये ही वैचारिक सामग्री देना मेरा ध्येय होता है .मेरी रचना का विस्तार कई बार अमिधा में सीधे सीधे जानकारी देकर होता है , तो कई बार प्रतीक रूप से पात्रो का चयन करता हूं . कुछ बाल नाटको में मैने नदी ,पहाड़ ,वृक्षो को बोलता हुआ भी रचा है . मुझे लगता है अभिव्यक्ति की विधा तथा विषय के अनुरूप इस तरह का चयन कई बार आवश्यक होता है , जब जड़ पात्रो को चेतन स्वरूप में वर्णित करना पड़ता है . रचना की संप्रेषणीयता संवाद शैली से बेहतर बन जाती है इसलिये यह प्रक्रिया भी अनेक बार अपनानी पड़ती है .मैं समझता हूं कि कोई भी रचना जितनी छोटी हो उतनी बेहतर होती है ,न्यूनतम शब्दों में अधिकतम वैचारिक विस्तार दे सकना रचना की सफलता माना जा सकता है . विषय का परिचय , विस्तार और उपसंहार ऐसा किया जाना चाहिये कि प्रवाहमान भाषा में सरल शब्दो में पाठक उसे समझ सकें .नन्हें पाठको के लिये लघु रचना , किशोर और युवा पाठको के लिये किंचित विस्तार पूर्वक तथ्यात्मक तर्को के माध्यम से रचना जरूरी होती है .</p><p>शीर्षक जो प्रवेश द्वार होते हैं रचना का ..</p><p>मेरी अधिकांश रचनाओ के शीर्षक रचना पूरी हो जाने के बाद ही चुने गये हैं . एक ही रचना के कई शीर्षक अच्छे लगते हैं . कभी रचना के ही किसी वाक्य के हिस्से को शीर्षक बना देता हूं . शीर्षक ऐसा होना जरूरी लगता है जिसमें रचना की पूरी ध्वनि आती हो .</p><p>व्यंग्य लेखन के लिए विषय...</p><p> मैं सायास बहुत कम लिखता हूं , कोई विषय भीतर ही भीतर पकता रहता है और कभी सुबह सबेरे अभिव्यक्त हो लेता है तो मन को सुकून मिल जाता है . विषय और व्यंग्य दोनो एक दूसरे के अनुपूरक हैं , विषय उद्देश्य है और व्यंग्य माध्यम . मुझे लगता है कि कोई रचना कभी भी फुल एण्ड फाइनल परफेक्ट हो ही नही सकती , खुद के लिखे को जब भी दोबारा पढ़ो कुछ न कुछ तो सुधार हो ही जाता है . चित्र का कैनवास बड़ा होना चाहिये , व्यक्ति गत मतभेद के छोटे से टुकड़े पर क्या कालिख पोतनी . व्यंग्य की ताकत का इस्तमाल बड़ा होना चाहिये .</p><p>शब्दो के धागे कितने लम्बे हों रचना के चरखे पर ...</p><p>मैं लघुकथा या बाल कथा ५०० शब्दों तक समेट लेता हूं , वहीं आम पाठको के लिये विस्तार से २५०० शब्दों में भी लिखता हूं . संपादक की मांग के अनुरूप भी रचना का विस्तार जरूरी होता है . व्यंग्य की अभिव्यक्ति क्षमता असीम है पर एक व्यंग्य लेख की शब्द सीमा १००० से १५०० शब्द पर्याप्त लगती है . कम्प्यूटर पर लिखने का लाभ यह मिलता है कि एक क्लिक पर पता चल जाता है कि कितने शब्द लिखे जा चुके है . कई बार तो पाठको की या संपादक की मांग पर वांछित विषय पर वांछित शब्द सीमा में लिखना पड़ा है . मैंने पाया है कि अनेक बार अखबार की खबरों को पढ़ते हुये या रेडियो सुनते हुये कथानक का मूल विचार मन में कौंधता है , जो एक नई रचना बुन देता है .</p><p>पठन पाठन और लेखन , समीक्षा , संपादन ...</p><p>व्यंग्य सर्वाधिक प्रिय है . नियमित पठन पाठन करता हूं , हर सप्ताह किसी पढ़ी गई किताब की परिचयात्मक संक्षिप्त चर्चा भी कर लेता हूं . नाटक के लिये मुझे साहित्य अकादमी से पुरस्कार मिल चुका है . बाल नाटको की पुस्तके आ गई हैं . इस सबके साथ ही बाल विज्ञान कथायें लिखी हैं . कविता तो एक प्रिय विधा है ही .पुस्तक मेलो में शायद अधिकाधिक बिकने वाला साहित्य आज बाल साहित्य ही है . बच्चो में अच्छे संस्कार देना हर माता पिता की इच्छा होती है , जो भी माता पिता समर्थ होते हैं , वे सहज ही बाल साहित्य की किताबें बच्चो के लिये खरीद देते हैं . यह और बात है कि बच्चे अपने पाठ्यक्रम की पुस्तको में इतना अधिक व्यस्त हैं कि उन्हें इतर साहित्य के लिये समय ही नही मिल पा रहा .आज अखबारो के साहित्य परिशिष्ट ही आम पाठक की साहित्य की भूख मिटा रहे हैं .पत्रिकाओ की प्रसार संख्या बहुत कम हुई है .मैं साप्ताहिक रूप से किसी किताब की समीक्षा लंबे समय से कर रहा हूं . चयनित ६५ समीक्षाओ की मेरी एक किताब बातें किताबों की किंडल पर सुलभ है , इसका प्रिंट वर्शन आने को प्रेस में है . विभागीय पत्रिका विद्युत ब्रम्होति का लंबे समय तक संपादन किया , मेरे संपादन में इसे पुरस्कार भी मिला अन्य कई पत्रिकाओ का संपादन अतिथि संपादक के रूप में भी जब तब किया . वेब पोर्टल नई पीढ़ी को साहित्य सुलभ कर रहे हैं . किन्तु मोबाईल पर पढ़ना सीमित होता है , हार्ड कापी में किताब पढ़ने का आनन्द ही अलग होता है . शासन को साहित्य की खरीदी करके पुस्तकालयो को समृद्ध करने की जरूरत है . साहित्य मुझे विरासत में मिला है .मेरे पूज्य पिताजी प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध हिन्दी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हैं . माँ की भी किताबें प्रकाशित हैं , पत्नी कल्पना स्वतंत्र लेखिका हैं , वे मेरी हर रचना की प्रथम श्रोता होती हैं . उनकी प्रेरणा से मेरा उत्साह निरंतर बना रहता है . मेरी किशोरावस्था मण्डला में मां नर्मदा के तट पर , मेकल पर्वतो के सुरम्य जंगलो के परिवेश में बीती है . मुझे याद है हाईस्कूल पूरा करते करते मैंने जिला पुस्तकालय मण्डला , व श्रीराम अग्रवाल पुस्तकालय मण्डला की लगभग सारी साहित्यिक किताबें पढ़ डाली थी . तरन्नुम में पढ़ी जाती श्रंगार की कवितायें सुनने देर रात तक कवि सम्मेलनो और मुशायरों में बैठा रहा हूं .</p><p>साहित्य विचार देता है ...</p><p> साहित्य , अपनी भूमिका स्वयं निर्धारित करता रहा है . कोई भी काम विचार के बिना नही होता . . कभी पत्रिकाओ का बोलबाला था , अब ई प्लेटफार्म बढ़ गये हैं , जिनने पत्रिकाओ को स्थानापन्न कर दिया है . ई बुक्स आ रही हैं , पर आज भी प्रकाशित किताबो और साहित्य का महत्व निर्विवाद है . साहित्य हमेशा से राजाश्रय की चाह रखता है , क्योंकि विचार अमूल्य जरूर होते हैं , पर उसका मूल्य कोई चुकाना नही चाहता . सरकार को साहित्यिक विस्तार की गतिविधियो को और बढ़ाने की जरूरत है .मैं देखता हूं , नई पीढ़ी छपना तो चाहती है , पर स्वयं पढ़ना नही चाहती . इससे वैचारिक परिपक्वता का अभाव दिखता है . जब १०० लेख पढ़ें तब एक लिखें , देखिये फिर कैसे आप हाथों हाथ लिये जाते हैं . गूगल त्वरित जानकारी तो दे सकता है , ज्ञान नही . ज्ञान मौलिक होता है , नई पीढ़ी में मैं इसी मौलिकता को देखना चाहता हूं . समय के साथ पुराने रचनाकारो को नये लेखक खो कर स्थानापन्न कर देते हैं , जीवन निरंतरता का ही दूसरा नाम है . अपनी रचनाओ के जरिये ही कबीर , परसाई , शरद जोशी , त्यागी जी आज भी जिंदा हैं तो ऐसा मौलिक मूल्यवान शाश्वत लेखन आज भी हो सकता है , यह हमारे लिये खुला चैलेंज है . साहित्य के माध्यम से हम सब एक इंद्रधनुषी वैश्विक बेहतर समय रच सकें मेरी यही कामना है .</p><p>समकालीन व्यंग्य पर ...</p><p> मैने बचपन में एक कविता लिखी थी जो संभवतः धर्मयुग में बाल स्तंभ में छपी भी थी " बिल्ली बोली म्यांऊ म्यांऊ , मुझको भूख लगी है नानी दे दो दूध मलाई खाऊं,.... अब तो जिसका बहुमत है चलता है उसका ही शासन . चूहे राज कर रहे हैं ... बिल्ली के पास महज एक वोट है , चूहे संख्याबल में ज्यादा हैं . व्यंग्य ही क्या देश , दुनियां , समाज हर जगह जो मूल्यों में पतन दृष्टिगोचर हो रहा है उसका कारण यही है कि बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर रही है .मानवीय प्रवृत्तियां स्वार्थ के चलते रूप बदल बदल कर व्याप्त हैं , भारत ही क्या विश्व में और यही विसंगतियां व्यंग्य का टार्गेट हैं . व्यंग्य के टार्गेट्स पूरे भारत में कोरोना की तरह पसरे हुए हैं जो म्यूटेशन करके तरह तरह के रूपों में हमें परेशान कर रहे है .राजनीती जीवन के हर क्षेत्र में हावी है . हम स्वयं चार नमूनो में से किसी को स्वयं अपने ऊपर हुक्म गांठने के लिये चुनने की व्यवस्था के हिस्से हैं . असीमित अधिकारो से राजनेता का बौराना अवश्य संभावी है , यहीं विसंगतियो का जन्म होता , और व्यंग्य का प्रतिवाद भी उपजने को विवश होता है . अखबार जो इन दिनो संपादकीय पन्नो पर व्यंग्य के पोषक बने हुये हैं , समसामयिक राजनैतिक व्यंग्य को तरजीह देते हैं . और देखादेखी व्यंग्यकार राजनीतिक व्यंग्य की ओर आकर्षित होता है . मैं राजनैतिक व्यंग्यो में भी मर्यादा , इशारो और सीधे नाम न लिये जाने का पक्षधर हूं .</p><p>व्यंग्य नाटक ...</p><p> नुक्कड़ नाटक इन दिनो लोकप्रिय विधा है . और व्यंग्य नाटको की व्यापक संभावना इसी क्षेत्र में अधिक दिखती है . लेखको का नाटक लेखन के प्रति लगाव दर्शको के प्रतिसाद पर निर्भर होता है . जबलपुर में हमारे विद्युत मण्डल परिसर में भव्य तरंग प्रेक्षागृह है , जिसमें प्रति वर्ष न्यूनतम २ राष्ट्रीय स्तर के नाट्य समारोह होते हैं , सीजन टिकिट मिलना कठिन होता है . बंगाल , महाराष्ट्र , दिल्ली में भी नाटक के प्रति चेतना अपेक्षाकृत अधिक है . यह जरूर है कि यह क्षेत्र उपेक्षित है , पर व्यापक संभावनायें भी हैं .हिन्दी नाटको के क्षेत्र में बहुत काम होना चाहिये . नाटक प्रभावी दृश्य श्रव्य माध्यम है . पिताश्री बताते हैं कि जब वे छोटे थे तो नाटक मंडलियां हुआ करती थीं जो सरकस की तरह शहरों में घूम घूम कर नाटक , प्रहसन प्रस्तुत किया करती थीं . जल नाद मेरा एक लम्बा नाटक है. जो जल के महत्व पौराणिक मिथको पर केंद्रित है .</p><p>अविश्वसनीय समय ...</p><p>कौआ कान ले गया मेरा संग्रह था . जिसकी भूमिका वरिष्ठ व्यंग्य पुरोधा हरि जोशी जी ने लिखी थी . उसमें कौवा कान ले गया शीर्षक व्यंग्य के आधार पर ही संग्रह का नाम रखा था .अफवाहो के बाजार को दंगाई हमेशा से अपने हित में बदलते रहे हैं , अब तकनीक ने यह आसान कर दिया है , पर अब तकनीक ही उन्हें बेनकाब करने के काम भी आ रही है . व्यंग्यकार की सब सुनने लगें तो फिर बात ही क्या है , पर फिर भी हमें आशा वान बने रहकर सा हित लेखन करते रहना होगा . निराश होकर कलम डालना हल नही है . लोगों को उनके मफलर में छिपे कान का अहसास करवाने के लिये पुरजोर लेखन जारी रहेगा . अजब समय है आज जब तक एक खबर पर भरोसा करो प्रति पक्ष से उसका सप्रमाण खंडन आ जाता है . अतः आज अपने विवेक को जागृत रखना बहुत जरूरी है . मेरी किताब "समस्या का समाधान व अन्य व्यंग्य " की भूमिका डा ज्ञान चतुर्वेदी जी ने लिखी , उन्होने लिखा है कि व्यंग्यकार को अपनी विधा को गंभीरता से बरतना चाहिये , मेरी रचनाओ में उन्हें वह गंभीरता मिली , मैं इस से मुग्ध हूं .</p><p>हास्य और व्यंग्य ...</p><p>यह व्यंग्यकार की व्यक्तिगत रुचि , विषय का चयन , और लेखन के उद्देश्य पर निर्भर है . हास्य प्रधान रचना करना भी सबके बस की बात नही होती . कई तो अमिधा से ही नही निकल पाते , व्यंजना और लक्षणा का समुचित उपयोग ही व्यंग्य कौशल है . करुणा व्यंग्य को हथियार बना कर प्रहार करने हेतु प्रेरित करती ही है .हर रचनाकार पहले कवि ही होता है , प्रत्यक्ष न भी सही , भावना से तो कवि हुये बिना विसंगतियां नजर ही नही आती . मेरा पहला कविता संग्रह १९९२ में आक्रोश आया था , जो तारसप्तक अर्धशती समारोह में १९९२ में विमोचित हुआ था .आज भी पुरानी फिल्में देखते हुये मेरे आंसू निकल आते हैं , मतलब मैं तो शतप्रतिशत कवि हुआ . ये और बात है कि जब मैं व्यंग्यकार होता हूं तो शत प्रतिशत व्यंग्यकार ही होता हूं .</p><p>व्यंग्य विधा पर प्रश्न चिन्ह ...</p><p> मेरी मूल धारा में व्यंग्य १९८१ से है .व्यंग्य के वर्तमान परिदृश्य पर दूरदर्शन भोपाल में एक चर्चा में मैंने तर्क सहित स्थापित किया था कि व्यंग्य अब विधा के रूप में सुस्थापित है . किसी भी विधा में व्यंग्य का प्रयोग उस विधा को और भी मुखर , व अभिव्यक्ति हेतु सहज बना देता है . बहस तो हर विधा को लेकर की जा सकती है , ललित निबंध को ही ले लीजीये , जिसे विद्वान स्वतंत्र विधा नही मानते थे , यह हम व्यंग्यकारो का दायित्व है कि हम इतना अच्छा व भरपूर लिखें कि आलोचक स्वीकारें कि व्यंग्य उनकी समझ में स्वतंत्र विधा है .व्यंग्य लेखन में क्या नही होना चाहिये यह सवाल भी किया जाता है , सीधा सा उत्तर है कि व्यक्तिगत कटाक्ष नही होना चाहिये , इसकी अपेक्षा व्यक्ति की गलत प्रवृति पर मर्यादित अपरोक्ष प्रहार व्यंग्य का विषय बनाया जा सकता है . व्यंग्य में सकारात्मकता को समर्थन की संभावना ढ़ूंढ़ना जरूरी लगता है . जैसे लाकडाउन में सोनू सूद के द्वारा किये गये जन हितैषी कार्यो के समर्थन में प्रयोगधर्मी व्यंग्य लेख हो सकता है .</p><p>व्यंग्य में नये संभावना सोपान ...</p><p>आवश्यकता है कि व्यंग्य में गुणवत्ता आधार बने .नवाचार हो . मेरे एक व्यंग्य का हिस्सा है जिसमें मैंने लिखा है कि जल्दी ही साफ्टवेयर से व्यंग्य लिखे जायेंगे . यह बिल्कुल संभव भी है . १९८६ के आस पास मैने लिखा था " ऐसे तय करेगा शादियां कम्प्यूटर " आज हम देख रहे हैं कि ढ़ेरो मेट्रोमोनियल साइट्स सफलता से काम कर रही हैं . अपनी सेवानिवृति के बाद आप सब के सहयोग से मेरा मन है कि साफ्टवेयर जनित व्यंग्य पर कुछ ठोस काम कर सकूं . आप विषय डालें ,शब्द सीमा डालें लेखकीय भावना शून्य हो सकता है , पर कम्प्यूटर जनित व्यंग्य तो बन सकता है .व्यंग्य के मानकों में अपरोक्ष प्रहार , हास्य , करुणा , पंच , भाषा , शैली , विषय प्रवर्तन , उद्देश्य , निचोड़ , बहुत कुछ हो सकता है जिस पर बढ़ियां व्यंग्य की स्केलिंग की जा सकती है । मन्तव्य यह कि मजा भी आये , शिक्षा भी मिले , जिस पर प्रहार हो वह तिलमिलाए भी तो बढिया व्यंग्य कहा जा सकता है .</p><p>लांघेगा कोई स्थापित ऊंचाईयां ...</p><p>एक नही अनेक अपनी अपनी तरह से व्यंग्यार्थी बने हुये हैं , पुस्तकें आ रही हैं , पत्रिकायें आ रही हैं , लिखा जा रहा है , पढ़ा जा रहा है शोध हो रहे हैं , नये माध्यमो की पहुंच वैश्विक है , परसाई जी की त्वरित पहुंच वैसी नही थी जैसी आज संसाधनो की मदद से हमारी है . प्रायः बातें होती हैं कि परसाई या शरद जोशी की ऊंचाई तक आज कोई पहुंच ही नही सकता . मैं सोचता हूं ऐसा क्यो मानना कि कोई परसाई जी तक नही पहुंच सकता , जिस दिन कोई वह ऊंचाई छू लेगा परसाई जी की आत्मा को ही सर्वाधिक सुखानुभुति होगी .</p><p>ज्यादा लिख डाला देर रात हो रही है , अब बस खुद से शेष बातें फिर कभी .</p><p>विवेक रंजन श्रीवास्तव</p><p>ए १ , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर , ४८२००८</p>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-22750793031293073032021-03-21T21:15:00.003-07:002021-03-21T21:15:36.049-07:00बाढ़ से बचाव के लिये नदियां गहरी की जावें <p> बाढ़ से बचाव के लिये नदियां गहरी की जावें <br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र</p><p> मुख्य अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनी<br />फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स<br />A १ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८<br />फोन 7000375798<br /><br /> पानी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है . सारी सभ्यतायें नैसर्गिक<span> </span><span class="il">जल</span><span> </span>स्रोतो के तटो पर ही विकसित हुई हैं . बढ़ती आबादी के दबाव में , तथा ओद्योगिकीकरण से पानी की मांग बढ़ती ही जा रही है . इसलिये भू<span class="il">जल</span><span> </span>का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और परिणाम स्वरूप जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है . नदियो पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाये गये हैं . बांधो की ऊंचाई को लेकर अनेक जन आंदोलन हमने देखे हैं . बांधो के दुष्परिणाम भी हुये , जंगल डूब में आते चले गये और गांवो का विस्थापन हुआ . बढ़ती पानी की मांग के चलते<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयों के बंड रेजिंग के प्रोजेक्ट जब तब बनाये जाते हैं .<br />रहवासी क्षेत्रो के अंधाधुन्ध सीमेंटीकरण , पालीथिन के व्यापक उपयोग तथा कचरे के समुचित डिस्पो<span class="il">जल</span><span> </span>के अभाव में , हर साल तेज बारिश के समय या बादल फटने की प्राकृतिक घटनाओ से शहर , सड़कें बस्तियां लगातार डूब में आने की घटनायें बढ़ी हैं . विगत वर्षो में चेन्नई , केरल की बाढ़ हम भूले भी न थे कि इस साल पटना व अन्य तटीय नगरो में गंगा जी घुस आई . मध्यप्रदेश के गांधी सागर बांध का पावर हाउस समय रहते बांध के पानी की निकासी के अभाव में डूब गया .