Friday, 30 November, 2007

कम्प्यूटर से सीखे जीवन जीने की कला

चिन्तन
कम्प्यूटर से सीखे जीवन जीने की कला
विवेक रंजन श्रीवास्तव
Jabalpur (M.P.) 482008 India

ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
blog http://vivekkikavitaye.blogspot.com

जीवन अमूल्य है !इसे सफलता पूर्वक जीना भी एक कला है ! किस तरह जिया जावे कि एक सुखद ,शांत , सद्भावना पूर्ण जीवन जीते हुये , समय की रेत पर हम अपने अमिट पदचिन्ह छोड सकें ? यह सतत अन्वेषण का रोचक विषय रहा है ! अनेकानेक आध्यात्मिक गुरु यही आर्ट आफ लिविग सिखाने में लगे हुये हैं !
आज हमारे परिवेश में यत्र तत्र हमें कम्प्यूटर दिखता है ! यद्यपि कम्प्यूटर का विकास हमने ही किया है किन्तु लाजिकल गणना में कम्प्यूटर हमसे बहुत आगे निकल चुका है ! समय के साथ बने रहने के लिये बुजुर्ग लोग भी आज कम्प्यूटर सीखते दिखते हैं ! मनुष्य में एक अच्छा गुण है कि हम सीखने के लिये पशु पक्षियों तक से प्रेरणा लेने में नहीं हिचकते ! विद्यार्थियों के लिये काक चेष्टा , श्वान निद्रा , व बको ध्यानी बनने के प्रेरक श्लोक हमारे पुरातन ग्रंथों में हैं !
समय से तादात्म्य स्थापित किया जावे तो हम अब कम्प्यूटर से भी जीवन जीने की कला सीख सकते हैं ! हमारा मन ,शरीर, दिमाग भी तो ईश्वरीय सुपर कम्प्यूटर से जुडा हुआ एक पर्सनल कम्प्यूटर जैसा संस्करण ही तो है ! शरीर को हार्डवेयर व आत्मा को सिस्टम साफ्टवेयर एवं मन को एप्लीकेशन साफ्टवेयर की संज्ञा दी जा सकती है ! उस परम शक्ति के सम्मुख इंसानी लघुता की तुलना की जावे तो हम सुपर कम्प्यूटर के सामने एक बिट से अधिक भला क्या हैं ? अपना जीवन लक्ष्य पा सकें तो शायद एक बाइट बन सकें !आज की व्यस्त जिंदगी ने हमें आत्म केंद्रित बना रखा है पर इसके विपरीत "इंटरनेट" वसुधैव कुटुम्बकम् के शाश्वत भाव की अविरल भारतीय आध्यात्मिक धारा का ही वर्तमान स्वरूप है ! यह पारदर्शिता का श्रेष्ठतम उदाहरण है ! स्व को समाज में समाहित कर पारस्परिक हित हेतु सदैव तत्पर रखने का परिचायक है !
जिस तरह हम कम्प्यूटर का उपयोग प्रारंभ करते समय रिफ्रेश का बटन दबाते हैं , जीवन के दैननंदिनी व्यवहार में भी हमें एक नव स्फूर्ति के साथ ही प्रत्येक कार्य करने की शैली बनाना चाहिये ! कम्प्यूटर हमारी किसी बी कमांड की अनसुनी नहीं करता किंतु हम पत्नी , बच्चों , अपने अधिकारी की कितनी ही बातें टाल जाने की कोशिश में लगे रहते हैं , जिनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष , खिन्नता ,कटुता पैदा होती है व हम अशांति को न्योता देते हैं ! क्या हमें कम्प्यूटर से प्रत्येक को समुचित रिस्पांस देना नहीं सीखना चाहिये ?
समय समय पर हम अपने पी.सी. की डिस्क क्लीन करना व्यर्थ की फाइलें व आइकन डिलीट करना नहीं भूलते , उसे डिफ्रिगमेंट भी करते हैं ! यदि हम रोजमर्रा के जीवन में भी यह साधारण सी बात अपना लेंवे और अपने मानस पटल से व्यर्थ की घटनायें हटाते रहें तो हम सदैव सबके प्रति सदाशयी व्यवहार कर पायेंगे , इसका प्रतिबिम्ब हमारे चेहरे के कोमल भावों के रूप में परिलक्षित होगा ,जैसे हमारे पी.सी. का मनोहर वालपेपर !
कम्प्यूटर पर ढ़ेर सारी फाइलें खोल दें तो वे परस्पर उलझ जाती हैं , इसी तरह हमें जीवन में भी रिशतो की घालमेल नहीं करना चाहिये , घर की समस्यायें घर में एवं कार्यालय की उलझने कार्यालय में ही निपटाने की आदत डालकर देखिये , आपकी लोकप्रियता में निश्चित ही वृद्धि होगी !
हाँ एक बात है जिसे हमें जीवन में कभी नहीं अपनाना चाहिये , वह है किसी भी उपलब्धि को पाने का शार्ट कट ! कापी ,कट पेस्ट जैसी सुविधायें कम्प्यूटर की अपनी विशेषतायें हैं ! जीवन में ये शार्ट कट भले ही त्वरित क्षुद्र सफलतायें दिला दें पर स्थाई उपलब्धियां सच्ची मेहनत से ही मिलती हैं !

