Friday 24 December, 2010

बीत जाने को है २०१०.

रामभरोसे मतलब आमआदमी , साल दर साल राम के ही भरोसे जी रहा है . अयोध्या विवाद पर एक फैसला उसके राम के नाम पर जमीन के आबंटन का भी २०१० की बड़ी घटनाओ में है .. खेलो में विश्व रिकार्ड तो बनते टूटते रहेंगे , किन्तु खेलो के आयोजन की व्यवस्थाओ से भ्रष्टाचार को जो सार्वजनिक मान्यता मिल रही है वह दूरगामी कुप्रभाव छोड़ेगी ..विकी लीक्स और नीरा राडिया मीडिया के दो पहलू हैं ..
दरअसल साल तो महज कैलेण्डर के पन्ने हैं उन पर जो इबारत लिखी जाती है ,वह हमारी करतूत है .. और हम बहुत शातिर होते जा रहे हैं ..

Thursday 23 December, 2010

रामचरित मानस के मनोरम प्रसंग

रामचरित मानस के मनोरम प्रसंग

विवेक रंजन श्रीवास्तव

मो . 09425806252

हम , आस्था और आत्मा से राम से जुडे हुये हैं । ऐसे राम का चरित प्रत्येक दृष्टिकोण से हमारे लिये केवल मनोरम ही तो हो सकता है । मधुर ही तो हो सकता है। अधरं मधुरमं वदनम् मधुरमं ,मधुराधि पते रखिलमं मधुरमं -कृष्ण स्तुति में रचित ये पंक्तियां इष्ट के प्रति भक्त के भावों की सही अनुभूति है, सच्ची अभिव्यक्ति है । जब श्रद्वा और विश्वास प्राथमिक हों तो शेष सब कुछ गौंण हो जाता है। मात्र मनोहारी अनुभूति ही रह जाती है। मां प्रसव की असीम पीडा सहकर बच्चे को जन्म देती है , पर वह उसे उतना ही प्यार करती है ,मां बच्चे को उसके प्रत्येक रूप में पसंद ही करती है। सच्चे भक्तों के लिये मानस का प्रत्येक प्रसंग ऐसे ही आत्मीय भाव का मनोरम प्रसंग है।

किन्तु कुछ विशेष प्रसंग भाषा ,वर्णन , भाव , प्रभावोत्पादकता ,की दृष्टि से बिरले हैं । इन्हें पढ ,सुन, हृदयंगम कर मन भावुक हो जाता है । श्रद्वा ,भक्ति , प्रेम , से हृदय आप्लावित हो जाता है । हम भाव विभोर हो जाते हैं । अलौलिक आत्मिक सुख का अहसास होता है ।

राम चरित मानस के ऐसे मनोरम प्रसंगों को समाहित करने का बिंदु रूप प्रयास करें तो वंदना , शिव विवाह , राम प्रागट्य , अहिल्या उद्वार ,पुष्प वाटिकाप्रसंग , धनुष भंग , राम राज्याभिषेक की तैयारी , वनवास के कठिन समय में भी केवट प्रसंग , चित्रकूट में भरत मिलाप , शबरी पर राम कृपा , वर्षा व शरद ऋतु वर्णन ,रामराज्य के प्रसंग विलक्षण हैं जो पाठक ,श्रोता , भक्त के मन में विविध भावों का संचार करते हैं । स्फुरण के स्तर तक हृदय के अलग अलग हिस्से को अलग आनंदानुभुति प्रदान करते हैं । रोमांचित करते हैं । ये सारे ही प्रसंग मर्म स्पर्शी हैं , मनोरम हैं ।
मनोरम वंदना
जो सुमिरत सिधि होई गण नायक करि बर बदन

करउ अनुगृह सोई , बुद्वि रासि सुभ गुन सदन

मूक होहि बाचाल , पंगु चढिई गिरि बर गहन

जासु कृपासु दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन

प्रभु की ऐसी अद्भुत कृपा की आकांक्षा किसे नहीं ऐसी मनोरम वंदना अंयत्र दुर्लभ है । संपूर्ण वंदना प्रसंग भक्त को श्रद्वा भाव से रूला देती है।
शिव विवाह
शिव विवाह के प्रसंग में गोस्वामी जी ने पारलौकिक विचित्र बारात के लौककीकरण का ऐसा दृश्य रचा है कि हम हास परिहास , श्रद्वा भक्ति के संमिश्रित मनो भावों के अतिरेक का सुख अनुभव करते हैं ।

गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं

भोजन करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहिं

जेवंत जो बढ्यो अनंदु सो मुख कोटिहूं न परै कह्यो

अचवांई दीन्हें पान गवनें बास जहं जाको रह्यो ।



राम जन्म नहीं हुआ , उनका प्रागट्य हुआ है ।


भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी

लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आमुद भुजचारी

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा

कीजै सिसु लीला अति प्रिय सीला यह सुख परम अनूपा

सचमुच यह सुख अनूपा ही है । फिर तो ठुमक चलत राम चंद्र ,बाजत पैजनियां.... , और गुरू गृह पढन गये रघुराई.... , प्रभु राम के बाल रूप का वर्णन हर दोहे ,हर चैपाई , हर अर्धाली, हर शब्द में मनोहारी है ।

अहिल्या उद्वार

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तप पुंज सही

देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही

अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नही आवई बचन कही

अतिसय बड भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जल धार बही

मन मस्तिष्क के हर अवयव पर प्रभु कृपा का प्रसाद पाने की आकांक्षा हो तो इस प्रसंग से जुडकर इसमें डूबकर इसका आस्वादन करें , जब शिला पर प्रभु कृपा कर सकते हैं तो हम तो इंसान हैं । बस प्रभु कृपा की सच्ची प्रार्थना के साथ इंसान बनने के यत्न करें , और इस प्रसंग के मनोहारी प्रभाव देखें ।