<br />बाढ़ की इन समस्याओ के तकनीकी समाधान क्या हैं . नदियो को जोड़ने के प्रोजेक्टस अब तक मैदानी हकीकत नही बन पाये हैं . चूंकि उनमें नहरें बनाकर बेसिन चेंज करने होंगे , पहाड़ो की कटिंग , सुरंगे बनानी पड़ेंगी , ये सारे प्रोजेक्टस् बेहद खर्चीले हैं , और फिलहाल सरकारो के पास इतनी अकूत राशि नही है . फिर बाढ़ की त्रासदी के इंजीनियरिंग समाधान क्या हो सकते हैं ?<br />अब समय आ गया है कि<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयो ,वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जावे .यांत्रिक सुविधाओ व तकनीकी रूप से विगत दो दशको में हम इतने संपन्न हो चुके हैं कि समुद्र की तलहटी पर भी उत्खनन के काम हो रहे हैं . समुद्र पर पुल तक बनाये जा रहे हैं बि<span class="il">जल</span>ी और आप्टिकल सिग्नल केबल लाइनें बिछाई जा रही है . तालाबो ,<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयो की सफाई के लिये जहाजो पर माउंटेड ड्रिलिंग , एक्सकेवेटर , मडपम्पिंग मशीने उपलब्ध हैं . कई विशेषज्ञ कम्पनियां इस क्षेत्र में काम करने की क्षमता सम्पन्न हैं .मूलतः इस तरह के कार्य हेतु किसी जहाज या बड़ी नाव , स्टीमर पर एक फ्रेम माउंट किया जाता है जिसमें मथानी की तरह का बड़ा रिग उपकरण लगाया जाता है , जो<span> </span><span class="il">जल</span>ाशय<br />की तलहटी तक पहुंच कर मिट्टी को मथकर खोदता है , फिर उसे मड पम्प के जरिये<span> </span><span class="il">जल</span>ाशय से बाहर फेंका जाता है . नदियो के ग्रीष्म काल में सूख जाने पर तो यह काम सरलता से जेसीबी मशीनो से ही किया जा सकता है . नदी और बड़े नालो मे भी नदी की ही चौड़ाई तथा लगभग एक किलोमीटर लम्बाई में चम्मच के आकार की लगभग दस से बीस मीटर की गहराई में खुदाई करके रिजरवायर बनाये जा<br />सकते हैं . इन वाटर बाडीज में नदी के बहाव का पानी भर जायेगा , उपरी सतह से नदी का प्रवाह भी बना रहेगा जिससे पानी का आक्सीजन कंटेंट पर्याप्त रहेगा . २ से ४ वर्षो में इन रिजरवायर में धीरे धीरे सिल्ट जमा होगी जिसे इस अंतराल पर ड्रोजर के द्वारा साफ करना होगा . नदी के क्षेत्रफल में ही इस तरह तैयार<span> </span><span class="il">जल</span>ाशय का विस्तार होने से कोई भी अतिरिक्त डूब क्षेत्र जैसी समस्या नही होगी .<span> </span><span class="il">जल</span>ाशय के पानी को पम्प करके यथा आवश्यकता उपयोग किया जाता रहेगा .<br /> अब जरूरी है कि अभियान चलाकर बांधो में जमा सिल्ट ही न निकाली जाये वरन जियालाजिकल एक्सपर्टस की सलाह के अनुरूप बांधो को गहरा करके उनकी<span> </span><span class="il">जल</span><span> </span><span class="il">संग्रहण</span><span> </span>क्षमता बढ़ाई जाने के लिये हर स्तर पर प्रयास किये जायें . शहरो के किनारे से होकर गुजरने वाली नदियो में ग्रीष्म काल में<span> </span><span class="il">जल</span><span> </span>धारा सूख जाती है , हाल ही पवित्र क्षिप्रा के तट पर संपन्न उज्जैन के सिंहस्थ के लिये क्षिप्रा में नर्मदा नदी का पानी पम्प करके डालना पड़ा था . यदि क्षिप्रा की तली को गहरा करके<span> </span><span class="il">जल</span>ाशय बना दिया जावे तो उसका पानी स्वतः ही नदी में बारहो माह संग्रहित रहा आवेगा .इस विधि से बरसात के दिनो में बाढ़ की समस्या से भी किसी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है . इतना ही नही गिरते हुये भू<span> </span><span class="il">जल</span><span> </span>स्तर पर भी नियंत्रण हो सकता है क्योकि गहराई में पानी<span> </span><span class="il">संग्रहण</span><span> </span>से जमीन रिचार्ज होगी , साथ ही जब नदी में ही पानी उपलब्ध होगा तो लोग ट्यूब वेल का इस्तेमाल भी कम करेंगे . इस तरह दोहरे स्तर पर भू<span class="il">जल</span><span> </span>में वृद्धि होगी . नदियो व अन्य वाटर बाडीज के गहरी करण से जो मिट्टी , व अन्य सामग्री बाहर आयेगी उसका उपयोग भी भवन निर्माण , सड़क निर्माण तथा अन्य इंफ्रा स्ट्रक्चर डेवलेपमेंट में किया जा सकेगा . वर्तमान में इसके लिये पहाड़ खोदे जा रहे हैं जिससे पर्यावरण को व्यापक स्थाई नुकसान हो रहा है , क्योकि पहाड़ियो की खुदाई करके पत्थर व मुरम तो प्राप्त हो रही है पर इन पर लगे वृक्षो का विनाश हो रहा है , एवं पहाड़ियो के खत्म होते जाने से स्थानीय बादलो से होने वाली वर्षा भी<br />प्रभावित हो रही है .<br /> नदियो की तलहटी की खुदाई से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि इन नदियो के भीतर छिपी खनिज संपदा का अनावरण सहज ही हो सकेगा . छत्तीसगढ़ में महानदी में स्वर्ण कण मिलते हैं ,तो कावेरी के थले में प्राकृतिक गैस , इस तरह के अनेक संभावना वाले क्षेत्रो में विषेश उत्खनन भी करवाया जा सकता है .<br /> पुरातात्विक महत्व के अनेक परिणाम भी हमें नदियो तथा<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयो के गहरे उत्खनन से मिल सकते हैं , क्योकि भारतीय संस्कृति में आज भी अनेक आयोजनो के अवशेष नदियो में विसर्जित कर देने की परम्परा हम पाले हुये हैं . नदियो के पुलो से गुजरते हुये जाने कितने ही सिक्के नदी में डाले<br />जाने की आस्था जन मानस में देखने को मिलती है . निश्चित ही सदियो की बाढ़ में अपने साथ नदियां जो कुछ बहाकर ले आई होंगी उस इतिहास को अनावृत करने में नदियो के गहरी करण से बड़ा योगदान मिलेगा .<br /> पन बि<span class="il">जल</span>ी बनाने के लिये अवश्य ऊँचे बांधो की जरूरत बनी रहेगी , पर उसमें भी रिवर्सिबल रिजरवायर , पम्प टरबाईन टेक्नीक से पीकिंग अवर विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देकर गहरे<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयो के पानी का उपयोग किया जा सकता है .<br /> मेरे इस आमूल मौलिक विचार पर भूवैज्ञानिक , राजनेता , नगर व ग्राम स्थानीय प्रशासन , केद्र व राज्य सरकारो को तुरंत कार्य करने की जरुरत है , जिससे महाराष्ट्र जैसे सूखे से देश बच सके कि हमें पानी कीट्रेने न चलानी पड़े , बल्कि बरसात में हर क्षेत्र की नदियो में बाढ़ की तबाही मचाता जो पानी व्यर्थ बह जाता है तथा साथ में मिट्टी बहा ले जाता है वह नगर नगर में नदी के क्षेत्रफल के विस्तार में ही गहराई में साल भर संग्रहित रह सके और इन प्राकृतिक<span> </span><span class="il">जल</span>ाशयो से उस क्षेत्र की<span> </span><span class="il">जल</span><span> </span>आपूर्ति वर्ष भर हो सके.</p><div class="adL"><br style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-style: normal; font-variant-caps: normal; font-variant-ligatures: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: start; text-decoration-color: initial; text-decoration-style: initial; text-decoration-thickness: initial; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;" /><br /></div>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-22747319148943909152020-12-16T22:40:00.002-08:002020-12-16T22:46:11.712-08:00पुस्तक चर्चा , तिष्यरक्षिता<p> </p><div class="mail-message expanded" id="m#msg-a:r2780376773476189155" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAUObNrsGoAfP4LaVvoezCrXBbsqo1idHr4ScuWgFKhnpng7RYv5xYG9CzOdSKMlTr-OuYQaWCSFyTgCK7svt1ALSzASmJxynoT3_Pe1BhWEjGHvEWGxLChw696kaMN55GBwWRZfqWvA0/s2048/20201217_104839.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1536" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAUObNrsGoAfP4LaVvoezCrXBbsqo1idHr4ScuWgFKhnpng7RYv5xYG9CzOdSKMlTr-OuYQaWCSFyTgCK7svt1ALSzASmJxynoT3_Pe1BhWEjGHvEWGxLChw696kaMN55GBwWRZfqWvA0/w99-h200/20201217_104839.jpg" width="99" /></a></div><br /><div class="mail-message-header spacer" style="height: 89px;"></div><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images" style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; user-select: auto; width: 380.19px;"><div class="clear"><div dir="auto"><div dir="ltr">पुस्तक चर्चा<br />तिष्यरक्षिता<br />खण्ड काव्य<br />कवि डा संजीव कुमार<br />पृष्ठ १३२ , मूल्य २०० रु<br />IASBN 9789389856859<br />वर्ष २०२०<br />इंडिया नेटबुक्स , नोयडा<br />चर्चाकार ..विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज ,<br />नयागांव ,जबलपुर ४८२००८<br />डा संजीव कुमार के नव प्रकाशित खण्ड काव्य तिष्यरक्षिता को समझने के लिये हमें तिष्यरक्षिता की कथा की किंचित पृष्ठभूमि की जानकारी जरूरी है . इसके लिये हमें काल्पनिक रूप से अवचेतन में स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय में उतारना होगा . अर्थात 304 बी सी ई से 232 बी सी ई की कालावधि , आज से कोई 2300 वर्षो पहले . तब के देश , काल , परिवेश , सामाजिक परिस्थितियो की समझ तिष्यरक्षिता के व्यवहार की नैतिकता व कथा के ताने बाने की किंचित जानकारी लेखन के उद्देश्य व काव्य के साहित्यिक आनंद हेतु आवश्यक है . <br />ऐतिहासिक पात्रो पर केंद्रित अनेक रचनायें हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं . तिष्यरक्षिता , भारतीय मौर्य राजवंश के महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक की पांचवी पत्नी थी . जो मूलतः सम्राट की ही चौथी पत्नी असन्ध मित्रा की परिचारिका थी . उसके सौंदर्य से प्रभावित होकर अशोक ने आयु में बड़ा अंतर होते हुये भी उससे विवाह किया था . पाली साहित्य में उल्लेख मिलता है कि तिष्यरक्षिता बौद्ध धर्म की समर्थक नहीं थी . वह स्वभाव से अत्यंत कामातुर थी .<br />अशोक की तीसरी पत्नी पद्मावती का पुत्र कुणाल था . जिसकी आँखें बहुत सुंदर थीं . सम्राट अशोक ने अघोषित रूप से कुणाल को अपना उत्तराधिकारी मान लिया था . कुणाल तिष्यरक्षिता का समवयस्क था . उसकी आंखो पर मुग्ध होकर उसने उससे प्रणय प्रस्ताव किया . किंतु कुणाल ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया . तिष्यरक्षिता अपने सौंदर्य के इस अपमान को भुला न सकी . जब एक बार अशोक बीमार पड़ा तब तिष्यरक्षिता ने उसकी सेवा कर उससे मुंह मांगा वर प्राप्त करने का वचन ले लिया . एक बार तक्षशिला में विद्रोह होने पर जब कुणाल उसे दबाने के लिए भेजा गया तब तिष्यरक्षियता ने अपने वरदान में सम्राट, अशोक की राजमुद्रा प्राप्तकर तक्षशिला के मंत्रियों को कुणाल की आँखें निकाल लेने तथा उसे मार डालने की मुद्रांकित आज्ञा लिख भेजी . इस हेतु अनिच्छुक मंत्रियों ने जनप्रिय कुणाल की आँखें तो निकलवा ली परंतु उसके प्राण छोड़ दिए . अशोक को जब इसका पता चला तो उसने तिष्यरक्षिता को दंडस्वरूप जीवित जला देने की आज्ञा दी .<br />त्रिया चरित्र की यही कथा खण्ड काव्य का रोचक कथानक है . जिसमें इतिहास , मनोविज्ञान , साहित्यिक कल्पना सभी कुछ समाहित करते हुये डा संजीव कुमार ने पठनीय , विचारणीय , मनन करने योग्य , प्रश्नचिन्ह खड़े करता खण्ड काव्य लिखा है . उन्होने अपनी वैचारिक उहापोह को अभिव्यक्त करने के लिये अकविता को विधा के रूप में चुना है .तत्सम शब्दो का प्रवाहमान प्रयोग कर १६ लम्बी भाव अकविताओ में मनोव्यथा की सारी कथा बड़ी कुशलता से कह डाली है .<br />कुछ पंक्तियां उधृत करता हूं<br />क्रोध भरी नारी<br />होती है कठिन ,<br />और प्रतिशोध के लिये<br /> वह ठान ले , तो<br />परिणाम हो सकते हैं<br />महाभयंकर .<br />वह हो प्रणय निवेदक तो<br />कुछ भी कर सकती है वह <br />क्रोध में प्रतिशोध में<br />या<br />यूं तो मनुष्य सोचता है<br />मैं शक्तिमान<br />मैं सुखशाली<br />मैं मेधामय<br />मैं बलशाली<br />पर सत्य ही है<br />जीवन में कोई कितना भी<br />सोचे मन में सब नियति का है<br />निश्चित विधान .<br /><br /> राम के समय में रावण की बहन सूर्पनखा , पौराणिक संदर्भो में अहिल्या की कथा , गुरू पत्नी पर मोहित चंद्रमा की कथा , कृष्ण के समय में महाभारत के अनेकानेक विवाहेतर संबंध , स्त्री पुरुष संबंधो की आज की मान्य सामाजिक नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह हैं . दूसरी ओर वर्तमान स्त्री स्वातंत्र्य के पाश्चात्य मापदण्डो में भी सामाजिक बंधनो को तोड़ डालने की उत्श्रंखलता इस खण्ड काव्य की कथा वस्तु को प्रासंगिक बना देती है . पढ़िये और स्वयं निर्णय कीजीये की तिष्यरक्षिता कितनी सही थी कितनी गलत . उसकी शारीरिक भूख कितनी नैतिक थी कितनी अनैतिक . उसकी प्रतिशोध की भावना कुंठा थी या स्त्री मनोविज्ञान ? ऐसे सवालो से जूझने को छोड़ता कण्ड काव्य लिखने हेतु डा संजीव बढ़ाई के सुपात्र हैं .<br /><br /> चर्चाकार ..विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज ,<br />नयागांव ,जबलपुर ४८२००८<br /></div></div></div></div><div class="mail-message-footer spacer collapsible" style="height: 187px;"></div></div>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-43760411534134399632020-08-27T14:48:00.003-07:002020-08-27T14:48:50.264-07:00बुन्देली की बात<p> बुंदेली और स्व डॉ पूरनचंद श्रीवास्तव जी जैसे बुंदेली विद्वानो की सुप्रतिष्ठा जरूरी </p><p> .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८</p><p>ईसुरी बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध लोक कवि हैं ,उनकी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का चित्रण है। उनकी ख्याति फाग के रूप में लिखी गई रचनाओं के लिए सर्वाधिक है, उनकी रचनाओं में बुन्देली लोक जीवन की सरसता, मादकता और सरलता और रागयुक्त संस्कृति की रसीली रागिनी से जन मानस को मदमस्त करने की क्षमता है।</p><p>बुंदेली बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सादियों से आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। बुंदेलखंडी के ढेरों शब्दों के अर्थ बंगला तथा मैथिली बोलने वाले आसानी से बता सकते हैं। प्राचीन काल में राजाओ के परस्पर व्यवहार में बुंदेली में पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, मैत्री संधियों के अभिलेख तक सुलभ है। बुंदेली में वैविध्य है, इसमें बांदा का अक्खड़पन है और नरसिंहपुर की मधुरता भी है। वर्तमान बुंदेलखंड क्षेत्र में अनेक जनजातियां निवास करती थीं। इनमें कोल, निषाद, पुलिंद, किराद, नाग, सभी की अपनी स्वतंत्र भाषाएं थी, जो विचारों अभिव्यक्तियों की माध्यम थीं। भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में भी बुंदेली बोली का उल्लेख मिलता है . सन एक हजार ईस्वी में बुंदेली पूर्व अपभ्रंश के उदाहरण प्राप्त होते हैं। जिसमें देशज शब्दों की बहुलता थी। पं॰ किशोरी लाल वाजपेयी, लिखित हिंदी शब्दानुशासन के अनुसार हिंदी एक स्वतंत्र भाषा है, उसकी प्रकृति संस्कृत तथा अपभ्रंश से भिन्न है। बुंदेली प्राकृत शौरसेनी तथा संस्कृत जन्य है। बुंदेली की अपनी चाल, प्रकृति तथा वाक्य विन्यास की अपनी मौलिक शैली है। भवभूति उत्तर रामचरित के ग्रामीणों की भाषा विंध्येली प्राचीन बुंदेली ही थी। आशय मात्र यह है कि बुंदेली एक प्राचीन , संपन्न , बोली ही नही परिपूर्ण लोकभाषा है . आज भी बुंदेलखण्ड क्षेत्र में घरो में बुंदेली खूब बोली जाती है . क्षेत्रीय आकाशवाणी केंद्रो ने इसकी मिठास संजोई हुयी हैं .</p><p>ऐसी लोकभाषा के उत्थान , संरक्षण व नव प्रवर्तन का कार्य तभी हो सकता है जब क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों ,संस्थाओ , पढ़े लिखे विद्वानो के द्वारा बुंदेली में नया रचा जावे . बुंदेली में कार्यक्रम हों . जनमानस में बुंदेली के प्रति किसी तरह की हीन भावना न पनपने दी जावे , वरन उन्हें अपनी माटी की इस सोंधी गंध , अपनापन ली हुई भाषा के प्रति गर्व की अनुभूति हो . प्रसन्नता है कि बुंदेली भाषा परिषद , गुंजन कला सदन , वर्तिका जैसी संस्थाओ ने यह जिम्मेदारी उठाई हुई है . प्रति वर्ष १ सितम्बर को स्व डा पूरन चंद श्रीवास्तव जी के जन्म दिवस के सु अवसर पर बुंदेली पर केंद्रित अनेक आयोजन गुंजन कला सदन के माध्यम से होते हैं .