Sunday, 25 November, 2007

दीपावली आई और चली गई । शुभकामना संदेशो का आदान प्रदान भी हुआ !

दीपावली आई और चली गई । शुभकामना संदेशो का आदान प्रदान भी हुआ !
कुछ संदेश ऐसे भी मिले जो कुछ सोचने को प्रेरित करते हैं ! प्रस्तुत हैं ऐसी ही शुभकामनायें ! आपकी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा के साथ०००००
विवेक रंजन श्रीवास्तव
Jabalpur (M.P.) 482008 India

ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
blog http://vivekkikavitaye.blogspot.com


काँपती दिये की लौ
देती है संदेश
राजनीति के खेल में
बरबाद नहो जाये देश

सियासत में आया
फिर तुगलक का साया
पूरब में लालू
उत्तर में माया
बदल गई फिर परिभाषा

फिर झूठ हुआ सम्मानित
अन्तिम विजय असत्य की
फिर सत्य हुआ अपमानित

कोई फिर रहा है भूखा और नंगा
कहीं बह रही है सोने की गंगा

किसी को मिलता है लाखों का वेतन
किसी को रुलाता है पेंशन का टेंशन
लक्ष्मी मैया कर रहीं
यह कैसा ड्रांइंग डिसवर्शन

ऐसे नाजुक विव्हल क्षण में
दीपावली की शुभकामना और अभिनंदन

००००००००००००० द्वारा ० सूर्य प्रकाश श्रीवास्तव
मोबा० ९१ ९८९३२५८९९२
जिला विधिक सहायता अधिकारी जबलपुर

ऐसी ही एक और मंगल कामना ०००

आओ चलें अंधकार से प्रकाश की ओर
महलों से कुटियों की ओर
शहरों से गावों की ओर

ताकि हम जान सकें कि
हमारे ही कितने बन्धु
हैं अशिक्षित असहाय और अस्वस्थ

और हम इनके लिये कर सकें
शिक्षा और संस्कार की व्यवस्था
जुटा सकें भोजन व स्वास्थ्य सुविधा
ला सकें पानी और प्रकाश उनके जीवन में

तभी सार्थक होगा
दीपावली मनाना
मानव जीवन पाना


००००००००००००० द्वारा ० प्रहलाद गुप्ता
मोबा० ९१ ९४२५३२३३४७
जबलपुर

गाँव में गली का
बोहराओं में अली का
पर्वों में दीपावली का महत्व है

भीलों में तीर का
मीठे में खीर का
वीरों में महावीर का महत्व है

बोली में वाणी का
प्यासो में पानी का
नगरों में संस्कारधानी का महत्व है

बिजली में तार का
पति पत्नी में प्यार का
जन्म दिन में उपहार का महत्व है

डिण्डोरी में बैगा चेतु का
ग्रहों में राहु केतु का
सेतु में राम सेतु का महत्व है

००००००००००००० द्वारा ० नारायण गुप्ता
मोबा० ९१ ९४२५४१०७८५
जबलपुर

Thursday, 8 November, 2007

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