पुष्प वाटिका प्रसंग

श्री राम शलाका प्रश्नावली के उत्तर देने के लिये स्वयं गोस्वामी जी ने इसी प्रसंग से दो सकारात्मक भावार्थों वाली चैपाईयों का चयन कर इस प्रसंग का महत्व प्रतिपादित कर दिया है ।

सुनु प्रिय सत्य असीस हमारी पूजहिं मन कामना तुम्हारी

एवं

सुफल मनोरथ होंहि तुम्हारे राम लखन सुनि भए सुखारे

जिस प्रसंग में स्वयं भगवती सीता आम लडकी की तरह अपने मन वांछित वर प्राप्ति की कामना के साथ गिरिजा मां से प्रार्थना करें उस प्रसंग की आध्यत्मिकता पर तो ज्ञानी जन बडे बडे प्रवचन करते हैं । इसी क्रम में धनुप भंग प्रकरण भी अति मनोहारी प्रसंग है ।

राम राज्याभिषेक की तैयारी

लौकिक जगत में हम सबकी कामना सुखी परिवार की ही तो होती है समूची मानस में मात्र तीन छोटे छोटे काल खण्ड ही ऐसे हैं जब राम परिवार बिना किसी कठिनाई के सुखी रह सका है ।

पहला समय श्री राम के बालपन का है । दूसरा प्रसंग यही समय है जब चारों पुत्र ,पुत्रवधुयें , तीनों माताओं और राजा जनक के साथ संपूर्ण भरा पूरा परिवार अयोध्या में है , राम राज्याभिपेक की तैयारी हो रही है । तीसरा कालखण्ड राम राज्य का वह स्वल्प समय है जब भगवती सीता के साथ राजा राम राज काज चला रहे हैं ।

राम राज्याभिषेक की तैयारी का प्रसंग अयोध्या काण्ड का प्रवेश है । इसी प्रसंग से राम जन्म के मूल उद्देश्य की पूर्ति हेतु भूमिका बनती है । लौकिक दृष्टि से हमें राम वन गमन से ज्यादा पीडादायक और क्या लग सकता है पर जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है । पल भर में होने वाला राजा वनवासी बन सकता है , वह भी कोई और नहीं स्वयं परमात्मा ! इससे अधिक शिक्षा और कैसे प्रसंग से मिल सकती है ।यह गहन मनन चिंतन व अवगाहन का मनोहारी प्रसंग है।

केवट प्रसंग

मांगी नाव न केवट आना कहई तुम्हार मरमु मैं जाना

जिस अनादि अनंत परमात्मा का मरमु न कोई जान सका है न जान सकता है , जो सबका दाता है , जो सबको पार लगाता है , वही सरयू पार करने के लिये एक केवट के सम्मुख याचक की मुद्रा में है! और बाल सुलभ भाव से केवट पूरे विश्वास से कह रहा है - प्रभु तुम्हार मरमु मैं जाना। और तो और वह प्रभु राम की कृपा का पात्र भी बन जाता है । सचमुच प्रभु बाल सुलभ प्रेम के ही तो भूखे हैं । रोना आ जाता है ना .. कैसा मनोरम प्रसंग है ।

इसी प्रसंग में नदी के पार आ जाने पर भगवान राम केवट को उतराई स्वरूप कुछ देना चाहते हैं किन्तु वनवास ग्रहण कर चुके श्रीराम के पास क्या होता यहीं भाव , भाषा की दृष्टि से तुलसी मनोरम दृश्य रचना करते हैं । मां सीता राम के मनोभावों को देखकर ही पढ लेती हैं ,और -

‘‘ पिय हिय की सिय जान निहारी , मनि मुदरी मन मुदित उतारी ’’ ।

भारतीय संस्कृति में पति पत्नी के एकात्म का यह श्रेष्ठ उदाहरण है ।





चित्रकूट में भरत मिलाप

आपके मन के सारे कलुष भाव स्वतः ही अश्रु जल बनकर बह जायेंगे , आप अंतरंग भाव से भरत के त्याग की चित्रमय कल्पना कीजीये , राम को मनाने चित्रकूट की भरत की यात्रा , आज भी चित्रकूट की धरती व कामद गिरि पर्वत भरत मिलाप के साक्षी हैं । इसी चित्रकूट में -

चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर , तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुबीर

यह तीर्थ म.प्र. में ही है , एक बार अवश्य जाइये और इस प्रसंग को साकार भाव में जी लेने का यत्न कीजीये । राम मय हो जाइये ,श्रद्वा की मंदाकिनी में डुबकी लगाइये ।

बरबस लिये उठाई उर , लाए कृपानिधान

भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान ।

भरत से मनोभाव उत्पन्न कीजीये ,राम आपको भी गले लगा लेंगें ।

शबरी पर कृपा

नवधा भक्ति की शिक्षा स्वयं श्री राम ने शबरी को दी है । संत समागम , राम कथा में प्रेम , अभिमान रहित रहकर गुरू सेवा , कपट छोडकर परमात्मा का गुणगान , राम नाम का जाप ईश्वर में ढृड आस्था, सत्चरित्रता , सारी सृष्टि को राम मय देखना , संतोषं परमं सुखं , और नवमीं भक्ति है सरलता । स्वयं श्री राम ने कहा है कि इनमें से काई एक भी गुण भक्ति यदि किसी भक्त में है तो - ‘‘सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे ।’’ जरूरत है तो बस शबरी जैसी अगाध श्रद्वा और निश्छल प्रेम की । राम के आगमन पर शबरी की दशा यूं थी -