</p><p>आवश्यक है कि बुंदेली के विद्वान लेखक , कवि , शिक्षाविद स्व पूरन चंद श्रीवास्तव जी के व्यक्तित्व , विशाल कृतित्व से नई पीढ़ी को परिचय कराया जाते रहे . जमाना इंटरनेट का है . इस कोरोना काल में सास्कृतिक आयोजन तक यू ट्यूब , व्हाट्सअप ग्रुप्स व फेसबुक के माध्यम से हो रहे हैं , किंतु बुंदेली के विषय में , उसके लेकको , कवियों , साहित्य के संदर्भ में इंटरनेट पर जानकारी नगण्य है .</p><p>स्व पूरन चंद श्रीवास्तव जी का जन्म १ सितम्बर १९१६ को ग्राम रिपटहा , तत्कालीन जिला जबलपुर अब कटनी में हुआ था . कायस्थ परिवारों में शिक्षा के महत्व को हमेशा से महत्व दिया जाता रहा है , उन्होने अनवरत अपनी शिक्षा जारी रखी , और पी एच डी की उपाधि अर्जित की .वे हितकारिणी महाविद्यालय जबलपुर से जुड़े रहे और विभिन्न पदोन्तियां प्रापत करते हुये प्राचार्य पद से १९७६ में सेवानिवृत हुये . यह उनका छोटा सा आजीविका पक्ष था . पर इस सबसे अधिक वे मन से बहुत बड़ साहित्यकार थे . बुंदेली लोक भाषा उनकी अभिरुचि का प्रिय विषय था . उन्होंने बुंदेली में और बुंदेली के विषय में खूब लिखा . रानी दुर्गावती बुंदेलखण्ड का गौरव हैं . वे संभवतः विश्व की पहली महिला योद्धा हैं जिनने रण भूमि में स्वयं के प्राण न्यौछावर किये हैं . रानी दुर्गावती पर श्रीवास्तव जी का खण्ड काव्य बहु चर्चित महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है . भोंरहा पीपर उनका एक और बुंदेली काव्य संग्रह है . भूगोल उनका अति प्रिय विषय था और उन्होने भूगोल की आधा दर्जन पुस्तके लिखि , जो शालाओ में पढ़ाई जाती रही हैं . इसके सिवाय अपनी लम्बी रचना यात्रा में पर्यावरण , शिक्षा पर भी उनकी किताबें तथा विभिन्न साहित्यिक विषयों पर स्फुट शोध लेख , साक्षात्कार , अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशन आकाशवाणी से प्रसारण तथा संगोष्ठियो में सक्रिय भागीदारी उनके व्यक्तित्व के हिस्से रहे हैं . मिलन , गुंजन कला सदन , बुंदेली साहित्य परिषद , आंचलिक साहित्य परिषद जैसी अनेकानेक संस्थायें उन्हें सम्मानित कर स्वयं गौरवांवित होती रही हैं . वे उस युग के यात्री रहे हैं जब आत्म प्रशंसा और स्वप्रचार श्रेयस्कर नही माना जाता था , एक शिक्षक के रूप में उनके संपर्क में जाने कितने लोग आते गये और वे पारस की तरह सबको संस्कार देते हुये मौन साधक बने रहे .</p><p>उनके कुछ चर्चित बुंदेली गीत उधृत कर रहा हूं ...</p><p><br /></p><p>कारी बदरिया उनआई....... ️</p><p> कारी बदरिया उनआई, हां काजर की झलकार ।</p><p>सोंधी सोंधी धरती हो गई, हरियारी मन भाई,खितहारे के रोम रोम में, हरख-हिलोर समाई ।ऊम झूम सर सर-सर बरसै, झिम्मर झिमक झिमकियाँ ।लपक-झपक बीजुरिया मारै, चिहुकन भरी मिलकियां ।रेला-मेला निरख छबीली- टटिया टार दुवार,कारी बदरिया उनआई,हां काजर की झलकार ।</p><p>औंटा बैठ बजावै बनसी, लहरी सुरमत छोरा । अटक-मटक गौनहरी झूलैं, अमुवा परो हिंडोरा ।खुटलैया बारिन पै लहकी, त्योरैया गन्नाई ।खोल किवरियाँ ओ महाराजा सावन की झर आई ऊँचे सुर गा अरी बुझाले, प्रानन लगी दमार,कारी बदरिया उनआई, हां काजर की झलकार ।</p><p>मेंहदी रुचनियाँ केसरिया, देवैं गोरी हाँतन ।हाल-फूल बिछुआ ठमकावैं भादों कारी रातन ।माती फुहार झिंझरी सें झमकै लूमै लेय बलैयाँ-घुंचुअंन दबक दंदा कें चिहुंकें, प्यारी लाल मुनैयाँ ।हुलक-मलक नैनूँ होले री, चटको परत कुँवार,कारी बदरिया उनआई, हाँ काजर की झलकार ।</p><p>इस बुंदेली गीत के माध्यम से उनका पर्यावरण प्रेम स्पष्ट परिलक्षित होता है .</p><p><br /></p><p>इसी तरह उनकी एक बुन्देली कविता में जो दृश्य उनहोंने प्रस्तुत किया है वह सजीव दिखता है .</p><p>बिसराम घरी भर कर लो जू...-------------</p><p>बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां,ढील ढाल हर धरौ धरी पर, पोंछौ माथ पसीना ।तपी दुफरिया देह झांवरी, कर्रो क्वांर महीना ।भैंसें परीं डबरियन लोरें, नदी तीर गई गैयाँ ।बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां ।</p><p>सतगजरा की सोंधी रोटीं, मिरच हरीरी मेवा ।खटुवा के पातन की चटनी, रुच को बनों कलेवा ।करहा नारे को नीर डाभको, औगुन पेट पचैयाँ ।बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां ।</p><p>लखिया-बिंदिया के पांउन उरझें, एजू डीम-डिगलियां ।हफरा चलत प्यास के मारें, बात बड़ी अलभलियां ।दया करो निज पै बैलों पै, मोरे राम गुसैंयां ।बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां ।</p><p><br /></p><p> वे बुन्देली लोकसाहित्य एवं भाषा विज्ञान के विद्वान थे . सीता हरण के बाद श्रीराम की मनः स्थिति को दर्शाता उनका एक बुन्देली गीत यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है कि राम चरित मानस के वे कितने गहरे अध्येता थे .</p><p>अकल-विकल हैं प्रान राम के----------------</p><p>अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ ।फिरैं नाँय से माँय बिसूरत, करें झाँवरी मुइयाँ ।</p><p>पूछत फिरैं सिंसुपा साल्हें, बरसज साज बहेरा ।धवा सिहारू महुआ-कहुआ, पाकर बाँस लमेरा ।</p><p>वन तुलसी वनहास माबरी, देखी री कहुँ सीता ।दूब छिछलनूं बरियारी ओ, हिन्नी-मिरगी भीता ।</p><p>खाई खंदक टुंघ टौरियाँ, नादिया नारे बोलौ ।घिरनपरेई पंडुक गलगल, कंठ - पिटक तौ खोलौ ।ओ बिरछन की छापक छंइयाँ, कित है जनक-मुनइयाँ ?अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ ।</p><p>उपटा खांय टिहुनिया जावें, चलत कमर कर धारें ।थके-बिदाने बैठ सिला पै, अपलक नजर पसारें ।</p><p>मनी उतारें लखनलाल जू, डूबे घुन्न-घुनीता ।रचिये कौन उपाय पाइये, कैसें म्यारुल सीता ।</p><p>आसमान फट परो थीगरा, कैसे कौन लगावै ।संभु त्रिलोचन बसी भवानी, का विध कौन जगावै ।कौन काप-पसगैयत हेरें, हे धरनी महि भुंइयाँ ।अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ ।</p><p><br /></p><p>बुंदेली भाषा का भविष्य नई पीढ़ी के हाथों में है , अब वैश्विक विस्तार के सूचना संसाधन कम्प्यूटर व मोबाईल में निहित हैं , समय की मांग है कि स्व डा पूरन चंद श्रीवास्तव जैसे बुंदेली के विद्वानो को उनका समुचित श्रेय व स्थान , प्रतिष्ठा मिले व बुंदेली भाषा की व्यापक समृद्धि हेतु और काम किया जावे .</p><p>विवेक रंजन श्रीवास्तव </p>Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-9517765300797648192020-07-05T07:13:00.002-07:002020-07-05T07:13:25.700-07:00अकाब --/ प्रबोध गोविल , पुस्तक चर्चा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="mail-message expanded" id="m#msg-a:s:-5212219940626131650" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
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पुस्तक समीक्षा<br />अकाब<br />उपन्यास<br />लेखक प्रबोध कुमार गोविल<br />दिशा प्रकाशन दिल्ली<br />मूल्य २०० रु<br />पृष्ठ १२८<br /><br />हिन्दी में समसामयिक मुद्दो पर कम ही उपन्यास लिखे जा रहे हैं . ऐसे समय में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर पर अलकायदा के हमले के संदर्भ को लेकर कहानी बुनते हुये , ग्लोबल विलेज बनती दुनियां से पात्र चयन कर "अकाब" लिखा गया है . जिसमें जापान से प्रारंभ नायक की यात्रा , न्यूयार्क और जम्मू काश्मीर तक का सफर करती है . एक मूलतः जापानी मसाज बाय के जीवन परिदृश्य को कहानी में बखूबी उतारा गया है . भाषा रोचक है .वर्णन इस तरह है कि पाठक के सम्मुख घटना चित्र खिंचता चला जाता है . वैश्विक परिदृश्य में उन्मुक्त फिल्मी सितारा स्त्री के चरित्र का वर्णन सजीव है .<br />न्यूयार्क शहर का वर्णन करते हुये लेखक लिखता है " पत्थरो के साम्राज्य में शीशे जड़कर सभ्यता की पराकाष्ठा मिट्टी को भुलाये बैठी थी " कांक्रीट के नये जंगलो के संदर्भ में यह वर्णन दुबई से लेकर मुम्बई और न्यूयार्क से लेकर टोकियो तक खरा है . पर लिखने का यह सामर्थ्य तभी संभव है जब लेखक ने स्वयं विश्व भ्रमण किया हो और भीतर तक महानगरो में गुमशुदा मिट्टी को महसूसा हो . इसी तरह वे लिखते हैं " चंद्रमा इन बिल्डिगो के गुंजलक के बीच ताक झांककर ही दिख पाता था . शहर आसमान के चांद का मोहताज भी नहीं था . जिसने भी बहुमंजिला इमारतो में रुपहली बिजली की चमक दमक देखी है वह इन शब्दो के भावार्थ समझ सकता है . जिस उपन्यास के पात्रो के नाम तनिष्क , मसरू ओस्से , आसानिका , सेलिना और शेख साहब, जान अल्तमश हों , आप समझ सकते हैं उसकी कहानी वैश्विक कैनवास पर ही लिखी होगी .प्रबोध एक जगह लिखते हैं " एसिया के कुछ देशों की प्रवृत्ति थी कि यहां यूरोप या अमेरिका के देशों में स्थापित मूल्य ज्यादा प्रामाणिक माने जाते हैं . " यह लेखक का अनुभूत यथार्थ जान पड़ता है . ट्विन टावर पर अलकायदा के हमले के संदर्भ में वर्णन है " विश्व की दो सभ्यताओं के बीच वैमनस्य की पराकाष्ठा के इस हादसे में हजारों लोगों ने अपनी जान बेवजह गंवाई . " स्टेच्यू आफ लिबर्टी के शहर में हुआ यह संकीर्ण मानसिकता का हमला सचमुच सभ्यता पर पोती गई कालिख थी . आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक जनमत इसी हमले के बाद बन सका है . काश्मीर में नायक को मसरू ओस्से की पूर्व में कभी भी न मिली हुयी पत्नी व बेटी से मिल जाना कहानी की नाटकीयता है .मसाज प्रक्रिया के उन्मुक्त वर्णन में बरती गई साब्दिक शालीनता उपन्यास के साहित्यिक स्तर को बनाये रखती है . अस्तु उपन्यास का विन्यास , कथा , रोचक है . उपन्यास एक बार पठनीय है . लेखक व दिशा प्रकाशन इसके लिये बधाई के पात्र हैं . मैं दिशा प्रकाशन के मधुदीप जी से लम्बे समय से सुपरिचित हूं . अकाब पक्षी का प्रतीक विमानो के लिये किया गया है , वे ही विमान जो दूरीयो को घण्टो में समेटकर सारी पृ्थ्वी को जोड़ रहे हैं पर जिनका इस्तेमाल ओसामा बिन लादेन ने ट्विन टावर पर हमले के लिये किया था .<br clear="all" /><div>
vivek ranjan shrivastava</div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-60891059610315272742020-01-19T23:44:00.001-08:002020-01-19T23:44:38.145-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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गाडरवाड़ा में चेतना का राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार आयोजन</div>
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शक्कर नदी के तट पर बसा , ओशो की जन्मभूमि , अरहर दाल और गुड़ उत्पादन के लिए प्रसिद्ध गाडरवाड़ा शहर साहित्य के लिए भी सुप्रसिद्ध है । चेतना संस्था के युवा साथी श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव , श्री विजय बेशर्म , नरेन्द्र श्रीवास्तव , व टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर किताबों के लिए पुरस्कार समारोह का आयोजन किया ।</div>
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विवेक रंजन श्रीवास्तव मुख्य अतिथि के रुप मे सम्मानित किये गए । सिमट रही शक्कर नदी को पुनः उर्जित करने का सुझाव मुख्य अतिथि ने दिया , जिसे व्यापक सराहना मिली । आयोजन में साहित्य भी भेंट किया गया , जो महत्वपूर्ण रहा , माला , शाल तो प्रत्येक कार्यक्रम में लिए दिए जाते ही हैं । श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव की कृति अनुगुंजन सबको भेंट स्वरूप प्रदान की गई ।</div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-56445584802824674352019-12-29T21:09:00.001-08:002019-12-29T21:09:56.055-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किताबों का सफर नामा<br />
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वर्ष 1994 में मेरी पहली नई कविता की किताब आई थी "आक्रोश " .<br />
<br />
इसके बाद लगातार विभिन्न सांस्कृतिक साहित्यिक कार्यक्रमों के आयोजनों से जुड़ा रहा . महिष्मति महोत्सव , फ़िल्म स्टार नाइट जैसे भव्य आयोजन सफलता पूर्वक हुए , रेवा तरंग , दिव्य नर्मदा जैसी स्मारिकाएँ व पत्रिकाएं सम्पादन से जुड़ा रहा ।<br />
<br />
2000 में कान्हा पर एक काफी टेबल बुक आई।<br />
<br />
2006 में व्यंग्य की किताब " रामभरोसे " आई। पुरस्कृत हुई।<br />
<br />
2007 में नाटक संग्रह " हिन्दोस्तां हमारा " आया ।साहित्य अकादमी ने रु31000 का हरिकृष्ण प्रेमी सम्मान इसके लिए दिया ।<br />
<br />
2009 में व्यंग्य संग्रह " कौआ कान ले गया " छपा । इसे भी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ ।<br />
<br />
वर्ष 2013 में किताब " बिजली का बदलता परिदृश्य ' प्रकाशित हुआ ।बाद में इसका दूसरा संस्करण भी छपा ।<br />
<br />
2015 में "मेरे प्रिय व्यंग्य लेख" सीरीज में मेरी किताब भी छपी ।<br />
<br />
2015 में ही "जल जंगल और जमीन " जयपुर से छपी। स्कूलों में खूब खरीदी गई ।<br />
<br />
इस बीच कुछ E बुक्स डेली हंट एप पर भी आईं ।<br />
अनेक सामूहिक संग्रहो में समय समय पर कुछ न कुछ मित्र बुलाकर छापते रहे हैं।<br />
उसी प्रकाशक ने मांगकर 2015 में ही मेरा पुरस्कार प्राप्त नाटक " जादू शिक्षा का" छापा ।<br />
<br />
2019 में रवीना प्रकाशन दिल्ली के चन्द्रहास जी से परिचय हुआ , सुपरिणाम रहा , वैश्विक व्यंग्य संग्रह " मिली भगत ".<br />
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अब 2020 में आने को है मेरा व्यंग्य संग्रह " खटर पटर ".<br />
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-89099990487793444462019-12-13T04:50:00.003-08:002019-12-13T04:50:58.046-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक 2010 की पोस्ट , शायद आज भी प्रासंगिक<br />
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संस्थान की प्रगति के लिये जबाबदार कौन... नेतृत्व ? या नीतियां ? </div>
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विवेक रंजन श्रीवास्तव </div>
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लेखक को नवोन्मेषी वैचारिक लेखन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है </div>
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ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर </div>
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<a href="mailto:vivek1959@yahoo.co.in" rel="noreferrer" style="color: #4285f4; text-decoration-line: none;" target="_blank">vivek1959@yahoo.co.in</a></div>
