Thursday 15 February, 2007

खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
विवेक सदन , नर्मदा गंज , मण्डला
म.प्र. भारत पिन ४८१६६१
फोन ०७६४२ २५००६८ ,
मोबाइल ९१ ९४२५१६३९५२
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संदर्भ
# ०६.०८.१९७६ को २५ पैसे का डाक टिकिट जारी करते समय भारत सरकार द्वारा प्रसारित प्रथम दिवस आवरण पत्र के साथ संकलित सामग्री
# कर्मवीर प्रेस जबलपुर से प्रकाशित सुभद्रा कुमारी चौहान के कहानी संग्रह बिखरे मोती द्वितीय आवृति मूल्य रू १.५०
# झांसी की रानी , स्वराज संस्थान भोपाल मूल्य रू २५.०० वर्ष २००४
# पुस्तक क्रांतिकारी साहित्यकार सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा सुमित मोहन , प्रकाशक कृष्नकांत ब्रदर्स मथुरा वर्ष २००५, मूल्य रू १५०.००

किसी भी मनुष्य का व्यक्तित्व एवं उसका बौद्धिक विकास , उसके परिवेश , देश , काल ,परिस्थिति के अनुरूप होता है ! सुभद्रा कुमारी चौहान एक साथ ही प्रगतिशील नारी , गृहणी , मां , कवि , लेखिका , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , जननेत्री व राजनेता थीं ! वे जमीन से जुडी हुई थीं , अतः उनके अनुभवों का संसार अति विशाल था ! यही कारण है कि उनके साहित्य में कहीं भी नाटकीयता व बनावटीपन नहीं है वरन् वह हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति बन पडा है ! उनका जन्म १९०४ में इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था ! इतिहास विद जानते हैं कि बीसवीं सदी के प्रारंभ में भारतीय समाज में जातिगत , वर्गगत , धर्मगत , लिंगगत रूढ़ीयां अपने चरम पर थीं ! बाल विवाह की परम्परा थी ! इन कुरीतियों के विरुद्ध ही सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टी भी केंद्रित थी ! बहुमुखी व्यक्तित्व के चलते व दुर्भाग्यवश असमय मृत्यु के कारण उन्होंने बहुत अधिक नहीं लिखा है , पर जो कुछ भी लिखा है वह सब का सब मर्मस्पर्शी , उद्देश्यपूर्ण व शाश्वत बन कर हिन्दी साहित्य की धरोहर के रूप में सुप्रतिष्ठित है!
सुभद्रा कुमारी चौहान की खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी , हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े व गाये गये गीतों में से एक है ! यह गीत स्वयं में गीत से अधिक वीर गाथा की एक सच्ची कहानी ही है ! जिसमें कवियत्री ने रानी लक्छमीबाई के जीवन के सारे घटना क्रम को एक पद्यात्मक कहानी के रूप में इस सजीवता से प्रस्तुत किया है कि पाठक या श्रोता वीर रस से भाव विभोर हो उठता है ! यह रचना उनकी पहचान बन गई है !
बिखरे मोती उनका पहला कहानी संग्रह है , इसमें भग्नावशेष, होली , पापीपेट , मंझलीरानी , परिवर्तन , द्रष्टिकोण , कदम के फूल , किस्मत , मछुये की बेटी , एकादशी , आहुती , थाती , अमराई , अनुरोध , व ग्रामीणा कुल १५ एक दूसरे से बढ़कर कहानियां हैं ! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है ! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं!
सुभद्रा कुमारी चौहान के समूचे साहित्य की सफलता जिस आधारभूत तथ्य पर केंद्रित है , वह मेरे पास उपलब्ध बिखरे मोती कहानी संग्रह की प्रति पर एक मित्र के द्वारा दूसरे को पुस्तक भेंट करते हुये की गई टिप्पणी है! जो इन कहानियों की लोकप्रियता , उपयोगिता व आम पाठक का साहित्य अनुराग प्रदर्शित करती है ! आज कितने पाठक स्वयं पुस्तकें खरीद कर पढ़ते हैं ? भेंट करना तो बाद की बात है ! ऍसी रुचिकर हृदय स्पर्शी कितनी कहानियां लिखी जा रहीं है कि वे पाठकों के बीच चर्चा का विषय बन जावें ?उनकी कहानियां कृत्रिम , सप्रयास लिखी नहीं लगती ! वे तो आसपास से ही उठाई गई विषय वस्तु की तरतीब से प्रस्तुती ही हैं !
उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा ! इस में उन्मादिनी , असमंजस , अभियुक्त , सोने की कंठी , नारी हृदय , पवित्र ईर्ष्या , अंगूठी की खोज , चढ़ा दिमाग , व वेश्या की लडकी कुल ९ कहानियां हैं ! इन सब कहानियो का मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है!
सीधे साधे चित्र सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है ! इसमें कुल १४ कहानियां हैं ! रूपा , कैलाशी नानी , बिआल्हा , कल्याणी , दो साथी , प्रोफेसर मित्रा , दुराचारी व मंगला ८ कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें हैं ! हींगवाला , राही , तांगे वाला , एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्टीय विषयों पर आधारित हैँ
सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी , और अपनी व्यापक कथा दृष्टी से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठत हैं !
विवेक रंजन श्रीवास्तव

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