प्रेम मगन मुख बचन न आवा पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा

ऋतु वर्णन

गोस्वामी तुलसी दास का साहित्यिक पक्ष वर्षा ,शरद ऋतुओं के वर्णन और इस माध्यम से प्रकृति से पाठक का साक्षात्कार करवाने में , मनोहारी प्रसंग किष्किन्धा काण्ड में मिलता है ।

छुद्र नदी भर चलि तोराई जस थोरेहु धनु खल इतिराई

प्रकृति वर्णन करते हुये गोस्वामी जी भक्ति की चर्चा नहीं भूलते -

बिनु घन निर्मल सोह अकासा हरिजन इव परिहरि सब आसा

रामराज्य

सुन्दर काण्ड तो संपूर्णता में सुन्दर है ही । रावण वध , विभीषण का अभिषेक , पुष्पक पर अयोध्या प्रस्थान आदि विविध मनोरम प्रसंगों से होते हुये हम उत्तर काण्ड के दोहे क्रमांक 10 के बाद से दोहे क्रमांक 15 तक के मनोरम प्रसंग की कुछ चर्चा करते है । जो प्रभु राम के जीवन का सुखकर अंश है । जहां भगवती सीता ,भक्त हनुमान , समस्त भाइयों , माताओं , अपने वन के साथियों , एवं समस्त गुरू जनों अयोध्या के मंत्री गणों के साथ हमारे आराध्य राजा राम के रूप में आसीन हैं । राम पंचायतन यहीं मिलता है । ओरछा के सुप्रसिद्व मंदिर में आज भी प्रभु राजा राम अपने दरबार सहित इसी रूप में विराजमान है।
राज्य संभालने के उपरांत ‘ जाचक सकल अजाचक कीन्हें ’ राजा राम हर याचना करने वाले को इतना देते हैं कि उसे अयाचक बनाकर ही छोडते हैं , अब यह हम पर है कि हम राजा राम से क्या कितना और कैसे , किसके लिये मांगते हैं । हमें अपने सत्कर्मों से अपने ही हृदय में बिराजे राजा राम के दरबार में पहुंचने की पात्रता तो हासिल करनी ही होगी । तभी तो हम याचक बन सकते हैं ।

जय राम रमारमनं समनं भवताप भयाकुल पाहि जनं

अवधेश सुरेश रमेस विभो सरनागत मागत पाहि प्रभो


बस इसी विनती से इस मनोरम प्रसंग का आनंद लें कि


गुन सील कृपा परमायतनं प्रनमामि निरंतर श्री रमनं

रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं महिपाल बिलोकय दीनजनं ।।

जय राजा राम जय श्रीराम

Friday 17 December, 2010

ठगी तरह तरह से

ठगी तरह तरह से


मुझे आज यह मेल मिला ..
मेल की भाषा से ही मैं समझ रहा हूं कि यह इंटरनेट द्वारा ठगी का एक नया नुस्खा मात्र है , ८२००.०० रु जमा करवाने की एक साजिश ....आप भी इसे पढ़कर मजे लीजीये और मित्रो को सावधान कीजीये ...

MARUTI SUZUKI INDIA LTD (MSIL)Head Office Maruti Suzuki,India Limited Nelson Mandela Road,Vasant Kunj, New Delhi-110070.Board no.46781000.Fax: 46150275 and 46150276Tell: +91-9873955265 begin_of_the_skype_highlighting +91-9873955265 end_of_the_skype_highlightingmarutisuzuki@email.chREF:

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Your Resume has been selected from MONSTER.COM for our new plant. TheCompany selected 62 candidates list for Senior Engineer, IT,Administration, Production, marketing and general service Departments, Itis our pleasure to inform you that your Resume was selected as one of the62 candidates shortlisted for the interview. The Company SUZUKI is thebest Manufacturing Car Company in India, The Company is recruiting thecandidates for our new Plants in Delhi, Bangalore, and Pune andmumbai.Your interview will be held at The Company Corporate office in NewDelhi on 22th Of December at 11.30 AM, You will be pleased to know ThatThe 62 candidates selected 55 candidates will be giving appointment,Meaning that your Application can progress to final stage. You will havecome to The Company corporate office in New Delhi. Your offer letter withAir Ticket will be sent to you by courier before date of interview. TheCompany can offer you a salary with benefits for this post 62, 000/- to200, 000/- P.M. + (HRA + D.A + Conveyance and other Company benefits. Thedesignation and Job Location will be fixing by Company HRD. At time offinal process. You have to come with photo-copies of all requireddocuments.REQUIRED DOCUMENTS BY THE COMPANY HRD.======================================
1) Photo-copies of Qualification Documents.
2) Photo-copies of Experience Certificates (If any)
3) Photo-copies of Address Proof
4) Two Passport Size Photograph.
You have to deposit the (Cash) as an initial amount in favor of ourcompany accountant name in charges to collect your payment. Department.for Rs. 8,200/- ( Eight thousand two hundred rupees ) through any [STATEBANK OF INDIA] OR [ICICI BANK] Branch from your Home City to our Companyaccountant name in charges. Account NO, which will be sending to you uponyour response. This is a refundable interview security. Your offer letterwith Air tickets will be sent to your Home Address by courier afterreceiving the confirmation of interview security deposited in any of theSTATE BANK OF INDIA OR ICICI BANK. This Company will pay all theexpenditure to you at the time of face-to-face meeting with you inCompany. The Job profile, salary offer, and date -time of interview willbe mention in your offer letter. Your offer letter will dispatch veryshortly after receiving your confirmation of cash deposited in STATE BANKOF INDIA OR ICICI BANK. We wish you the best of luck for the subsequentand remaining stage. The last date of security deposited in bank 21th OfDecember 2010 you have to give the information after deposited thesecurity amount in bank to The Company HRD -direct recruitment via email.Your Letter with supporting document will be dispatch same time bycourier to your postal address after receipt of security depositedconfirmation in bank. The interview process and arrangement expenditurewill be paid by SUZUKI COMPANY. Lodging, traveling and local conveyanceactual will be paid by SUZUKI COMPANY as per bills. The candidate has todeposit the initial refundable security as mentioned by HRD.NB: You areadvice to reconfirm your mailing address and phone number in your reply.And 8,200/- (Eight thousand Two hundred rupees) will be the refundableamount, as 200 rupees will be deducted as bank charges for funds deposit.and if you are been selected or not, still the amount will be refunded toyou, as the amount is just to prove that you will be coming for theinterview in order for us not to run at lost after sending you the airticket and you don't show up on the day of interview. Wishing you thebest of lucksRegards,
Shinzo Nakanishi
Chief Executive Officer, Managing Director,