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9425806252</div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span>कारपोरेट मैनेजर्स की पार्टीज में चलने वाला जसपाल भट्टी का लोकप्रिय व्यंग है , जिसमें वे कहते हैं कि किसी कंपनी में सी एम डी के पद पर भारी भरकम पे पैकेट वाले व्यक्ति की जगह एक तोते को बैठा देना चाहिये , जो यह बोलता हो कि "मीटिंग कर लो" , "कमेटी बना दो" या "जाँच करवा लो ". यह सही है कि सामूहिक जबाबदारी की मैनेजमेंट नीति के चलते शीर्ष स्तर पर इस तरह के निर्णय लिये जाते हैं , पर विचारणीय है कि क्या कंपनी नेतृत्व से कंपनी की कार्यप्रणाली में वास्तव में कोई प्रभाव नही पड़ता ?भारतीय परिवेश में यदि शासकीय संस्थानो के शीर्ष नेतृत्व पर दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि नौकरी की उम्र के लगभग अंतिम पड़ाव पर , जब मुश्किल से एक या दो बरस की नौकरी ही शेष रहती है , तब व्यक्ति संस्थान के शीर्ष पद पर पहुंच पाता है .रिटायरमेंट के निकट इस उम्र के टाप मैनेजमेंट की मनोदशा यह होती है कि किसी तरह उसका कार्यकाल अच्छी तरह निकल जाये , कुछ लोग अपने निहित हितो के लिये पद का दोहन करने की कार्य प्रणाली अपनाते हैं , कुछ शांति से जैसा चल रहा है वैसा चलने दिया जावे और अपनी पेंशन पक्की रखी जावे की नीति पर चलते हैं . वे नवाचार को अपनाकर विवादास्पद बनने से बचते हैं . कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो मनमानी करने पर उतर आते हैं , उनकी सोच यह होती है कि कोई उनका क्या कर लेगा ? उच्च पदों पर आसीन ऐसे लोग अपनी सुरक्षा के लिये राजनैतिक संरक्षण ले लेते हैं , और यहीं से दबाव में गलत निर्णय लेने का सिलसिला चल पड़ता है .भ्रष्टाचार के किस्से उपजते हैं . जो भी हो हर हालत में नुकसान तो संस्थान का ही होता है .</div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span> इन स्थितियों से बचने के लिये सरकार की दवा स्वरूप सरकारी व अर्धसरकारी संस्थानो का नेतृत्व आई ए एस अधिकारियों को सौंप दिया जाता है . संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों में यह भावना होती है कि ये नया लड़का हमें भला क्या सिखायेगा ? युवा आई ए एस अधिकारी को निश्चित ही स्स्थान से कोई भावनात्मक लगाव नही होता , वह अपने कार्यकाल में कुछ करिश्मा कर अपना स्वयं का नाम कमाना चाहता है , जिससे जल्दी ही उसे कही और बेहतर पदांकन मिल सके . जहां तक भ्रष्टाचार के नियंत्रण का प्रश्न है , स्वयं रेवेन्यू डिपार्टमेंट जो आई ए एस अधिकारियों का मूल विभाग है , पटवारी से लेकर उपर तक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है , फिर भला आई ए एस अधिकारियों के नेतृत्व से किसी संस्थान में भ्रष्टाचार नियंत्रण कैसे संभव है ? आई ए एस अधिकारियों को प्रदत्त असाधारण अधिकारों , उनके लंबे विविध पदों पर संभावित सेवाकाल के कारण , संस्थान के आम कर्मचारियों में भय का वातावरण व्याप्त हो जाता है . मसूरी के आई ए एस अधिकारियों के ट्रेनिंग स्कूल की , अंग्रेजो के समय की एक चर्चित ट्रेनिंग यह है कि एक कौए को मारकर टांग दो , बाकी स्वयं ही डर जायेंगे , मैने अनेक बेबस कर्मचारियों को इसी नीति के चलते बेवजह प्रताड़ित होते हुये देखा है , जिन्हें बाद में न्यायालयों से मिली विजय इस बात की सूचक है कि भावावेश में शीर्ष नेतृत्व ने गलत निर्णय ही लिया था . मजेदार बात है कि हमारे वर्तमान सिस्टम में शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिये गये गलत निर्णयो हेतु उन्हे किसी तरह की कोई सजा का प्रवधान ही नही है . ज्यादा से ज्यादा उन्हें उस पद से हटा कर एक नया वैसा ही पद किसी और संस्थान में दे दिया जाता है . इसके चलते अधिकांश आई ए एस अधिकारियों की अराजकता सर्वविदित है . सरकारी संस्थानो के सर्वोच्च पदो पर आसीन लोगो का कहना यह होता है कि उनके जिम्में तो केवल इम्प्लीमेंटेशन का काम है नितिगत फैसले तो मंत्री जी लेते हैं , इसलिये वे कोई रचनात्मक परिवर्तन नही ला सकते . </div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span>कार्पोरैट जगत के निजी संस्थानो की बात करें तो वहां हम पाते हैं कि मध्यम श्रेणी के संस्थानो में मालिक की मोनोपाली व वन मैन शो हावी है , पढ़े लिखे टाप मैनेजर भी मालिक या उसके बेटे की चाटुकारिता में निरत देखे जाते हैं . एम एन सी अपनी बड़ी साइज के कारण कठनाई में हैं . शीर्ष नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय बैठकों , आधुनिकीकरण , नवीनतम विज्ञापन ,संस्थान को प्रायोजक बनाने , शासकीय नीतियों में सेध लगाकर लाभ उठाने में ही ज्यादा व्यस्त दिखता है .वर्तमान युग में किसी संस्थान की छबि बनाने , बिगाड़ने में मीडीया का रोल बहुत महत्वपूर्ण है , हमने देखा है कि रेल मंत्रालय में लालू यादव ने अपने समय में खूब नाम कमाया , कम से कम मीडिया में उनकी छबि एक नवाचारी मंत्री की रही . आई सी आई सी आई के शीर्ष नेतृत्व में परिवर्तन से उस संस्थान के दिन बदलते भी हमने देखा है .शीर्ष नेतृत्व हेतु आई आई एम जैसे संस्थानो में जब कैम्पस सेलेक्शन होते हैं तो जिस भारी भरकम पैकेज के चर्चे होते हैं वह इस बात का द्योतक है कि शीर्ष नेतृत्व कितना महत्वपूर्ण है . किसी संस्थान में काम करने वाले लोग तथा संस्थान की परम्परागत कार्य प्रणाली भी उस संस्थान के सुचारु संचालन व प्रगति के लिये बराबरी से जबाबदार होते हैं . कर्मचारियों के लिये पुरस्कार , सम्मान की नीतियां उनका उत्साहवर्धन करती हैं .कर्मचारियों की आर्थिक व ईगो नीड्स की प्रतिपूर्ती औद्योगिक शांति के लिये बेहद जरूरी है , नेतृत्व इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है .</div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span>राजीव दीक्षित भारतीय सोच के एक सुप्रसिद्ध विचारक हैं , व्यवस्था सुधारने के प्रसंग में वे कहते हैं कि यदि कार खराब है तो उसमें किसी भी ड्राइवर को बैठा दिया जाये , कार तभी चलती है जब उसे धक्के लगाये जावें . प्रश्न उठता है कि किसी संस्थान की प्रगति के लिये , उसके सुचारु संचालन के लिये सिस्टम कितना जबाबदार है ?हमने देखा है कि विगत अनेक चुनावों में पक्ष विपक्ष की अनेक सरकारें बनी पर आम जनता की जिंदगी में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नही आ सके . लोग कहने लगे कि सांपनाथ के भाई नागनाथ चुन लिये गये . कुछ विचारक भ्रष्टाचार जैसी समस्याओ को लोकतंत्र की विवशता बताने लगे हैं , कुछ इसे वैश्विक सामाजिक समस्या बताते हैं .कुछ इसे लोगो के नैतिक पतन से जोड़ते हैं . आम लोगो ने तो भ्रष्टाचार के सामने घुटने टेककर इसे स्वीकार ही कर लिया है , अब चर्चा इस बात पर नही होती कि किसने भ्रष्ट तरीको से गलत पैसा ले लिया , चर्चा यह होती है कि चलो इस इंसेटिव के जरिये काम तो सुगमता से हो गया . निजि संस्थानों में तो भ्रष्टाचार की एकांउटिग के लिये अलग से सत्कार राशि , भोज राशि , गिफ्ट व्यय आदि के नये नये शीर्ष तय कर दिये गये हैं .सेना तक में भ्रष्टाचार के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं . क्या इस तरह की नीति स्वयं संस्थान और सबसे बढ़कर देश की प्रगति हेतु समुचित है ?</div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span>विकास में विचार एवं नीति का महत्व सर्वविदित है , इस सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को हमने जनप्रतिनिधियों को सौंप रखा है .एक ज्वलंत समस्या बिजली की है इसे ही लें , आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है , परोक्ष रूप से इससे देश की सर्वांगीण प्रगति बाधित हुई है . बिजली , रेल की ही तरह राष्ट्रव्यापी सेवा व आवश्यकता है बल्कि रेल से कहीं बढ़कर है , फिर क्यों उसे टुकड़े टुकड़े में अलग अलग बोर्ड , कंपनियों के मकड़ जाल में उलझाकर रखा गया है , क्यों राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय विद्युत सेवा जैसी कोई व्यवस्था अब तक नही बनाई गई ? समय से भावी आवश्यकताओ का सही पूर्वानुमान लगाकर क्यों नये बिजली घर नही बनाये गये ? इसका कारण बिजली व्यवस्था का खण्ड खण्ड होना ही है , जल विद्युत निगम अलग है , तापबिजली निगम अलग, परमाणु बिजली अलग , तो वैकल्पिक उर्जा उत्पादन अलग हाथों में है, उच्चदाब वितरण , निम्नदाब वितरण अलग हाथों में है .एक ही देश में हर राज्य में बिजली दरों व बिजली प्रदाय की स्थितयों में व्यापक विषमता है . केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सुरक्षा व आतंकी गतिविधियों के समन्वय में जिस तरह की कमियां उजागर हुई हैं ठीक उसी तरह बिजली के मामले में भी केंद्रीय समन्वय का सर्वथा अभाव है . जिसका खामियाजा हम सब भोग रहे हैं .नियमों का परिपालन केवल अपने संस्थान के हित में किये जाने की परंपरा गलत है . यदि शरीर के सभी हिस्से परस्पर सही समन्वय से कार्य न करे तो हम नही चल सकते , विभिन्न विभागों की परस्पर राजस्व , भूमि या अन्य लड़ाई के कितने ही प्रकरण न्यायालयों में हैं ,जबकि यह एक जेब से दूसरे में रुपया रखने जेसा ही है . इस जतन में कितनी सरकारी उर्जा नष्ट हो रही है , ये तथ्य विचारणीय है . पर्यावरण विभाग के शीर्ष नेतृत्व के रूपमें टी एन शेषन जैसे अधिकारियों ने पर्यावरण की कथित रक्षा के लिये तत्काकलीन पर्यावरणीय नीतियों की आड़ में बोधघाट परियोजना जैसी जल विद्युत उत्पादन परियोजनाओ को तब अनुमति नही दी ,निश्चित ही इससे उन्होने स्वयं अपना नाम तो कमा लिया पर इससे बिजली की कमी का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वह अब तक थमा नही है . बस्तर के जंगल सुदूर औद्योगिक महानगरों का प्रदूषण किस स्तर तक दूर कर सकते हैं यह अध्ययन का विषय हो सकता है ,पर हां यह स्पष्ट दिख रहा है कि आज विकास की किरणें न पहुंच पाने के कारण ये जंगल नक्सली गतिविधियो का केंद्र बन चुके हैं . आम आदमी भी सहज ही समझ सकता है कि प्रत्येक क्षेत्र का संतुलित , विकास होना चाहिये . पर हमारी नीतियां यह नही समझ पातीं . मुम्बई जैसे नगरो में जमीन के भाव आसमान को बेध रहे हैं .प्रदूषण की समस्या , यातायात का दबाव बढ़ता ही जा रहा है . आज देश में जल स्त्रोतो के निकट नये औद्योगिक नगर बसाये जाने की जरूरत है , पर अभी इस पर कोई काम नही हो रहा ! </div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span></div>
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<span style="white-space: pre-wrap;"> </span>आवश्यकता है कि कार्पोरेट जगत , व सरकारी संस्थान अपनी सोशल रिस्पांस्बिलिटि समझें व देश के सर्वांगीण हित में नीतियां बनाने व उनके इम्प्लीमेंटेशन में शीर्ष नेतृत्व राजनेताओ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी भूमिका निर्धारित करें , देश के विभिन्न संस्थानों की प्रगति देश की प्रगति की इकाई है . </div>
<div class="signature-text" style="color: #888888;">
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vivek ranjan shrivastava</div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-61543013523239767942019-11-19T17:48:00.002-08:002019-11-19T17:48:49.426-08:00पाठक मंच जरूरी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
स्तम्भ अपना प्रदेश<br />
<br />
प्रदेश में मप्र संस्कृति परिषद साहित्य अकादमी के पाठक मंच पुनः सक्रिय करने जरूरी<br />
<br />
<br />
उन्नीस सौ नब्बे के दशक में तत्कालीन म प्र सरकार ने युवाओ को साहित्य से जोड़ने के लिये मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के तत्वावधान में प्रदेश में पाठक मंच योजना का अभिनव प्रारंभ किया था ।<br />
<br />
म. प्र. साहित्य अकादमी की प्रतिनिधि इकाई के रूप में व एक सृजनात्मक स्थानीय<br />
संस्था के रूप में प्रदेश के विभिन्न अंचलो में मानसेवी साहित्य प्रेमियो के संयोजन में प्रदेश में जगह जगह पाठक मंच सक्रिय हैं.<br />
<br />
अकादमी की पाठक मंच योजना देश में इस तरह की पहली अभिन्न योजना है . समकालीन , चर्चित व महत्वपूर्ण किताबो तथा महत्व पूर्ण पत्र पत्रिकाओ पर इन पाठक मंचो में चर्चा के माध्यम से पाठको तथा लेखको को वैचारिक अभिव्यक्ति का सुअवसर सुलभ होता है . पाठक मंच संयोजको का एक वार्षिक सम्मेलन भी आयोजित किया जाता है .<br />
<br />
पाठक मंच की यह योजना पिछली सरकार के समय भी पूरी सक्रियता से जारी रही ।<br />
वर्तमान युग इलेक्ट्रानिक संसाधनो से भरा हुआ है , ऐसे समय में पठनीयता का स्वाभाविक अभाव है . किन्तु पाठक मंच पुस्तक संस्कृति को बचाये रखने का बड़ा काम कर रहे थे ।<br />
<br />
प्रदेश की वैचारिक साहित्यिक सांस्कृतिक अस्मिता का परिदृश्य बनाये रखने व नव लेखन को सकारात्मक दिशा देने के लिए पाठक मंच आवश्यक हैं ।<br />
<br />
विगत एक वर्ष से नई सरकार में पाठक मंच की यह सर्वथा महत्वपूर्ण योजना ठप्प है । अतः साहित्य के व्यापक हित में अविलंब प्रदेश के पाठक मंचो को पुनः सक्रिय करने की जरूरत है ।<br />
<br />
<br />
विवेक रंजन श्रीवास्तव<br />
<br />
संयोजक , पाठक मंच जबलपुर<br />
<br />
ए 1, शिला कुंज रामपुर जबलपुर 482008<br />
<br />
मो 7000375798</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-78418208823691379132018-09-07T23:29:00.000-07:002018-09-07T23:29:45.382-07:00गोपालराम गहमरी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">मण्डला के नर्मदा तट पर गोपालराम गहमरी ने रचे थे हिंदी के पहले जासूसी उपन्यास</span><br />
<div dir="auto">
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div style="margin: 16px 0px;">
<div dir="ltr">
<br />विवेक रंजन श्रीवास्तव<br />ए १ ,शिला कुन्ज , रामपुर , जबलपुर<br />मो ७०००३७५७९८<br /><br /><br /> दुनियां में नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की परम्परा है . यही नर्मदा मण्डला नगरी की तीन ओर से परिक्रमा करती है . नदी के एक तट पर मण्डला नगर है , नर्मदा से बंजर नदी के संगम पर खड़ा बुर्ज और किला है तो दूसरे तट पर महाराजपुर उपनगर है जहाँ मालगुजार चौधरी मुन्नालाल व जगन्नाथ चौधरी जी का भव्य महलनुमा प्रांगण है , मंदिर हैं . मण्डला के विश्व प्रसिद्ध जंगलो , नदी तट के प्राकृतिक दृश्य लेखकीय मन में रचनाओ का स्फुरण करते हैं . मण्डला से कोई 20 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा तट पर ही गौड राजाओ का रामनगर किला है व पास ही सुप्रसिद्ध करिया पहाड़ है , इस पहाड़ की विशेषता यह है कि लगभग 900 मीटर उँचे पहाड़ी पर सारे पत्थर पंचकोणीय 3 से 4 मीटर लम्बी बीम के आकार के हैं , ये पत्थर किसी भी मिट्टी से जुड़े नही हैं , अर्थात ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने काले पत्थरो की बीम बनवा कर उनका बेतरतीब संग्रह कर रखा हो पर यह प्राकृतिक है . गोपाल राम गहमरी जी का एक उपन्यास है " करिया पहाड़ " निश्चित ही यह इस पहाड़ से अभिप्रेरित पृष्ठभूमि पर लिखी हुई रचना है . मधुपुरी भी मण्डला के पास ही एक गांव है , गहमरी जी का एक उपन्यास "मधुपुरी के चोर" है . उनकी रचनाओ पर मण्डला का प्रभाव अलग विस्तृत शोध का विषय है .जिस पर कार्य किये जाने की जरूरत है . मैं मूलतः मण्डला का निवासी हूं . हमारा परिवार मण्डला के पुराने कुछ पढ़े लिखे परिवारो में से है . मेरे घर महलात के निकट ही श्री राम अग्रवाल पुस्तकालय है ,मैं इसका सदस्य था अपने बचपन में मैंने वहां खूब किताबें पढ़ी हैं ,उन दिनो उसका संचालन श्री गिरिजा शंकर अग्रवाल करते थे . उनसे मैंने स्व गोपालराम गहमरी जी के मण्डला में ही हिन्दी के पहले जासूसी उपन्यास लेखन का संस्मरण सुना था . शायद मैने तब गहमरी जी की कोई किताब पढ़ी भी थी . अतः जब गहमर के इस आयोजन में मुझे सम्मानित करने का प्रस्ताव आया तो मैं गहमर जी के विषय में और जानने की इच्छा से मना नही कर सका यद्यपि सामान्यतः मैं सम्मानो से दूर ही रहता हूं .<br /> कहा जाता है कि एक बार सन् 1882 में मुन्नालाल जी चौधरी अपने एक रिश्तेदार के यहाँ गहमर गये थे. वहां पर गोपालराम नाम के एक बालक से उनकी मुलाकात हुई. बालक की प्रतिभा से प्रभावित होकर चौधरी जी उसे अपने साथ महाराजपुर ले आए . महाराजपुर आने के पहले गोपालराम जी मातृ-पितृविहीन हो चुके थे क्योंकि उन्होंने अपने उपन्यास 'सास पतोहू' (1899) में लिखा है कि बड़े लोगों के मुँह से बेटा या बेटी शब्द सुनते कैसा मीठा लगता है . चौधरी जी से उन्हें पितृवत संरक्षण मिला. गहमरी जी का कार्य महाराजपुर में जगन्नाथ चौधरी को पढ़ाना था , और मुन्नालाल जी के कार्य में सहयोग करना था. महाराजपुर में ही रहकर गहमर जी ने बंगला उपन्यासों का अनुवाद हिन्दी में किया . चौधरी जी के रिकार्ड में अभी भी उनके द्वारा किया हुआ पत्र-व्यवहार, अनुवाद कार्य संबंधी लेखा-जोखा मौजूद है. यहीं पर रहते हुए केहरपुर निवासी पंडित बालमुकुन्द परोहित से गहमरी जी का परिचय हुआ. पुरोहित जी उस समय सागर में तहसीलदार थे. गहमरी जी ने अपना उपन्यास 'सास पतोहू' पुरोहित जी को ही समर्पित किया है. महाराजपुर के चौधरी बाड़ा में रहते हुए गहमरी जी ने 'शोणितचक', 'घटना घटाटोप', 'माधवीकंकण' उपन्यासों की रचना की. इसी समय मंडल महाराजपुर में 'कंठ कोकिला' नामक साहित्यिक संस्था का गठन हुआ, जिसमें बाबू जगन्नाथ प्रसाद मिश्र, पं. लोचनप्रसाद पाण्डेय, पं. रेवाशंकर चौबे, गोपाल कवि, सेठ भद्देलाल जी अग्रवाल, चौधरी जगन्नाथ प्रसाद के साथ गहमरी जी भी सदस्य थे. उस समय गहमरी जी के द्वारा अनेक नाटक भी अनुदित किए गए जिसमें 'विद्या विनोद' (1892), 'देशदशा' (1892), 'यौवनयोगिनी' (1893), 'दादा और मैं' (1893), 'चित्रागंदा' (1895) तथा 'वग्रूवाहन' एवं 'जैसे को तैसा' आदि प्रमुख हैं . सामाजिक उपन्यासों में 'चतुरचंचला' (1893), 'भानुमति' (1884), 'नये बाबू', 'सास पतोहू', 'देवरानी-जेठानी दो बहन', 'तीन पतोहू', 'गृहलक्ष्मी', 'ठन-ठन गोपाल' आदि उपन्यासों से गहमरी जी ने विशेष प्रसिध्दि पाई. गहमरी जी ने इन उपन्यासों को मण्डला के रायबहादुर जगन्नाथ चौधरी को समर्पित किया था. जगन्नाथ चौथरी द्वारा लिखित 'हरिशचन्द्र' नाटक महाराजपुर में ही खेला गया था , निश्चित ही उसके लेखन में गहमर जी का साथ प्रेरक रहा होगा . 1866 से 1882 तक गहमरी जी का कार्यक्षेत्र महाराजपुर ही रहा. गहमरीजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे कवि, अनुवादक, उपन्यासकार, निबंधकार, नाटककार, कहानीकार के रूप में जाने जाते थे. आपने मुम्बई के बेकेटेश्वरी प्रेस में भी काम किया था। आप राजा रामपाल के आमंत्रण पर कालाकांकर भी गये थे। आपने महाराजपुर में रहते हुए मेरठ से प्रकाशित होने वाले 'साहित्य सरोज' पत्रिका का सम्पादन किया था और वहीं से आपने पहला जासूसी ढंग का मासिक-पत्र 'गुप्तकथा' नाम से निकाला था. फिर आप पाटन आ गये थे. 1897 में पुन: मुम्बई गये थे . 1899 में कोलकाता जाकर 'भारत मित्र' का स्थानापन्न संपादक बन कार्य किया था . 1900 में गहमर लौटे और अंत तक 'जासूस' नामक पत्रिका का सम्पादन करते रहे.गोपालराम गहमरी ने लगभग 64 मौलिक जासूसी उपन्यास लिखे , अनूदित उपन्यासों को मिला दें तो यह संख्या 200 पहुंच जाती है . यदि गहमरी जी के साहित्य के अध्ययन के बाद कोई शोधार्थी समुचित दृष्टि के साथ मण्डला का भ्रमण करे तो गहमरी जी के साहित्य पर मण्डला के परिवेश के प्रभाव का आकलन नई खोज कर सकता है . <div class="signature-text" style="color: #888888;">
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-84583818176179594562018-08-18T00:36:00.003-07:002018-08-18T00:36:41.920-07:00पठनीयता के अभाव को चुनौती देती म.प्र. संस्कृति परिषद की पाठक मंच योजना एक सर्वथा नवाचारी प्रयास <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
म. प्र. साहित्य अकादमी के नवाचारी साहित्यिक प्रयास <br />विवेक रंजन श्रीवास्तव <br />संयोजक , पाठक मंच , जबलपुर <br />किस
तरह कोई समर्पित व्यक्ति अपने नेतृत्व व नीति से किसी संस्था को नया
स्वरूप दे सकता है यह श्री मनोज श्रीवास्तव प्रमुख सचिव संस्कृति म. प्र.
एवं श्री उमेश कुमार सिंह निदेशक साहित्य अकादमी भोपाल के नेतृत्व ने सिद्ध
कर दिखाया है . युवाओ को साहित्य से जोड़ने के लिये अकादमी प्रदेश में जगह
जगह पहुंचकर क्षेत्रीय साहित्यकारो की जयंतियो के आयोजन करने के नवाचारी
प्रयास कर रही है . अकादमी ने साहित्यिक कैलेण्डर बना कर वर्ष भर के
साहित्यकारो की जयंतियो , पुण्य तिथियो व आयोजनो की ओर जन सामान्य का
ध्यानाकर्षण किया . सोशलमीडिया का रचनात्मक उपयोग करते हुये व्हाट्सअप
ग्रुप , फेसबुक पेज आदि नवीनतम इलेक्ट्रानिक संसाधनो के माध्यमो से अकादमी
की गतिविधियो को विश्व व्यापी स्तर पर साहित्य प्रेमियो के बीच त्वरित रूप
से पहुंचाने का अभिनव कार्य भी किया जा रहा है . <br />म. प्र. साहित्य अकादमी की प्रतिनिधि इकाई के रूप में व एक सृजनात्मक स्थानीय<br />संस्था
के रूप में प्रदेश के विभिन्न अंचलो में साहित्य प्रेमियो के संयोजन में
जगह जगह पाठक मंच सक्रिय हैं. अकादमी की पाठक मंच योजना देश में इस तरह की
पहली अभिन्न योजना है . समकालीन , चर्चित व महत्वपूर्ण किताबो तथा महत्व
पूर्ण पत्र पत्रिकाओ पर इन पाठक मंचो में चर्चा के माध्यम से पाठको तथा
लेखको को वैचारिक अभिव्यक्ति का सुअवसर सुलभ होता है . पाठक मंच संयोजको का
एक वार्षिक सम्मेलन भी आयोजित किया जाता है . <br />पहली बार साहित्यिक
पत्रिकाओ के संपादको का वैचारिक सम्मेलन भोपाल में जनवरी २०१८ के प्रथम
सप्ताह में आयोजित किया जा रहा है . इससे पहले साहित्यिक संस्थाओ के
पदाधिकारियो का राज्यस्तरीय सम्मेलन भी भोपाल में आयोजित किया गया जो अपनी
तरह का पहला आयोजन था जिसमें विभिन्न क्षेत्रो की साहित्यिक संस्थाओ के
प्रतिनिधियो ने परस्पर वैचारिक विमर्श किया . <br />अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संवाद के आयोजन भी प्रति वर्ष हो रहे हैं . <br />वर्तमान युग इलेक्ट्रानिक संसाधनो से भरा हुआ है , ऐसे समय में पठनीयता<br />का
स्वाभाविक अभाव है . किन्तु अकादमी की पत्रिका साक्षात्कार जिस तरह ठीक
समय पर पाठको तक नियमित रूप से पहुंच रही है , व राष्ट्र की वैचारिक
साहित्यिक सांस्कृतिक अस्मिता का परिदृश्य निर्मित कर रही है उससे नव लेखन
को सकारात्मक दिशा मिली है . अकादमी की टीम इन नवाचारी प्रयोगो से साहित्य
जगत में चेतना जगाने के लिये बधाई की पात्र है . <br /><br /><br />पाठक मंच जबलपुर में कौशल किशोर की पुस्तक महर्षि अरविन्द घोष पर व्यापक चर्चा ......<br /><br />विगत
दिवस जबलपुर पाठक मंच ने सत्साहित्य प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित किताब
"महर्षि अरविन्द घोष" पर चर्चा गोष्ठी का आयोजन पुस्तकालय में किया गया .
किताब के परिप्रेक्ष्य में बोलते हुये वरिष्ठ कवि व अनुवादक प्रो सी बी
श्रीवास्तव विदग्ध ने इसे महर्षि जी के विषय में केवल परिचयात्मक छोटी
किताब बताया . उन्होने कहा कि पुस्तक में महर्षि के जीवन के सागर को गागर
में भरने का प्रयास किया गया है इसलिये अनेक महत्वपूर्ण घटनाओ को स्पर्श
मात्र करते हुये लेखक निकल गया है . महर्षि के प्रारंभिक जीवन , इंग्लैंड
में व्यतीत उनका समय , बडौदा में उनके कार्य , बंगाल में किया गया
राष्ट्रवादी योगदान , पांडीचेरी , मीरा रिचर्ड का साथ , आदि बिंदुओ पर लेखक
ने थोड़ी थोड़ी बातें रखी है . युवाओ में महरंषि के प्रति कौतुहल जगाने का
काम पुस्तक कर सकती है .<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT1Tvp8dflm_yD13nZGW27oK06FON9mHvYRNaheTuH6sDHEtNrftkf3ZRhlpFn0GcLCL3dYC46w0KLmwq96kQMWPEzp6Z0MKEeZx-VhYTTwvhnxzKHHdfcwvTauloELCiVg31ywXKbuT8/s1600/IMG-20171224-WA0006.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1110" data-original-width="540" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT1Tvp8dflm_yD13nZGW27oK06FON9mHvYRNaheTuH6sDHEtNrftkf3ZRhlpFn0GcLCL3dYC46w0KLmwq96kQMWPEzp6Z0MKEeZx-VhYTTwvhnxzKHHdfcwvTauloELCiVg31ywXKbuT8/s320/IMG-20171224-WA0006.jpg" width="155" /></a></div>
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फोटो संलग्न------ मनोज श्रीवास्तव एवं श्री उमेश सिंह व पुस्तक महर्षि अरविंद घोष<br />..............................<wbr></wbr>..............................<wbr></wbr>..............................<wbr></wbr>..............................<wbr></wbr>.........................<br />तुम जरा चुपचाप रहना।<br /> .......जयप्रकाश श्रीवास्तव<br /><br />सुनते हैं <br />दीवारों के भी कान हैं<br />तुम जरा चुपचाप रहना।<br /><br />कह न देना<br />भूलकर भी<br />क्षणिक से सुख की कथा<br />मत सुनाना<br />चाहकर भी<br />अपने इस मन की व्यथा<br />हमको तो<br />दुख का मिला वरदान है<br />सुखों की पदचाप सुनना।<br /><br />पीढ़ियों से<br />ढो रहे हैं<br />विरासत मजदूर वाली<br />झूठ लगती<br />है सचाई<br />बदलती तकदीर वाली<br />हर तरफ<br />फैला हुआ श्मशान है<br />मना है संताप करना।<br /><br />प्रति-बंधित<br />हो गई हैं<br />सब की सब आलोचनाएं<br />जी रही हैं<br />प्रकंपित हो<br />मौन बहरी कामनाएं<br />रास्तों पर<br />उनका ही गुणगान है<br />व्यर्थ पश्चाताप करना।<br /> </div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-36555280842963715722018-08-18T00:16:00.000-07:002018-08-18T00:16:00.204-07:00म. प्र. साहित्य अकादमी की अभिनव पुरस्कार योजना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUzxUfttDAFCyqP_aELgf3PZ6z7lpjNyhC3ir3tP8TDJa0Xah8WXcIOMkjvLlNpqJCYOxYq-ZSUuZZn9EnaixlZkcq9S43qSZm8VmFv5N2PwG3-9h5kFBPDkyiQ5yt1riUsFKEbBeTz5A/s1600/IMG-20180804-WA0002.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="908" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUzxUfttDAFCyqP_aELgf3PZ6z7lpjNyhC3ir3tP8TDJa0Xah8WXcIOMkjvLlNpqJCYOxYq-ZSUuZZn9EnaixlZkcq9S43qSZm8VmFv5N2PwG3-9h5kFBPDkyiQ5yt1riUsFKEbBeTz5A/s320/IMG-20180804-WA0002.jpg" width="227" /></a></div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-79814244402656114852017-12-13T20:21:00.002-08:002017-12-13T20:21:41.638-08:00.सकारात्मक सपने .... SAMIKSHA<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कृति ...सकारात्मक सपने <br />लेखिका ...अनुभा श्रीवास्तव प्रकाशक ... डायमण्ड पाकेट बुक्स दिल्ली <br />साहित्य अकादमी म प्र. संस्कृति परिषद के सहयोग से प्रकाशित <br />मूल्य ...११० रु<br />पृष्ठ .. १२४<br />युवा लेखिका ने समय समय पर यत्र तत्र विभिन्न विषयो पर युवा सरोकारो के स्फुट आलेख लिखे , जिनमें से शाश्वत मूल्यो के आलेखो को प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित कर प्रकाशित किया गया है . खूशी की तलाश , आपदा प्रबंधन , कन्या भ्रूण हत्या , स्थाई चरित्र निर्माण हेतु नैतिकता की आवश्यकता , कम्प्यूटर से जीवन जीने की कला सीखने की प्रेरणा , देश बनाने की जबाबदारी युवा कंधों पर , कचरे के खतरे , धार्मिक पर्यटन की विरासत , आरक्षण धर्म और संस्कृति , आम सहमति से समस्याओ का स्थाई निदान , कागज जलाना मतलब पेड जलाना , भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई , तोड़ फोड़ राष्ट्रीय अपव्यय , शब्द मरते नहीं , कैसे हो गांवो का विकास , मुखिया मुख सो चाहिये , गर्व है सेना और संविधान पर , कार्पोरेट जगत और हिन्दी , संचार क्रांति , भ्रष्टाचार के विरुद्ध लडाई , महिलायें समाज की धुरी , जीवन और मूल्य जैसे समसामयिक विषयो पर आज के युवा मन के विचारो को प्रतिबिंबित करते छोटे छोटे सारगर्भित तथ्यपूर्ण आलेखो में अभिव्यक्त किया गया है . लेख विषय की सहज अभिव्यक्ति करते हैं व मानसिक भूख शांत करते हैं . किताब प्रमुख बुक स्टोर्स पर उपलब्ध है , sales@dpb.in से या डायमण्ड पाकेट बुक्स ओखला इंडस्ट्रियल स्टेट दिल्ली २० से मंगवाई जा सकती है . पुस्तक पढ़ने योग्य है ,वैचारिक स्तर पर संदर्भ हेतु संग्रहणीय भी है . युवाओ हेतु विषेश रूप से बहुउपयोगी है .<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkt245fIPaK0JobIdH9RWOQkerTTsSXkzqZAUYIQbcax-QNzOg_0wMq8II_oE_G7qZLPbjaZQccQnaKNQ_LF_NLapYIxVfd1VvZI318_8F9ljmw2ipsjsrlafAMGKCbIiqG7UCoegRuCs/s1600/20171214_091519.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1479" data-original-width="1600" height="295" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkt245fIPaK0JobIdH9RWOQkerTTsSXkzqZAUYIQbcax-QNzOg_0wMq8II_oE_G7qZLPbjaZQccQnaKNQ_LF_NLapYIxVfd1VvZI318_8F9ljmw2ipsjsrlafAMGKCbIiqG7UCoegRuCs/s320/20171214_091519.jpg" width="320" /></a></div>
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Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-11561611858406783192017-07-06T01:39:00.002-07:002017-07-06T01:39:55.140-07:00कैसे रुके ब्रेन ड्रेन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
देश से युवा वैज्ञानिको का विदेश पलायन एक बड़ी समस्या है . इजराइल जैसे छोटे देश में स्वयं के इनोवेशन हो रहे हैं किन्तु हमारे देश में हम ब्रेन ड्रेन की समस्या से जूझ रहे हैं . मेरा मानना है कि छोटे छोटे क्षेत्रो में मौलिक खोज को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है . वैश्विक स्तर की शिक्षा प्राप्त करके भी युवाओ को देश लौटना बेहद जरूरी है . इसके लिये देश में उन्हें विश्वस्तरीय सुविधायें व रिसर्च का वातावरण देश में ही दिया जाना आवश्यक है . और उससे भी पहले दुनिया की नामी युनिवर्सिटीज में कोर्स पूरा करने के लिये आर्थिक मदद भी जरूरी है . वर्तमान में ज्यादातर युवा बैंको से लोन लेकर विदेशो में उच्च शिक्षा हेतु जा रहे हैं , उस कर्ज को वापस करने के लिये मजबूरी में ही उन्हें उच्च वेतन पर विदेशी कंपनियो में ही नौकरी करनी पड़ती है , फिर वे वही रच बस जाते हैं .<br />
जरूरी है कि इस दिशा में चिंतन मनन ,और जरूरी निर्णय तुरन्त लिए जावें</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-35681958403331701812017-03-02T19:43:00.002-08:002017-03-02T19:43:30.966-08:00नई शुरुवात करने का पर्व होली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
परस्पर वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने का पर्व होली<br /><br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव<br /><br />ए १ , शिलकुन्ज , विद्युत मण्डल कालोनी नयागांव , जबलपुर<br /><br />vivek1959@yahoo.co.in<br /><br />9425806252, 70003757987<br /><br /> हमारे मनीषियो द्वारा समय समय पर पर्व और त्यौहार मनाने का प्रचलन ॠतुओ के अनुरूप मानव मन को बहुत समझ बूझ कर निर्धारित किया गया है .जब ठंड समाप्त होने लगती है , गेंहूं चने की नई फसल आने को होती है , मौसम में आम की बौर की महक की मस्ती छाने लगती है , बाग बगीचो में , जंगलो तक में टेसू व अन्य फूल खिले होते हैं तब फागुन की पूर्णिमा की रात लकड़ियों व उपलों से बनी होली का विधिवत पूजन कर ,गुझिया पपड़ी आदि पकवानों का भोग लगा कर होलिका दहन किये जाने की परम्परा है . इस बहाने लोग एकत्रित होते हैं , उत्सवी माहौल में नाचने गाने मिलने मिलाने और किंचित पनपी परस्पर कुंठायें व वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने के अवसर उत्पन्न होते हैं . दूसरी सुबह लोग रंग गुलाल लगा कर खुशियां साझा करते हैं .<br /><br /> सारी दुनिया की विभिन्न सभ्यताओ में रंगो से मन का उल्लास प्रगट किया जाता है होली की ही तरह रंगो के तथा अग्नि जलाने के अनेक त्यौहार विश्व के अलग अलग भूभाग पर अलग अलग समय में अलग अलग नामो से मनाये जाते हैं , जो किंचित सभ्यताओ के मिलन या परस्पर प्रभाव जनित हो सकते हैं किन्तु यह तथ्य है कि होली भारत का अति प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था . वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा जाता है. यह पर्व अधिकांशतः उत्तरी भारत में प्रमुखता से मनाया जाता है .<br /><br /> होली मनाये जाने का उल्लेख कई पुरातन पुस्तकों में भी मिलता है जैसे जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र , नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों में भी होली का वर्णन मिलता है . प्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का उल्लेख किया है . भारत के अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होली का त्यौहार केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते थे . अकबर और जोधा तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के होली खेलने का वर्णन मिलता है . अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है. वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे. मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है. प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर होलिका दहन व रंग खेलने के चित्र देखने मिलते हैं. विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी के एक चित्र फलक पर राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है.