Tuesday 14 December, 2010

दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?

दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?


"अक्षय पात्र " की सफलता की अशेष मंगलकामनायें ...





अनुव्रता श्रीवास्तव

बी. ई . कम्प्यूटर्स

ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर



पिछले रविवार की बात है , मैं छुट्टी मनाने के मूड में थी बगीचे में धूप का आनंद ले रहा थी और मम्मी की जल्दी नहा लेने की हिदायत को अनसुना करती अखबार में भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी खबरो के साथ चाय की छोटी छोटी चुस्कियां ले रही थी ,तभी हमारी काम वाली अपनी बच्ची सोनाली के साथ आई . काम वाली तो भीतर काम में व्यस्त हो गई और मैं उसकी बेटी सोनाली से जो अखबार में झांक रही थी , बतियाने लगी . मैने सोनाली से उसकी पढ़ाई की बातें की , मुझे ज्ञात हुआ कि उसके स्कूल में उसे और क्लास की सभी बच्चियों को साइकिल मिली थी ,किताबें भी मुफ्त मिली थी . दोपहर में उनको भोजन भी मिलता है , कभी दाल दलिया , कभी सब्जी चावल या अन्य कुछ . जब सोनाली ने पूछा कि , दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? तब मुझे मिड डे मील की योजना का महत्व समझ आया .मेरे मन में भीतर तक सोनाली का प्रश्न गूंज रहा था ,दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ?

लंच पर मैने यह बात डाइनिंग टेबल पर छेड़ी तो पापा ने बतलाया कि शायद तब वे कक्षा दूसरी में पढ़ते थे , एक दिन उनके स्कूल में मिल्क पाउडर से बना दूध कक्षा के सभी बच्चो को दिया जा रहा था ,पापा ने बताया कि तब तो उन्हें समझ नही आया था कि ऐसा क्यो किया गया था ? उन्होंने बताया कि संभवतः वह यूनेस्को का कोई कार्यक्रम था जिसके अंतर्गत बच्चो के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये स्कूल में एक दिन वह दूध वितरण किया गया रहा होगा !

तेजी से बढ़ती आबादी भारत की सबसे बड़ी समस्या है . इसके चलते बच्चो में कुपोषण के आंकड़े चिंताजनक स्तर पर हैं .विभिन्न विश्व संगठन , केंद्र व राज्य सरकारें तो अपने अपने तरीको से महिला एवं बाल कल्याण विभाग , स्वास्थ्य विभाग , समाज कल्याण विभाग आदि के माध्यम से बच्चो के लिये अनेकानेक योजनाओ के द्वारा जन कल्याणकारी योजनायें चला ही रही हैं . किन्तु सुरसा के मुख सी निरंतर विशाल होती जाती यह आहार समस्या बहुत जटिल है , और इसे हल करने में हम सबकी व्यैक्तिक व सामाजिक स्तर पर मदद जरूरी है . केवल सरकारो पर यह जबाबदारी छोड़कर हम निश्चिंत नही हो सकते , यह तथ्य मैं तब बहुत अच्छी तरह समझ चुकी हूं जब हमारे घर की कामवाली की बेटी सोनाली ने मुझसे बहुत मासूमयित से पूछा था दीदी जी क्या रविवार को भी हम लोगो को स्कूल से खाना नही मिल सकता ? हर धर्म हमें यही शिक्षा देता है और सभ्य समाज का यही तकाजा है कि जब तक पड़ोसी भूखा हो हमें चैन की नींद नही सोना चाहिये . फिर यह तो नन्हें बच्चो की भूख का सवाल है .मंदिर , गुरुद्वारे या अन्य धार्मिक स्थलो पर गरीबो की मदद करके शायद हम अपने आप को ही खुशी देते हैं. हममें से अनेक साधन संपन्न लोग सहज ही बच्चो को भोजन कराने का पुण्य कार्य करना चाहें . जन्मदिन , बुजुर्गो की स्मृति में या अन्य अनेक शुभ अवसरो पर लोग भोज के आयोजन करते भी हैं , पर व्यक्तिगत रूप से किसी बच्चे को भोजन कराने की नियमित जबाबदारी उठाना कठिन है .यहीं "अक्षयपात्र" जैसी सामाजिक संस्था का महत्व स्थापित होता है . "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी अशासकीय , लाभ हानि से परे समाजसेवी संस्थाओ को दान देकर हम अपने दिये गये रुपयो के , उसी प्रयोजन हेतु सदुपयोग को सुनिश्चित कर सकते हैं .

बंगलोर की "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" आज प्रतिदिन 12,53,266 बच्चो को दोपहर में उनके स्कूल में भोजन की सुव्यवस्था हेतु राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हो चुका है . वर्ष जून २००० से जब सरकार ने भी स्कूलों में दोपहर के भोजन की परियोजना प्रारंभ नही की थी तब से "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह योजना चला रहा है , बाद में सरकारी स्तर पर मिड डे मील कार्यक्रम के प्रारंभ होने पर सहयोगी के रूप में , बृहद स्तर पर "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" यह महान कार्य अनवरत रूप से कर रहा हैं . शैक्षणिक गतिविधियो से जुड़ी अन्य अनेक योजनायें जैसे विद्या अक्षय पात्र , अक्षय लाइफ स्किल , लीडरसिप डेवलेपमेंट आदि अनेक योजनायें भी यह संस्था चला रही है . दानदाताओ की सुविधा हेतु एस एम एस या मोबाइल पर सूचना की व्यवस्था की गई है , यदि चाहें तो सूचना मिलने पर दानदाता के घर से ही दान राशि एकत्रित करने हेतु संस्था के वालण्टियर पहुंच सकते हैं .संस्था का कार्य क्षेत्र देश के ८ राज्यो तक विस्तारित हो चुका है व निरंतर विकासशील है .

हमारा कर्तव्य है कि हम "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" जैसी संस्था से किसी न किसी रूप में अवश्य ही जुड़ें , दानदाता के रूप में , वालण्टियर के रूप में , प्रचारक के रूप में या लेखक के रूप में ... आइये हम भी अपना योगदान स्वयं ही निर्धारित करें , और बच्चो की भूख मिटाने के महायज्ञ में अपनी आहुती सुनिश्चित करें .आप इस लिंक पर अपना सहयोग दे सकते हैं .



http://www.akshayapatra.org/online-donations



अंत में यही प्रर्थना और संकल्प कि ...



रिक्त न हो ,भरा रहे ,सदा हमारा अक्षय पात्र

हर बच्चे का पेट भरे सदा हमारा अक्षय पात्र



जिस तरह द्रौपदी को सदा भोजन से परिपूरित , भरा रहने वाला अक्षयपात्र वरदान स्वरूप प्राप्त था , देश के जरूरतमंद बच्चो को भी "अक्षयपात्र फाउण्डेशन" के रूप में वही वरदान सुलभ हुआ है , ईश्वर से संस्था की निरंतर सफलता की कामना है .



अनुव्रता श्रीवास्तव

Saturday 4 December, 2010

विकीलीक्स भी सीआईए की सोची समझी कूटनीति न हो..????

आजकल तो ये शक होने लगा है कि जिस तरह से पूरी दुनिया में सब कुछ फिक्स और प्रायोजित होने लगा है, कहीं विकीलीक्स भी सीआईए की सोची समझी कूटनीति न हो.जो तथ्य अमरीका प्रत्यक्ष तौर पर नहीं बता पा रहा है वो अप्रत्यक्ष तौर पर बताने की कोशिश कर रहा हो? यदि मेरा यह अनुमान सच नही है तो सचमुच इंटरनेट अमरीका के गले की हड्डी सिद्व हो रहा है.




पत्रकार स्वतंत्र होता है.उससे यह उम्मीद ही बेकार है कि वह केवल लिखेगा भर. लिखने का मसाला जुटाने के लिए जब वह चार जगह उठता बैठता है तो कुछ उसके मित्र बनते हैं,कुछ दुश्मन.फिर आज के भौतिक युग में उसे भी धन की चाहत होती ही है,तो वह कुछ अतिरिक्त कर बैठता है और ऐसी कहानियाँ बन जाती हैं.



अंतरराष्ट्रीय खेलों की पदक तालिकाओ में भारतीय बालाओ की बढ़ती संख्या इस तथ्य को रेखाकिंत करती है कि स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में व्यापक बदलाव हुआ है. सच तो ये है कि खेल ही नहीं हर क्षेत्र में भारतीय नारियां पुरुषों की बराबरी से कर रहीं हैं.



जातिवाद के आधार पर इतनी बड़ी जीत संभव ही नही थी. बिहार को जब नितीश जी ने संभाला था तब जैसी सामाजिक स्थितियां थीं, अपहरण था गुण्डाराज था, देर रात की तो बात ही छोड़ें शाम से ही सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, महिलाएं, ग़रीब असुरक्षित थे, सड़कों के हालात खराब थे. इन सबमें जो बुनियादी परिवर्तन विगत वर्षो में जनता ने देखे हैं, उसी के चलते नीतीश पुनः सत्ता में आये हैं.

Monday 13 September, 2010

read write and win , make comments too

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Monday 6 September, 2010

सुचारु संचालन व प्रगति के लिये जबाबदार कौन... नेतृत्व ? या नीतियां?

वैचारिक नवोन्मेषी आलेख




किसी संस्थान के सुचारु संचालन व प्रगति के लिये जबाबदार कौन... नेतृत्व ? या नीतियां?





विवेक रंजन श्रीवास्तव

लेखक को नवोन्मेषी वैचारिक लेखन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है



ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

9425806252





कारपोरेट मैनेजर्स की पार्टीज में चलने वाला जसपाल भट्टी का लोकप्रिय व्यंग है , जिसमें वे कहते हैं कि किसी कंपनी में सी एम डी के पद पर भारी भरकम पे पैकेट वाले व्यक्ति की जगह एक तोते को बैठा देना चाहिये , जो यह बोलता हो कि "मीटिंग कर लो" , "कमेटी बना दो" या "जाँच करवा लो ". यह सही है कि सामूहिक जबाबदारी की मैनेजमेंट नीति के चलते शीर्ष स्तर पर इस तरह के निर्णय लिये जाते हैं , पर विचारणीय है कि क्या कंपनी नेतृत्व से कंपनी की कार्यप्रणाली में वास्तव में कोई प्रभाव नही पड़ता ?भारतीय परिवेश में यदि शासकीय संस्थानो के शीर्ष नेतृत्व पर दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि नौकरी की उम्र के लगभग अंतिम पड़ाव पर , जब मुश्किल से एक या दो बरस की नौकरी ही शेष रहती है , तब व्यक्ति संस्थान के शीर्ष पद पर पहुंच पाता है .रिटायरमेंट के निकट इस उम्र के टाप मैनेजमेंट की मनोदशा यह होती है कि किसी तरह उसका कार्यकाल अच्छी तरह निकल जाये , कुछ लोग अपने निहित हितो के लिये पद का दोहन करने की कार्य प्रणाली अपनाते हैं , कुछ शांति से जैसा चल रहा है वैसा चलने दिया जावे और अपनी पेंशन पक्की रखी जावे की नीति पर चलते हैं . वे नवाचार को अपनाकर विवादास्पद बनने से बचते हैं . कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो मनमानी करने पर उतर आते हैं , उनकी सोच यह होती है कि कोई उनका क्या कर लेगा ? उच्च पदों पर आसीन ऐसे लोग अपनी सुरक्षा के लिये राजनैतिक संरक्षण ले लेते हैं , और यहीं से दबाव में गलत निर्णय लेने का सिलसिला चल पड़ता है .भ्रष्टाचार के किस्से उपजते हैं . जो भी हो हर हालत में नुकसान तो संस्थान का ही होता है .

इन स्थितियों से बचने के लिये सरकार की दवा स्वरूप सरकारी व अर्धसरकारी संस्थानो का नेतृत्व आई ए एस अधिकारियों को सौंप दिया जाता है . संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों में यह भावना होती है कि ये नया लड़का हमें भला क्या सिखायेगा ? युवा आई ए एस अधिकारी को निश्चित ही स्स्थान से कोई भावनात्मक लगाव नही होता , वह अपने कार्यकाल में कुछ करिश्मा कर अपना स्वयं का नाम कमाना चाहता है , जिससे जल्दी ही उसे कही और बेहतर पदांकन मिल सके . जहां तक भ्रष्टाचार के नियंत्रण का प्रश्न है , स्वयं रेवेन्यू डिपार्टमेंट जो आई ए एस अधिकारियों का मूल विभाग है , पटवारी से लेकर उपर तक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है , फिर भला आई ए एस अधिकारियों के नेतृत्व से किसी संस्थान में भ्रष्टाचार नियंत्रण कैसे संभव है ? आई ए एस अधिकारियों को प्रदत्त असाधारण अधिकारों , उनके लंबे विविध पदों पर संभावित सेवाकाल के कारण , संस्थान के आम कर्मचारियों में भय का वातावरण व्याप्त हो जाता है . मसूरी के आई ए एस अधिकारियों के ट्रेनिंग स्कूल की , अंग्रेजो के समय की एक चर्चित ट्रेनिंग यह है कि एक कौए को मारकर टांग दो , बाकी स्वयं ही डर जायेंगे , मैने अनेक बेबस कर्मचारियों को इसी नीति के चलते बेवजह प्रताड़ित होते हुये देखा है , जिन्हें बाद में न्यायालयों से मिली विजय इस बात की सूचक है कि भावावेश में शीर्ष नेतृत्व ने गलत निर्णय ही लिया था . मजेदार बात है कि हमारे वर्तमान सिस्टम में शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिये गये गलत निर्णयो हेतु उन्हे किसी तरह की कोई सजा का प्रवधान ही नही है . ज्यादा से ज्यादा उन्हें उस पद से हटा कर एक नया वैसा ही पद किसी और संस्थान में दे दिया जाता है . इसके चलते अधिकांश आई ए एस अधिकारियों की अराजकता सर्वविदित है . सरकारी संस्थानो के सर्वोच्च पदो पर आसीन लोगो का कहना यह होता है कि उनके जिम्में तो केवल इम्प्लीमेंटेशन का काम है नितिगत फैसले तो मंत्री जी लेते हैं , इसलिये वे कोई रचनात्मक परिवर्तन नही ला सकते .

कार्पोरैट जगत के निजी संस्थानो की बात करें तो वहां हम पाते हैं कि मध्यम श्रेणी के संस्थानो में मालिक की मोनोपाली व वन मैन शो हावी है , पढ़े लिखे टाप मैनेजर भी मालिक या उसके बेटे की चाटुकारिता में निरत देखे जाते हैं . एम एन सी अपनी बड़ी साइज के कारण कठनाई में हैं . शीर्ष नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय बैठकों , आधुनिकीकरण , नवीनतम विज्ञापन ,संस्थान को प्रायोजक बनाने , शासकीय नीतियों में सेध लगाकर लाभ उठाने में ही ज्यादा व्यस्त दिखता है .वर्तमान युग में किसी संस्थान की छबि बनाने , बिगाड़ने में मीडीया का रोल बहुत महत्वपूर्ण है ,वो दिन और वो लोग अब नही हैं जब औरंगजेब जैसे राजा टोपियां सिलकर व्यक्तिगत जीवीकोपार्जन करते थे . दरअसल किसी संस्थान का नेतृत्व करते हुये अधिकारी की छबि व उस समय में व्यक्तिगत छबि में बहुत सूक्ष्म अंतर होता है , जिसमें मीडिया सहित बहुत कम लोग ही अंतर कर पाते हैं , स्वयं व्यक्ति तक तो फिर भी सही है पर उच्चाधिकारी के परिवारजन भी , संस्थागत सुविधाओ का दुरुपयोग खुले दिल से करते हैं . हमने देखा है कि रेल मंत्रालय में लालू यादव ने अपने समय में खूब नाम कमाया , कम से कम मीडिया में उनकी छबि एक नवाचारी मंत्री की रही . आई सी आई सी आई के शीर्ष नेतृत्व में परिवर्तन से उस संस्थान के दिन बदलते भी हमने देखा है .शीर्ष नेतृत्व हेतु आई आई एम जैसे संस्थानो में जब कैम्पस सेलेक्शन होते हैं तो जिस भारी भरकम पैकेज के चर्चे होते हैं वह इस बात का द्योतक है कि शीर्ष नेतृत्व कितना महत्वपूर्ण है . किसी संस्थान में काम करने वाले लोग तथा संस्थान की परम्परागत कार्य प्रणाली भी उस संस्थान के सुचारु संचालन व प्रगति के लिये बराबरी से जबाबदार होते हैं . कर्मचारियों के लिये पुरस्कार , सम्मान की नीतियां उनका उत्साहवर्धन करती हैं .कर्मचारियों की आर्थिक व ईगो नीड्स की प्रतिपूर्ती औद्योगिक शांति के लिये बेहद जरूरी है , नेतृत्व इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है .