<br /><br /> संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है . श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है. अन्य रचनाओं में 'रंग' नामक उत्सव का वर्णन है जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली तथा कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् शामिल हैं. कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही 'वसन्तोत्सव' को अर्पित है. भारवि, माघ और अन्य कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है. चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है. भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है. आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन कवि बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों को होली वर्णन प्रिय रहा है . <br /><br /> राधा कृष्ण के बीच खेली गई प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होली के माध्यम से सगुण साकार भक्तिमय प्रेम और निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम का निष्पादन कवियो ने किया है . सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएँ लिखी हैं जो आज भी जन सामान्य में लोकप्रिय हैं. आधुनिक हिंदी कहानियों में प्रेमचंद की राजा हरदोल, प्रभु जोशी की अलग अलग तीलियाँ, तेजेंद्र शर्मा की एक बार फिर होली, ओम प्रकाश अवस्थी की होली मंगलमय हो तथा स्वदेश राणा की हो ली में होली के अलग अलग रूपो के वर्णन देखने को मिलते हैं . भारतीय फ़िल्मों में भी होली के दृश्यों और गीतों को प्रमुखता व सुंदरता के साथ चित्रित किया गया है .<br /><br /> वैष्णव व शैव संप्रदायो ने होली की व्याख्या अपने अपने इष्ट के अनुरूप कर ली थी . होलिका दहन की प्रह्लाद की सुप्रसिद्ध कथा के अतिरिक्त यह पर्व राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जोड़ कर मनाया जाता है तो दूसरी ओर शैव संप्रदाय का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं . <br /><br /><br /> वर्तमान स्वरूप में होली का त्योहार सार्वजनिक उत्सव के रूप में ही अधिक लोकप्रिय हो चला है . मोहल्लो के चौराहो , क्लबो , सोसायटियो में सार्वजनिक मैदानो या पर युवको की टोलियां सार्वजनिक चंदे से होली का झंडा गाड़कर उसके चारो और लकड़ियां लगाकर और होलिका व प्रहलाद की मूर्तियां सजाकर विद्युत प्रकाश से रंगबिरंगी सजावट कर डी जे पर गीत संगीत बजाकर होलीका दहन का आयोजन करते हैं .पारम्परिक रूप से गांवो में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है.भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है, इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है. एक माला में सात भरभोलिए होते हैं. होली में आग लगाने से पहले इस माला को बहने भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है. रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है . इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए. इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है. होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है. कटते जंगलो को बचाने और व्यर्थ जलाई जाती लकड़ी के अपव्यय को रोकने के लिये इस वर्ष गोबर के कंडो की ही होली जलाने की अपील नेताओ द्वारा की जती दिख रही है यह शुभ संकेत है , हमेशा से हिन्दू परम्परायें समय के साथ नव परिवर्तन को स्वीकारती आई हैं यह परिवर्तन भी पर्यावरण की रक्षा हेतु उठाया जा रहा एक स्वागतेय कदम है .<br /><br /><br /> होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है , इस दिन लोग गुलाल और रंगों से खेलते हैं. सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं. गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं . इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं. बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं. सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है . रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं. प्रीति भोज तथा गाने-बजाने , कविताओ , हास्य विनोद के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।<br /><br />घरों में गुझिये , खीर, पूरी कचौड़ी , दही बड़े आदि विभिन्न व्यंजन बनाये जाते हैं, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं .<br /><br /> <br /><br /> स्थानीय परम्पराओ के साथ होली का पर्व मनाने में विभिन्नता परिलक्षित होती है . ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है. बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है. इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं. इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है. कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं. हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है . बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है , जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है. महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्लाशक्ति प्रदर्शन तो तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है . मणिपुर में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है, दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है . भगोरिया , जो होली का ही एक रूप है. बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली में धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के श्रंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है .प्रत्येक परम्परा में आंतरिक उत्साह को प्रगट करने की शैली की विविधता भले ही हो पर मूल स्वरूप में होली कृष्ण लीला से जोड़ते हुये , प्रकृति से तादात्म्य बिठाते हुये उल्लास मनाने का पर्व है .<br /><br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव<br /><br />ए १ , शिलकुन्ज , विद्युत मण्डल कालोनी नयागांव , जबलपुर<br /><br />vivek1959@yahoo.co.in<br /><br />9425806252, 70003757987</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-55179361121868094902016-07-01T07:23:00.002-07:002016-07-01T07:23:20.184-07:00जलाशयो , वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जावे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जल संग्रह गहरा हो ऊंचा नहीं <br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र <br />अधीक्षण अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनी<br />फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स<br />ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८ <br />फोन ०७६१२६६२०५२<br /><br /><br /> पानी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है . सारी सभ्यतायें नैसर्गिक जल स्रोतो के तटो पर ही विकसित हुई हैं . बढ़ती आबादी के दबाव में , तथा ओद्योगिकीकरण से पानी की मांग बढ़ती ही जा रही है . इसलिये भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और परिणाम स्वरूप जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है . नदियो पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाये गये हैं . बांधो की ऊंचाई को लेकर अनेक जन आंदोलन हमने देखे हैं . बांधो के दुष्परिणाम भी हुये , जंगल डूब में आते चले गये और गांवो का विस्थापन हुआ . बढ़ती पानी की मांग के चलते जलाशयों के बंड रेजिंग के प्रोजेक्ट जब तब बनाये जाते हैं . अब समय आ गया है कि जलाशयो , वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जावे . <br /> यांत्रिक सुविधाओ व तकनीकी रूप से विगत दो दशको में हम इतने संपन्न हो चुके हैं कि समुद्र की तलहटी पर भी उत्खनन के काम हो रहे हैं . समुद्र पर पुल तक बनाये जा रहे हैं बिजली और आप्टिकल सिग्नल केबल लाइनें बिछाई जा रही है . तालाबो , जलाशयो की सफाई के लिये जहाजो पर माउंटेड ड्रिलिंग , एक्सकेवेटर , मडपम्पिंग मशीने उपलब्ध हैं . कई विशेषज्ञ कम्पनियां इस क्षेत्र में काम करने की क्षमता सम्पन्न हैं .मूलतः इस तरह के कार्य हेतु किसी जहाज या बड़ी नाव , स्टीमर पर एक फ्रेम माउंट किया जाता है जिसमें मथानी की तरह का बड़ा रिग उपकरण लगाया जाता है , जो जलाशय की तलहटी तक पहुंच कर मिट्टी को मथकर खोदता है , फिर उसे मड पम्प के जरिये जलाशय से बाहर फेंका जाता है . नदियो के ग्रीष्म काल में सूख जाने पर तो यह काम सरलता से जेसीबी मशीनो से ही किया जा सकता है . नदी और बड़े नालो मे भी नदी की ही चौड़ाई तथा लगभग एक किलोमीटर लम्बाई में चम्मच के आकार की लगभग दस से बीस मीटर की गहराई में खुदाई करके रिजरवायर बनाये जा सकते हैं . इन वाटर बाडीज में नदी के बहाव का पानी भर जायेगा , उपरी सतह से नदी का प्रवाह भी बना रहेगा जिससे पानी का आक्सीजन कंटेंट पर्याप्त रहेगा . २ से ४ वर्षो में इन रिजरवायर में धीरे धीरे सिल्ट जमा होगी जिसे इस अंतराल पर ड्रोजर के द्वारा साफ करना होगा . नदी के क्षेत्रफल में ही इस तरह तैयार जलाशय का विस्तार होने से कोई भी अतिरिक्त डूब क्षेत्र जैसी समस्या नही होगी . जलाशय के पानी को पम्प करके यथा आवश्यकता उपयोग किया जाता रहेगा . <br /> अब जरूरी है कि अभियान चलाकर बांधो में जमा सिल्ट ही न निकाली जाये वरन जियालाजिकल एक्सपर्टस की सलाह के अनुरूप बांधो को गहरा करके उनकी जल संग्रहण क्षमता बढ़ाई जाने के लिये हर स्तर पर प्रयास किये जायें . शहरो के किनारे से होकर गुजरने वाली नदियो में ग्रीष्म काल में जल धारा सूख जाती है , हाल ही पवित्र क्षिप्रा के तट पर संपन्न उज्जैन के सिंहस्थ के लिये क्षिप्रा में नर्मदा नदी का पानी पम्प करके डालना पड़ा था . यदि क्षिप्रा की तली को गहरा करके जलाशय बना दिया जावे तो उसका पानी स्वतः ही नदी में बारहो माह संग्रहित रहा आवेगा . इस विधि से बरसात के दिनो में बाढ़ की समस्या से भी किसी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है . इतना ही नही गिरते हुये भू जल स्तर पर भी नियंत्रण हो सकता है क्योकि गहराई में पानी संग्रहण से जमीन रिचार्ज होगी , साथ ही जब नदी में ही पानी उपलब्ध होगा तो लोग ट्यूब वेल का इस्तेमाल भी कम करेंगे . इस तरह दोहरे स्तर पर भूजल में वृद्धि होगी . नदियो व अन्य वाटर बाडीज के गहरी करण से जो मिट्टी , व अन्य सामग्री बाहर आयेगी उसका उपयोग भी भवन निर्माण , सड़क निर्माण तथा अन्य इंफ्रा स्ट्रक्चर डेवलेपमेंट में किया जा सकेगा . वर्तमान में इसके लिये पहाड़ खोदे जा रहे हैं जिससे पर्यावरण को व्यापक स्थाई नुकसान हो रहा है , क्योकि पहाड़ियो की खुदाई करके पत्थर व मुरम तो प्राप्त हो रही है पर इन पर लगे वृक्षो का विनाश हो रहा है , एवं पहाड़ियो के खत्म होते जाने से स्थानीय बादलो से होने वाली वर्षा भी प्रभावित हो रही है . <br /> नदियो की तलहटी की खुदाई से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि इन नदियो के भीतर छिपी खनिज संपदा का अनावरण सहज ही हो सकेगा . छत्तीसगढ़ में महानदी में स्वर्ण कण मिलते हैं ,तो कावेरी के थले में प्राकृतिक गैस , इस तरह के अनेक संभावना वाले क्षेत्रो में विषेश उत्खनन भी करवाया जा सकता है . <br /> पुरातात्विक महत्व के अनेक परिणाम भी हमें नदियो तथा जलाशयो के गहरे उत्खनन से मिल सकते हैं , क्योकि भारतीय संस्कृति में आज भी अनेक आयोजनो के अवशेष नदियो में विसर्जित कर देने की परम्परा हम पाले हुये हैं . नदियो के पुलो से गुजरते हुये जाने कितने ही सिक्के नदी में डाले जाने की आस्था जन मानस में देखने को मिलती है . निश्चित ही सदियो की बाढ़ में अपने साथ नदियां जो कुछ बहाकर ले आई होंगी उस इतिहास को अनावृत करने में नदियो के गहरी करण से बड़ा योगदान मिलेगा . <br /> पन बिजली बनाने के लिये अवश्य ऊँचे बांधो की जरूरत बनी रहेगी , पर उसमें भी रिवर्सिबल रिजरवायर , पम्प टरबाईन टेक्नीक से पीकिंग अवर विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देकर गहरे जलाशयो के पानी का उपयोग किया जा सकता है . <br /> मेरे इस आमूल मौलिक विचार पर भूवैज्ञानिक , राजनेता , नगर व ग्राम स्थानीय प्रशासन , केद्र व राज्य सरकारो को तुरंत कार्य करने की जरुरत है , जिससे महाराष्ट्र जैसे सूखे से देश बच सके कि हमें पानी की ट्रेने न चलानी पड़े , बल्कि बरसात में हर क्षेत्र की नदियो में बाढ़ की तबाही मचाता जो पानी व्यर्थ बह जाता है तथा साथ में मिट्टी बहा ले जाता है वह नगर नगर में नदी के क्षेत्रफल के विस्तार में ही गहराई में साल भर संग्रहित रह सके और इन प्राकृतिक जलाशयो से उस क्षेत्र की जल आपूर्ति वर्ष भर हो सके. <br /><br /></div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-31415102995645927162016-04-24T02:25:00.002-07:002016-04-24T02:25:26.333-07:00धार्मिक पर्यटन की हमारी सांस्कृतिक विरासत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
धार्मिक पर्यटन की हमारी सांस्कृतिक विरासत <br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव<br />OB 11, विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.<br />फोन ०७६१ २६६२०५२, ०९४२५८०६२५२<br />vivek1959@yahoo.co.in<br /><br /><br /> <br /> देश भर में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं . १ गुजरात काठियावाड़ में श्री सोमनाथ ,२ श्री शैल पर श्री मल्लिकार्जुन , ३ उज्जैन में श्री महाकाल , ४ मध्यप्रदेश में ही ॐकारेश्वर ,५ झारखण्ड में श्री वैद्यनाथ ,६ महाराष्ट्र में डाकिनी नामक स्थान में श्री भीमशङ्कर , ७ तमिलनाडु में सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, ८ गुजरात दारुकावन में श्रीनागेश्वर, ९ उत्तर प्रसाद वाराणसी में श्री विश्वनाथ, १० नासिक महाराष्ट्र में गौतमी ,गोदावरी के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, ११ उत्तराखण्ड हिमालय पर केदारखंड में श्री केदारनाथ और १२ महाराष्ट्र औरंगाबाद में श्री घुश्मेश्वर नामक भगवान शंकर के ये स्वरूप विराजित हैं .प्रत्येक हिंदू जीवन में कम से कम एक बार इन ज्योतिर्लिंगो के दर्शन को लालायित रहता है . और इस तरह वह शुद्ध धार्मिक मनो भाव से जीवन काल में कभी न कभी इन तीर्थ स्थलो का पर्यटन करता है . <br /> इसी तरह ५१ शक्तिपीठ भारत भूमि पर यत्र तत्र फैले हुये हैं .मान्यता है कि जब भगवान शंकर को यज्ञ में निमंत्रित न करने के कारण सती देवी माँ ने यज्ञ अग्नि में स्वयं की आहुति दे दी थी तो क्रुद्ध भगवान शंकर उनके शरीर को लेकर घूमने लगे और सती माँ के शरीर के विभिन्न हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप पर जिन विभिन्न स्थानो पर गिरे वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई . प्रत्येक स्थान पर भगवान शंकर के भैरव स्वरूप की भी स्थापना है .शक्ति का अर्थ माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है . ये स्थान हैं 1.किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। 2. कात्यायनी शक्तिपीठ वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है। 3. करवीर शक्तिपीठ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। 4. श्री पर्वत शक्तिपीठ इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं। 5. विशालाक्षी शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है , शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं। 6. गोदावरी तट शक्तिपीठ आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। 7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ , तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिसागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त ,मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। 8. पंच सागर शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। 9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ , हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है . जहां सती की जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं। 10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उर्ध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं। 11. अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।12. जनस्थान शक्तिपीठ <br />महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है , यहां माता की ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं। 13. कश्मीर शक्तिपीठ जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं। 14. नन्दीपुर शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं . 15. आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल शक्तिपीठ, जहां माता की ग्रीवा गिरी था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं। 16. पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता की उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं। 17. मिथिला शक्तिपीठ इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं . 18. रत्नावली शक्तिपीठ, इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं। 19. अम्बाजी शक्तिपीठ गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है। 20. जालंध्र शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है , जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।.21. रामागरि शक्तिपीठ इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं। 22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था। 23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं। 24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं। 25. बहुला शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं। 26. उज्जयिनी शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता की कुहनी गिरी था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं। 27. मणिवेदिका शक्तिपीठ , राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं। 28. प्रयाग शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद है इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है। 29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ , उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरी थी . यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं। 30. कांची शक्तिपीठ , तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं। 31. कालमाध्व शक्तिपीठ इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं। 32. शोण शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर में शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्र गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं। 33. कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता की योनि गिरी था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं। 34. जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं। 35. मगध् शक्तिपीठ बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं। 36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ , पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं। 37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं। 38 . विभाष शक्तिपीठ , पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं। 39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है , जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता के दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं। 40. युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है। 41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के 'दायें पाँव की उँगलियाँ' गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं। 42. कालीघाट शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिद्ध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं। 43. मानस शक्तिपीठ तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता की दाहिनी हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं। 44. लंका शक्तिपीठ , श्रीलंका में स्थित है . जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, वह निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे। 45. गण्डकी शक्तिपीठ नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं। 6. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं। 7. हिंगलाज शक्तिपीठ पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है। 8. सुगंध शक्तिपीठ , देश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।49. बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।50. चट्टल शक्तिपीठ बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।51. यशोर शक्तिपीठ बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।<br /><br /> तरह भारत के चार दिशाओ के चार महत्वपूर्ण मंदिर पूर्व में सागर तट पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरी, दक्षिण में रामेश्वरम, पश्चिम में भगवान कृृण की द्वारका और उत्तर में बद्रीनाथ की चारधाम यात्रा भी धार्मिक पर्यटन का अनोखा उदाहरण है . इन मंदिरों को 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने एक सूत्र में पिरोया था। इसके अतिरिक्त हिमालय पर स्थित छोटा चार धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ शिव मंदिर, यमुनोत्री एवं गंगोत्री देवी मंदिर शामिल हैं। यह चारों धाम हिंदू धर्म में अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बीसवीं शताब्दि के मध्य में हिमालय की गोद में बसे इन चारों तीर्थस्थलों को छोटा' विशेषण दिया गया जो आज भी यहां बसे इन देवस्थानों को परिभाषित करते हैं। छोटा चार धाम के दर्शन के लिए 4,000 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई तक की चढ़ाई करनी होती है। यह डगर कहीं आसान तो कहीं बहुत कठिन है।<br /><br /> इन देव स्थलो के अतिरिक्त हमारी संस्कृति में नदियो के संगम स्थलो पर मकर संक्रांति पर , चंद्र ग्रहण व सूर्यग्रहण के अवसरो पर नदियो में , कार्तिक मास में नदियो में पवित्र स्नान की भी परम्परायें हैं . हरिद्वार , प्रयाग , नासिक तथा उज्जैन में १२ वर्षो के अंतराल पर आयोजित होते कुंभ के मेले तो मूलतः स्नान से मिलने वाली शारीरिक तथा मानसिक शुचिता को ही केंद्र में रखकर निर्धारित किये जाने के विलक्षण उदाहरण हैं . <br /> स्नान का महत्व निर्विवाद है ,शुद्धता और पवित्रता के लिये प्रतिदिन प्रातः काल हम नहाते हैं .हमारी शरीर से निकलते पसीने व वातावरण के सूक्ष्म कण , धूल इत्यादि से त्वचा पर जो मैल व गंध का जो आवरण बन जाता है वह साफ पानी से नहाने से निकल जाता है और त्वचा को स्निग्धता तथा स्फूर्ति मिलती है , इस भौतिक स्चच्छता का हमारे मन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, शरीर की थकान मिट जाती है . हमारे रोमकूप खुल जाते हैं , जिससे त्वचा का सौंदर्य भी बढ़ता है आंतरिक स्फूर्ति का संचरण होता है . इसीलिये ठंड के दिनो में सनबाथ, स्टीमबाथ, लिया जाता है तो गर्मियों में टब बाथ का महत्व है .आयुर्वेद में भोजन के तुरंत बाद स्नान वर्जित कहा गया है . मकर संक्रांति पर पंचकर्म और मिट्टी, उबटन, तरह तरह के साबुन बाडी वाश आदि से जल स्नान का प्रचलन हमारी संस्कृति का हिस्सा है . योग में शरीर के आंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, कुंजल, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि अनेक विधियां बताई जाती हैं . गर्म पानी से नहाने पर रक्त-संचार पहले कुछ उतेजित होता है किन्तु बाद में मंद पड़ जाता है, लेकिन ठंडे पानी से नहाने पर रक्त-संचार पहले मंद पड़ता है और बाद में उतेजित होता है जो कि अधिक लाभदायक है। <br /> आज देश में राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन चलाया जा रहा है , स्वयं प्रधानमंत्री जी बार बार नागरिको में स्चच्छता के संस्कार रोपने का कार्य विशाल स्तर पर करते दिख रहे हैं . ऐसे समय में स्नान को केंद्र में रखकर ही कुंभ जैसा महा पर्व मनाया जा रहा है . जो हजारो वर्षो से हमारी संस्कृति का हिस्सा है . पीढ़ीयों से जनमानस की धार्मिक भावनायें और आस्था कुंभ स्नान से जुड़ी हुई हैं . प्रश्न है कि क्या कुंभ स्नान को मेले का स्वरूप देने के पीछे केवल नदी में डुबकी लगाना ही हमारे मनीषियो का उद्देश्य रहा होगा ? इस तरह के आयोजनो को नियमित अंतराल पर निर्ंतर स्वस्फूर्त आयोजन करने की व्यवस्था बनाने का निहितार्थ समझने की आवश्यकता है . आज तो लोकतात्रिक शासन है हमारी ही चुनी हुई सरकारें हैं पर कुंभ के मेलो ने तो पराधीनता के युग भी देखे हैं , आक्रांता बादशाहों के समय में भी कुंभ संपन्न हुये हैं और इतिहास गवाह है कि तब भी तत्कालीन प्रशासनिक तंत्र को इन भव्य आयोजनो का व्यवस्था पक्ष देखना ही पड़ा . <br /> वास्तव में कुंभ स्नान शुचिता का प्रतीक है , शारीरिक और मानसिक शुचिता का . जो साधुसंतो के अखाड़े इन मेलो में एकत्रित होते हैं वहां सत्संग होता है , गुरु दीक्षायें दी जाती हैं . इन मेलों के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नयन के लिये जनमानस तरह तरह के व्रत , संकल्प और प्रयास करता है . धार्मिक यात्रायें होती हैं . लोगों का मिलना जुलना , वैचारिक आदान प्रदान हो पाता है . धार्मिक पर्यटन हमारी संस्कृति की विशिष्टता है . पर्यटन नये अनुभव देता है साहित्य तथा नव विचारो को जन्म देता है , हजारो वर्षो से अनेक आक्रांताओ के हस्तक्षेप के बाद भी भारतीय संस्कृति अपने मूल्यो के साथ इन्ही मेलों समागमो से उत्पन्न अमृत उर्जा से ही अक्ष्ण्य बनी हुई है . <br /> <br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव<br /><br /><br /><br /><br /></div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-25204111701765472292014-12-11T05:32:00.000-08:002014-12-11T05:32:07.595-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table border="0" cellpadding="0" cellspacing="0" style="width: 98%px;"><tbody>
<tr><td align="center" class="innerpage-article-title" colspan="2" valign="top"><h2>
<span id="ctl00_ContentPlaceHolder1_lblNewsTitle" style="font-weight: bold;">साहित्य अकादमी द्वारा विविध-विधाओं के राष्ट्रीय-प्रादेशिक पुरस्कार घोषित</span></h2>
</td></tr>
<tr><td align="center" colspan="2" valign="middle"><h3>
<span id="ctl00_ContentPlaceHolder1_lblSubTitle"></span><span lang="HI"><span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;">हरिकृष्ण
प्रेमी पुरस्कार के लिये श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव-जबलपुर की कृति
'हिंदोस्तां हमारा' के लिये</span></span> </h3>
</td></tr>
<tr><td align="right" class="innerpage-article-city" colspan="2" style="height: 20px;" valign="bottom"><span id="ctl00_ContentPlaceHolder1_lblLocPDtUTm">भोपाल : गुरूवार, दिसम्बर 11, 2014, 17:24 IST</span></td></tr>
<tr><td align="center" class="innerpage-article-content" colspan="2" valign="top"><span lang="HI">
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;">साहित्य
अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल द्वारा विभिन्न विधा में
प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों के लिए वर्ष 2011 एंव 2012 के पुरस्कार की घोषणा
कर दी गई है।</span></div>
<span style="font-family: Mangal;">
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-size: x-small;">अखिल
भारतीय स्तर के पुरस्कार में 10 लेखक के लिए 51 हजार के मान से 51 लाख,
प्रादेशिक पुरस्कार में 17 लेखक के लिए 31 हजार के मान से 5.27 लाख और 18
विभिन्न पाण्डुलिपि के लिए प्रति पाण्डुलिपि 10 हजार के मान से 1.80 लाख की
राशि दी जायेगी।</span></div>
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-size: x-small;">अखिल
भारतीय पुरस्कारों में वर्ष 2011 माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के लिये डॉ.
प्रभा दीक्षित-कानपुर की कृति 'स्त्री अस्मिता के सवाल', मुक्तिबोध
पुरस्कार के लिये डॉ. बीना बुदकी-जम्मू की कृति 'शरणार्थी', वीरसिंह देव
पुरस्कार के लिये श्री अशोक जमनानी-होशंगाबाद की कृति 'खम्मा', रामचंद्र
शुक्ल पुरस्कार के लिये डॉ.प्रमोद शर्मा-नागपुर की कृति 'समकालीन कविता का
समीकरण' और भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार के लिये श्री सुरेश शुक्ल-लखनऊ की
कृति 'गंगा से ग्लोमा तक' चयनित हुई हैं।</span></div>
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-size: x-small;">वर्ष
2012 के अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के लिये डॉ. रामेश्वर
पाण्डेय-रीवा की कृति 'उत्तर आधुनिक तथा अन्य निबंध', मुक्तिबोध पुरस्कार
के लिये श्री बाबूराम त्रिपाठी-वाराणसी की कृति 'एक सुबह और मिल जाती',
वीरसिंह देव पुरस्कार के लिये श्रीमती स्नेह ठाकुर की कृति 'कैकेयी',
रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार के लिये श्री कृष्ण मुरारी मिश्रा की कृति 'आद्य
बिम्ब और साहित्यालोचन' और भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार श्री चंद्रसेन
विराट-इंदौर की कृति 'ओ, गीत के गरूड़' अखिल भारतीय पुरस्कार के लिये चयनित
हुई हैं।</span></div>
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-size: x-small;">वर्ष
2011 के प्रादेशिक पुरस्कारों में पं. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' पुरस्कार के
लिये डॉ. देवेन्द्र दीपक-भोपाल की कृति 'संत रविदास की राम कहानी', सुभद्रा
कुमारी चौहान पुरस्कार के लिये श्री मधुर कुलश्रेष्ठ-गुना 'अनंत की तलाश
में', श्रीकृष्ण सरल पुरस्कार के लिये डॉ. प्रेम भारती-भोपाल की कृति
'निबंध देह गंध', नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार के लिये डॉ. आरती दुबे-भोपाल
की कृति 'हिन्दी के श्रेष्ठ गीत समीक्षक' और हरिकृष्ण प्रेमी पुरस्कार के
लिये कोई कृति पुरस्कार योग्य नहीं पाई गई। इसी श्रेणी में राजेन्द्र
अनुरागी पुरस्कार के लिये डॉ. कान्ति कुमार जैन-सागर की कृति 'बैकुंठपुर
में बचपन', दुष्यंत कुमार पुरस्कार के लिये श्री बसंत सकरगाए-भोपाल की कृति
'निगहबानी में फूल', ईसुरी पुरस्कार के लिये श्री अनूप अशेष-सतना की कृति
'दोपहर' और जहूर बख्श के लिये पुरस्कार सुश्री अल्पना शर्मा-भोपाल की कृति
'खिलौनों की खुशबू' का चयन किया गया है।</span></div>
</span>
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;">वर्ष
2012 के प्रादेशिक पुरस्कारों में पं. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' पुरस्कार के
लिये सुश्री शरद सिंह-सागर की कृति 'कस्बाई सिमोन', सुभद्रा कुमारी चौहान
पुरस्कार के लिये सुश्री पद्मा शर्मा-शिवपुरी की कृति 'जल समाधि एवं अन्य
कहानियाँ', श्रीकृष्ण सरल पुरस्कार के लिये डॉ. अनामिका तिवारी-जबलपुर की
कृति 'बूँद', नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार के लिये प्रो. बी.एल.
आच्छा-उज्जैन की कृति 'आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास', हरिकृष्ण
प्रेमी पुरस्कार के लिये श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव-जबलपुर की कृति
'हिंदोस्तां हमारा', राजेन्द्र अनुरागी पुरस्कार के लिये डॉ. लक्ष्मीनारायण
शोभन-गुना की कृति 'कही अनकही', दुष्यंत कुमार पुरस्कार के लिये श्री
मनोहर मनु-नरसिंहगढ़ की कृति 'आँचल गीला हो जाएगा', ईसुरी पुरस्कार के लिये
डॉ. जगदीश प्रसाद रावत की कृति 'जगदीश्वर की चौकड़ियाँ' को दिया जायेगा।
'जहूर बख्श'</span><span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;"><span lang="PT-BR"> </span></span><span lang="HI"><span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;">पुरस्कार श्रेणी में कोई कृति पुरस्कार योग्य नहीं पाई गई।</span></span></div>
<div align="justify" style="line-height: 165%; text-indent: 20px;">
<span style="font-family: Mangal; font-size: x-small;">वर्ष
2011 एवं 2012 में प्रदेश के लेखक की पहली कृति की प्रकाशन योजना में 'मैं
भारत हूँ' श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत-ग्वालियर, 'पूजा के पुष्प' श्री
राकेश सिंहासने-बालाघाट, 'समझ के दायरे में' श्री भुवनेश्वर
उपाध्याय-सेवढ़ा, 'अनुगूँज' श्री मनीष श्रीवास्तव-भोपाल, 'खिलता बचपन' श्री
अखिल शर्मा-मुरैना, 'नदी की धार सी संवेदनाएँ' श्री रोहित
रूसिया-छिन्दवाड़ा, 'मन के मनक' सुश्री द्रोपदी चंदनानी-भोपाल, 'चाहते हैं
फिर से' श्री नीलेश कुमार कालभोर-खंडवा, 'जाते हुए पतझड़ को देख कर' डॉ.