राजीव दीक्षित भारतीय सोच के एक सुप्रसिद्ध विचारक हैं , व्यवस्था सुधारने के प्रसंग में वे कहते हैं कि यदि कार खराब है तो उसमें किसी भी ड्राइवर को बैठा दिया जाये , कार तभी चलती है जब उसे धक्के लगाये जावें . प्रश्न उठता है कि किसी संस्थान की प्रगति के लिये , उसके सुचारु संचालन के लिये सिस्टम कितना जबाबदार है ?हमने देखा है कि विगत अनेक चुनावों में पक्ष विपक्ष की अनेक सरकारें बनी पर आम जनता की जिंदगी में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नही आ सके . लोग कहने लगे कि सांपनाथ के भाई नागनाथ चुन लिये गये . कुछ विचारक भ्रष्टाचार जैसी समस्याओ को लोकतंत्र की विवशता बताने लगे हैं , कुछ इसे वैश्विक सामाजिक समस्या बताते हैं .कुछ इसे लोगो के नैतिक पतन से जोड़ते हैं . आम लोगो ने तो भ्रष्टाचार के सामने घुटने टेककर इसे स्वीकार ही कर लिया है , अब चर्चा इस बात पर नही होती कि किसने भ्रष्ट तरीको से गलत पैसा ले लिया , चर्चा यह होती है कि चलो इस इंसेटिव के जरिये काम तो सुगमता से हो गया . निजि संस्थानों में तो भ्रष्टाचार की एकांउटिग के लिये अलग से सत्कार राशि , भोज राशि , गिफ्ट व्यय आदि के नये नये शीर्ष तय कर दिये गये हैं .सेना तक में भ्रष्टाचार के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं . क्या इस तरह की नीति स्वयं संस्थान और सबसे बढ़कर देश की प्रगति हेतु समुचित है ?

विकास में विचार एवं नीति का महत्व सर्वविदित है , इस सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को हमने जनप्रतिनिधियों को सौंप रखा है .एक ज्वलंत समस्या बिजली की है इसे ही लें , आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है , परोक्ष रूप से इससे देश की सर्वांगीण प्रगति बाधित हुई है . बिजली , रेल की ही तरह राष्ट्रव्यापी सेवा व आवश्यकता है बल्कि रेल से कहीं बढ़कर है , फिर क्यों उसे टुकड़े टुकड़े में अलग अलग बोर्ड , कंपनियों के मकड़ जाल में उलझाकर रखा गया है , क्यों राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय विद्युत सेवा जैसी कोई व्यवस्था अब तक नही बनाई गई ? समय से भावी आवश्यकताओ का सही पूर्वानुमान लगाकर क्यों नये बिजली घर नही बनाये गये ? इसका कारण बिजली व्यवस्था का खण्ड खण्ड होना ही है , जल विद्युत निगम अलग है , तापबिजली निगम अलग, परमाणु बिजली अलग , तो वैकल्पिक उर्जा उत्पादन अलग हाथों में है, उच्चदाब वितरण , निम्नदाब वितरण अलग हाथों में है .एक ही देश में हर राज्य में बिजली दरों व बिजली प्रदाय की स्थितयों में व्यापक विषमता है . केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सुरक्षा व आतंकी गतिविधियों के समन्वय में जिस तरह की कमियां उजागर हुई हैं ठीक उसी तरह बिजली के मामले में भी केंद्रीय समन्वय का सर्वथा अभाव है . जिसका खामियाजा हम सब भोग रहे हैं .नियमों का परिपालन केवल अपने संस्थान के हित में किये जाने की परंपरा गलत है . यदि शरीर के सभी हिस्से परस्पर सही समन्वय से कार्य न करे तो हम नही चल सकते , विभिन्न विभागों की परस्पर राजस्व , भूमि या अन्य लड़ाई के कितने ही प्रकरण न्यायालयों में हैं ,जबकि यह एक जेब से दूसरे में रुपया रखने जेसा ही है . इस जतन में कितनी सरकारी उर्जा नष्ट हो रही है , ये तथ्य विचारणीय है . पर्यावरण विभाग के शीर्ष नेतृत्व के रूपमें टी एन शेषन जैसे अधिकारियों ने पर्यावरण की कथित रक्षा के लिये तत्काकलीन पर्यावरणीय नीतियों की आड़ में बोधघाट परियोजना जैसी जल विद्युत उत्पादन परियोजनाओ को तब अनुमति नही दी ,निश्चित ही इससे उन्होने स्वयं अपना नाम तो कमा लिया पर इससे बिजली की कमी का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वह अब तक थमा नही है . बस्तर के जंगल सुदूर औद्योगिक महानगरों का प्रदूषण किस स्तर तक दूर कर सकते हैं यह अध्ययन का विषय हो सकता है ,पर हां यह स्पष्ट दिख रहा है कि आज विकास की किरणें न पहुंच पाने के कारण ये जंगल नक्सली गतिविधियो का केंद्र बन चुके हैं . आम आदमी भी सहज ही समझ सकता है कि प्रत्येक क्षेत्र का संतुलित , विकास होना चाहिये . पर हमारी नीतियां यह नही समझ पातीं . मुम्बई जैसे नगरो में जमीन के भाव आसमान को बेध रहे हैं .प्रदूषण की समस्या , यातायात का दबाव बढ़ता ही जा रहा है . आज देश में जल स्त्रोतो के निकट नये औद्योगिक नगर बसाये जाने की जरूरत है , पर अभी इस पर कोई काम नही हो रहा !