किशोर सोनवाले लांजी, 'ढेंचू-ढेंचू' श्री आशीष सोनी-नरसिंहपुर, 'शिकवा
ईश्वर से' सुश्री कीर्ति झगेकर-भोपाल, 'इंसानी टकसाल' श्री कलीमउद्दीन
शेख-इंदौर, 'कहानी संकलन' श्री रामबरन शर्मा-मुरैना, 'नीर-क्षीर' डॉ. साधना
बलवटे-भोपाल, 'नारी अस्मिता पर बलिदान-'दामिनी' श्रीमती सीमा निगम-उज्जैन,
'विचार गति' श्री राजू बी आठनेरे-बैतूल, 'कालिदास की सौंदर्य शास्त्रीय
शब्दावली का निर्वचन' डॉ. सिद्धार्थ सोमकुंवर-भोपाल और 'बदलते रिश्ते' श्री
कैलाश भूरिया-धार की पांडुलिपि प्रकाशन सहायता अनुदान के लिए स्वीकृत हुई
हैं।</span></div>
</span></td></tr>
<tr><td align="right" class="innerpage-article-author" colspan="2" style="height: 25px;" valign="bottom"><span id="ctl00_ContentPlaceHolder1_lblRepName">ऋषभ जैन</span></td></tr>
</tbody></table>
</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-69697501762974922072013-12-10T08:27:00.000-08:002013-12-10T08:27:11.710-08:00केवल पक्ष या विपक्ष नही मुद्दो पर वैचारिक एकता ..लोकतंत्र की जरूरत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
केवल पक्ष या विपक्ष नही मुद्दो पर वैचारिक एकता ..लोकतंत्र की जरूरत<br /><br />विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र<br />ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी<br />रामपुर, जबलपुर (मप्र) मो. 9425806252<br /><br /> दिल्ली में आये वर्तमान जनादेश तथा ऐसे ही पिछले अनेक खण्डित चुनाव परिणामो से वर्तमान संवैधानिक प्रावधानो में संशोधन की जरूरत लगती है . सरकार बनाने के लिये बड़ी पार्टी के मुखिया को नही वरन चुने गये सारे प्रतिनिधियो के द्वारा उनमें आपस में चुने गये मुखिया को बुलाया जाना चाहिये . आखिर हर पार्टी के चुने गये प्रतिनिधि भले ही उनके क्षेत्र के वोटरों के बहुमत से चुने जाते हैं किन्तु हारे हुये प्रतिनिधि को भी तो जनता के ही वोट मिलते हैं , और इस तरह वोट प्रतिशत की दृष्टि से हर पार्टी की सरकार में भागीदारी उचित लगती है . <br /> कोई भी सभ्य समाज नियमों से ही चल सकता है। जनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सुनिश्चित करने के लिए शासन की आवश्यकता होती है। राजतंत्र, तानाशाही, धार्मिक सत्ता या लोकतंत्र, नामांकित जनप्रतिनिधियों जैसी विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र में आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होती है एवं उसे भी जन नेतृत्व करने का अधिकार होता है। भारत में हमने लिखित संविधान अपनाया है। शासन तंत्र को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के उपखंडो में विभाजित कर एक सुदृढ लोकतंत्र की परिकल्पना की है। विधायिका लोकहितकारी नियमों को कानून का रूप देती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है एवं कानून उल्लंघन करने पर न्यायपालिका द्वारा दंड का प्रावधान है। विधायिका के जनप्रतिनिधियों का चुनाव आम नागरिको के सीधे मतदान के द्वारा किया जाता है किंतु हमारे देश में आजादी के बाद के अनुभव के आधार पर , मेरे मत में इस चुनाव के लिए पार्टीवाद तथा चुनावी जीत के बाद संसद एवं विधानसभाओं में पक्ष विपक्ष की राजनीति ही लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी के रूप में सामने आई है।<br /> सत्तापक्ष कितना भी अच्छा बजट बनाये या कोई अच्छे से अच्छा जनहितकारी कानून बनाये विपक्ष उसका विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिए तर्क कुतर्क करने में जरा भी पीछे नहीं रहता। ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि वह विपक्ष में है। हमने देखा है कि वही विपक्षी दल जो विरोधी पार्टी के रूप में जिन बातो का सार्वजनिक विरोध करते नहीं थकता था , जब सत्ता में आया तो उन्होनें भी वही सब किया और इस बार पूर्व के सत्ताधारी दलो ने उन्हीं तथ्यों का पुरजोर विरोध किया जिनके कभी वे खुले समर्थन में थे। इसके लिये लच्छेदार शब्दो का मायाजाल फैलाया जाता है। ऐसा बार-बार लगातार हो रहा है। अर्थात हमारे लोकतंत्र में यह धारणा बन चुकी है कि विपक्षी दल को सत्ता पक्ष का विरोध करना ही चाहिये . शायद इसके लिये स्कूलो से ही , वादविवाद प्रतियोगिता की जो अवधारणा बच्चो के मन में अधिरोपित की जाती है वही जिम्मेदार हो . वास्तविकता यह होती है कि कोई भी सत्तारूढ दल सब कुछ सही या सब कुछ गलत नहीं करता । सच्चा लोकतंत्र तो यह होता कि मुद्दे के आधार पर पार्टी निरपेक्ष वोटिंग होती, विषय की गुणवत्ता के आधार पर बहुमत से निर्णय लिया जाता , पर ऐसा हो नही रहा है .<br /> अन्ना हजारे या बाबा रामदेव किसी पार्टी या किसी लोकतांत्रिक संस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधी नहीं है किंतु इन जैसे तटस्थ मनिषियों को जनहित एवं राष्ट्रहित के मुद्दो पर अनशन तथा भूख हडताल जैसे आंदोलन करने पड रहे है एवं समूचा शासनतंत्र तथा गुप्तचर संस्थायें इन आंदोलनों को असफल बनाने में सक्रिय है। यह लोकतंत्र की बहुत बडी विफलता है। अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को तो देश व्यापी जनसमर्थन भी मिल रहा है । मेरा मानना यह है कि आदर्श लोकतंत्र तो यह होता कि मेरे जैसा कोई साधारण एक व्यक्ति भी यदि देशहित का एक सुविचार रखता तो उसे सत्ता एवं विपक्ष का खुला समर्थन मिल सकता .<br /> इन अनुभवो से यह स्पष्ट होता है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावना है . दलगत राजनैतिक धु्व्रीकरण एवं पक्ष विपक्ष से उपर उठकर मुद्दों पर आम सहमति या बहुमत पर आधारित निर्णय ही विधायिका के निर्णय हो ऐसी सत्ताप्रणाली के विकास की जरूरत है . इसके लिए जनशिक्षा को बढावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडने की आवश्यकता दिखती है। जब ऐसी व्यवस्था लागू होगी तब किसी मुद्दे पर कोई 51 प्रतिशत या अधिक जनप्रतिनिधि एक साथ होगें तथा किसी अन्य मुद्दे पर कोई अन्य दूसरे 51 प्रतिशत से ज्यादा जनप्रतिनिधि , जिनमें से कुछ पिछले मुद्दे पर भले ही विरोधी रहे हो साथ होगें तथा दोनों ही मुद्दे बहुमत के कारण प्रभावी रूप से कानून बनेगें.<br /> क्या हम निहित स्वार्थो से उपर उठकर ऐसी आदर्श व्यवस्था की दिशा में बढ सकते है एवं संविधान में इस तरह के संशोधन कर सकते है. यह खुली बहस का एवं व्यापक जनचर्चा का विषय है जिस पर अखबारो , स्कूल, कालेज, बार एसोसियेशन, व्यापारिक संघ, महिला मोर्चे, मजदूर संगठन आदि विभिन्न विभिन्न मंचो पर खुलकर बाते होने की जरूरत हैं , जिससे इस तरह के जनमत के परिणामो पर पुनर्चुनाव की अपेक्षा मुद्दो पर आधारित रचनात्मक सरकारें बन सकें जिनमें निर्दलीय जन प्रतिनिधियो की कथित खरीद फरोख्त घोड़ो की तरह न हो बल्कि वे मुद्दो पर अपनी सहमति के आधार पर सरकार का सकारात्मक हिस्सा बन सकें . <br /><br /><br />(लेखक को विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार मिल चुके है)</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-1746016292410145002013-12-08T04:56:00.002-08:002013-12-08T04:56:25.557-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
समाचार<br /><br />वर्तिका के राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित <br /><br />वर्तिका ,
जबलपुर की सक्रिय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था है . २२ दिसम्बर १३
को संस्था २९ वें स्थापना दिवस समारोह का आयोजन रानीदुर्गावती संग्रहालय के
सभागार भंवरताल जबलपुर में कर रही है . इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र
में महत्वपूर्ण योगदान हेतु राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर पुरस्कार दिये
जाने हेतु नामांकन आमंत्रित किये गये थे . एक उच्चस्तरीय चयन समिति ने
वरिष्ठ साहित्यकार तथा साहित्य मनीषि प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध की
अध्यक्षता में निर्णय लेकर इस वर्ष के पुरस्कारो की घोषणा कर दी है . <br />
स्वर्ग विभा वेबसाइट की संस्थापिका डा तारा सिंग मुम्बई को इस वर्ष का साज
जबलपुरी लाइफटाइम वर्तिका अवार्ड दये जाने की घोषणा की गई है . साहित्य
अकादमी के निदेशक डा त्रिभुवन नाथ शुक्ल भोपाल को रामेश्वर शुक्ल अंचल
अलंकरण , श्री संजीव सलिल जबलपुर को कामता प्रसाद गुरू अलंकरण के
अतिरिक्त दिल्ली के श्री जाली अंकल , हैदराबाद के ब्लागर व कवि श्री विजय
सपट्टी , नोयडा की सुश्री सखी सिह , भोपाल के श्री अनवर इस्लाम , जबलपुर के
श्री कुंवर प्रेमिल एवं श्रीमती लक्ष्मी शर्मा को सम्मानित किया जावेगा .
इसके अतिरिक्त वर्तिका की श्रीमती सुनीता मिश्रा को श्रीमती दयावती
श्रीवास्तव शिक्षा वर्तिका अलंकरण तथा दीपक तिवारी को वर्तिका सम्मान
प्रदान किया जावेगा . <br />
वर्तिका ने अभिनव पहल करते हुये सक्रिय साहित्यिक संस्थाओ को भी सम्मानित
करने का निर्णय लिया है और इस वर्ष यह सम्मान गुंजन कला सदन के संस्थापक
श्री ओंकार श्रीवास्तव को दिये जाने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया है .
<br />वर्तमान परिदृश्य में साहित्यकारो की भूमिका विषय पर होगी संगोष्ठी <br />
अलंकरण समारोह रविवार २२ दिसम्बर २०१३ को संध्या ६ बजे से आयोजित किया जा
रहा है . समारोह के मुख्य अतिथि श्री मनु श्रीवास्तव आई ए एस अध्यक्ष एवं
प्रबंध संचालक पावर मैनेजमेंट होंगे . कार्यक्रम की अध्यक्षता हेतु कालिदास
अकादमी के पूर्व निदेशक डा कृष्णकांत चतुर्वेदी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप
में श्रीमती प्रज्ञा ॠचा श्रीवास्तव आई पी एस , आई जी ने सहमति प्रदान की
है . <br />
समारोह के पहले चरण में दोपहर १ बजे से वर्तमान परिदृश्य में साहित्यकारो
की भूमिका विषय पर संगोष्ठी होगी जिसकी अध्यक्षता प्रो सी बी श्रीवास्तव
विदग्ध करेंगे तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्री राजेन्द्र चंद्रकांत राय
व्यक्तव्य देंगे. विवेक रंजन श्रीवास्तव , अध्यक्ष , वर्तिका , ओ बी ११ ,
विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८ को संगोष्ठी में वाचन हेतु
आलेख भेजे जा सकते हैं . <br />
<div class="yj6qo ajU">
<div class="ajR" data-tooltip="Show trimmed content" id=":3pf" role="button" tabindex="0">
<img class="ajT" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" /></div>
</div>
</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-63325075429872314582013-11-13T07:30:00.000-08:002013-11-13T07:30:03.827-08:00वर्तिका के वार्षिकोत्सव में लाइफटाईम एचीवमेंट अवार्ड तथा संस्थाओ को पुरस्कार हेतु नामांकन आमंत्रित<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
समाचार<br /><br />वर्तिका के वार्षिकोत्सव में लाइफटाईम एचीवमेंट अवार्ड तथा संस्थाओ को पुरस्कार हेतु नामांकन आमंत्रित<br /><br />वर्तिका , जबलपुर की सक्रिय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था है . २२ दिसम्बर १३ को संस्था वार्षिकोत्सव आयोजित कर रही है . इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हेतु लाइफटाईम एचीवमेंट अवार्ड दिये जाना प्रस्तावित है . इस हेतु साहित्य प्रेमियो से प्रकाशित किताबो या अन्य साक्ष्य सहित नामांकन आमंत्रित हैं . नामांकन हेतु कोई शुल्क नहीं है . नामांकन स्वयं या कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है .नामांकन की अंतिम तिथि ७ दिसम्बर २०१३ तक है . नामांकन सादे कागज पर स्वयं का तथा नामांकित व्यक्ति या संस्था का पूर्ण विवरण लिखते हुये निम्न पते पर भेजें .<br />विवेक रंजन श्रीवास्तव , अध्यक्ष , वर्तिका , ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८ . ईमेल vivekranjan.vinamra@gmail.com . जिन्हें अवार्ड हेतु चुना जावेगा उनसे किसी तरह का कोई भी शुल्क नही लिया जावेगा .<br />इसी तरह साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओ को भी पुरस्कृत करने की योजना है , जिसके लिये अलग से नामंकन आमंत्रित हैं . वर्तिका की एक उच्चस्तरीय चयन समिति प्राप्त नामांकनो तथा स्वप्रेरित व्यक्तियो व संस्थाओ के योगदान के आधार पर अवार्ड का निर्णय करेगी . विश्वविद्यालयीन स्तर के सुयोग्य पेनल की चयन समिति बनाई गई है . जो दिसम्बर १३ के दूसरे सप्ताह के प्रारंभ में चयन की घोषणा करेगी . </div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-62826262061114195552013-10-14T04:48:00.002-07:002013-10-14T04:59:30.108-07:00१० से १२ जनवरी २०१४ को चेन्नई में तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
१० से १२ जनवरी २०१४ को चेन्नई में तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का भव्य आयोजन किया जा रहा है . आयोजन में
जीवनोपलब्धि सम्मान , कृतियो पर , राजभाषा व पत्रकारिता पर , शिक्षा विद
सम्मान हिन्दी प्राध्यापक व शिक्षक सम्मान तथा प्रचारक पुरस्कार भि दिये
जावेंगे . <br />
विदेशो में हिन्दी का स्वरूप , नारी के प्रति पुरुषो का
नजरिया , कामकाजी माताओ के बच्चो की समस्यायें जैसे विषयो पर वैचारिक सत्र
होंगे . <br />
कहानी पाठन तथा कवि सम्मेलन भी आयोजित किया जावेगा . <br />
<br />
आयोजन हेतु हार्दिक शुभकामनायें . ...<br />
संपर्क madhu.dhawan13@yahoo.com
</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5687648313898620467.post-34107072782428177892012-10-23T03:47:00.001-07:002012-10-23T03:48:21.713-07:00देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
पुस्तक समीक्षा<br />
देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू<br />
<br />
कृति<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)<br />
कवि<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हरेराम समीप<br />
प्रकाषक<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पुस्तक बैंक, फरीदाबाद<br />
पृष्ठ <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>104<br />
मूल्य<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>195-<br />
समीक्षक-<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>विवेक रजंन श्रीवास्तव, संयोजक पाठक मंच<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ओ.बी.11 एमपीर्इबी कालोनी रामपुर जबलपुर<br />
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<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है। विषेष रूप से जब वह कविता जापान जैसे देष से हो जहा वृक्षो के भी बोनसार्इ बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को अभिव्यकित मिलती है। साहित्य विष्वव्यापी होता है। वह किसी एक देष या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकता। जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैषिवक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विष्वविधालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैषिवक साहितियक प्रतिष्ठा दिलवार्इ।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यकित है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्षन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गर्इ। किंतु तीन पकिंतयो मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुषासन आज भी हाइकू की विषेषता है।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है। वे विगत लंबे समय से जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि तीन मूर्ति भवन मे सेवारत है। उन्हें संत कबीर राष्ट्रीय षिखर सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी पुस्तक पुरस्कार, फिराक गोरखपुरी सम्मान जैसे अनेक सृजन सम्मान प्राप्त हो चुके है। स्वाभाविक ही है कि उनके वैषिवक परिदृष्य एवं राष्ट्रीय चिंतन का परिवेष उनकी कविताओ मे भी परिलक्षित होगा। उदाहरण स्वरूप यह हाइकू देखे-<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>किताबें रख<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बस इतना कर<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पढ ले दिल<br />
वसुधैव कुटुम्बक का भारतीय ध्येय और भला क्या है, या फिर,<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गलीचे बुने<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>फिर भी मिले उन्हे<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नंगी जमीन<br />
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हिंदी एवं उदर्ू भाषाओ पर हरे राम समीप का समान अधिकार है। अत: उनके हाइकू मे उदर्ू भाषा के शब्दो का प्रयोग सहज ही मिलता है।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पहने फिरे<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>फरेब के लिबास<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कीमती लोग<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> या<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शराफत ने<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कर रखा है मेरा<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जीना हराम<br />
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कबीर से प्रभावित समीप जी लिखते है<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चाक पे रखे<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गिली मिटटी, सोचू मैं<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गढूं आज क्या<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> और<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कैसा सफर<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जीवन भर चला<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>घर न मिला<br />
अंग्रेजी को देवनागरी मे अपनाते हुये भी उनके अनेक हाइकू बहुत प्रभावोत्पादक है।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हो गए रिष्ते<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पेपर नेपकिन<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>यूज एंड थ्रो<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> या<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>निगल गया<br />
मोबाइल टावर<br />
प्यारी गौरैया<br />
कुल मिलाकर बूढा सूरज मे संकलित हरेराम समीप के हाइकू उनकी सहज अभिव्यकित से उपजे है। वे ऐसे चित्र है जिन्हें हम सब रोज सुबह के अखबार मे या टीवी न्यूज चैनलो मे रोज पढते और देखते है किंतु कवि के अनदेखा कर देते है। किंतु उनके संवदेनषील मन ने परिवेष के इन विविध विषयो को सूक्ष्म शब्दो मे अभिव्यक्त किया है। संकलन मे कुल 450 हाइकू संग्रहित है। सभी एक दूसरे से श्रेष्ठ है। पुस्तक का शीर्षक बूढा सूरज जिस हाइकू पर केनिद्रत है वह इस तरह है।<br />
बूढा सूरज<br />
खदेडे अंधियारे<br />
अन्ना हजारे<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>वर्तमान सामाजिक सिथति मे अन्ना हजारे के लिये इससे बेहतर भला और क्या उपमा दी जा सकती है। कवि से और भी अनेक सूत्र स्वरूप हाइकू की अपेक्षा हिंदी जगत करता है। समीप जी ने गजले, कहानिया और कवितायें भी लिखी है पर हाइकू मे उन्होने जो कर दिखाया है उसके लिये यही कहा जा सकता है कि देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर. समीप जी ने अपने अनुभवो के सागर को हाइकू के छोटे से गागर में सफलता पूर्वक ढ़ाल दिया है .<br />
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विवके रंजन श्रीवास्तव</div>
Vivek Ranjan Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.com1