आवश्यकता है कि कार्पोरेट जगत , व सरकारी संस्थान अपनी सोशल रिस्पांस्बिलिटि समझें व देश के सर्वांगीण हित में नीतियां बनाने व उनके इम्प्लीमेंटेशन में शीर्ष नेतृत्व राजनेताओ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी भूमिका निर्धारित करें ,यह सूत्र आत्मसात करने की आवश्यकता है कि देश के विभिन्न संस्थानों की प्रगति ही देश की प्रगति की इकाई है .





ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

9425806252

Sunday 25 April, 2010

अब समझ आया न कि क्यो नही खुल रहे थे नये मेडिकल कालेज ?


अब समझ आया न कि क्यो नही खुल रहे थे नये मेडिकल कालेज  ?  और क्यो है मेडिकल कालेजो की भारी भरकम फीस ? क्यो डाक्टरो की सेवानिवृति आयु ६५ बरस करनी पड़ रही है ?
मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के अध्यक्ष केतन देसाई के पास से कथित तौर पर 1801.5 करोड़ रुपए नकद और डेढ़ टन स्वर्ण आभूषण बरामद किए हैं। दिल्ली व अहमदाबाद में उसके निवासों और लॉकरों से यह बरामदगी की गई।

पंजाब के एक मेडिकल कालेज को मान्यता देने के बदले दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में देसाई को गुरुवार रात को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वह पांच दिनों की पुलिस हिरासत में है। सीबीआई उससे पूछताछ कर रही है।

यहां सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि देसाई को आगे की जांच के लिए रविवार को अहमदाबाद ले जाया जाएगा। अभी तक की पूछताछ में इस बात के संकेत मिले हैं कि उसके पास से लगभग 2,500 करोड़ रुपए बरामद हो सकते हैं।

देसाई ने पूछताछ के दौरान शुरुआत में प्रधानमंत्री कार्यालय में पहचान होने का दावा करते हुए सहयोग करने से इनकार कर दिया। लेकिन बाद में उसने मुंह खोलना शुरू किया। जब जांच एजेंसी ने उससे पूछा कि उसने रकम कहां रखी है तो पहले तो उसने विरोधाभासी बयान दिए। उसने हरियाणा, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में कुछ जगहों के नाम लिए।

रिकार्डे से छेड़छाड़ : 

सीबीआई द्वारा बरामद फाइलों और दस्तावेजों से पता चलता है कि देसाई ने मेडिकल कालेजों को मान्यता दिलवाने के लिए रिकार्डे से छेड़छाड़ भी की थी। जिन कालेजों ने नियत तिथि के बाद आवेदन दायर किए थे उन्हें भी 25 से 30 करोड़ रुपए लेकर मंजूरी दी गई। कई कालेजों को अवैध रूप से मंजूरी देने की बात पता लगने के बाद सीबीआई ने अब अनुमति देने से जुड़े सभी रिकार्डे और फाइलों की जांच करने का फैसला किया है।

अपनी पसंद के इंस्पेक्टर : 

देसाई ने कालेजों को मंजूरी से पहले वहां के :औचक निरीक्षण– के लिए अपनी पसंद के 20 इंस्पेक्टर नियुक्त किए थे। इनमें मालती मेहरा और सुरेश शाह भी शामिल हैं। ये इंस्पेक्टर देसाई के एजेंट के तौर पर काम करते थे और कालेज को मंजूरी देने के लिए रेट तय करने में भी इनकी अहम भूमिका होती थी। ये लोग कभी-कभी कलेक्शन एजेंट के तौर पर भी काम करते थे।








भड़ास में मेरी १७अगस्त २००८ की पोस्ट पढ़ें 




कब तक हम विदेश भैजेगे अपने बच्चो को डाक्टरी पढ़ाने ..?
इन दिनो देश के ढ़ेरो बच्चे डाक्टरी की शिक्षा पाने के लिये चीन , रूस आदि देशो की ओर जा रहे है . इससे जहां एक तरफ भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा है वही लोगो को असाधारण असुविधा हो रही है . पर बचचो के सुखद भविष्य की कामना में लोग यह कदम उठाने को विवश है. ईन देशो से मेडिकल शिक्षित बच्चो को देश में प्रैक्टिस करने के लिये ima की एक परीक्षा पास करणी होती है .
यदि सरकार आर्थिक कारणौ से नये मेडिकल कालेज नही खौल पा रही है तो , निजी क्षेत्र को मेडिकल कालेज शुरू करने दे , इन कालेजो से पास बचचे ima की वही परीक्षा पास करके अपनी प्रैक्टिस कर सकते है .
देश की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है यदि मेदिकल कालेज नही खोले गये तो कुछ ही वर्षो में डाक्टर ढ़ूढ़े नही मिलेंगे .
क्या सोचते है आप?
Posted by Vivek Ranjan Shrivastava  
1 comments:


रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...
विवेक जी,
जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है, आप निश्चिंत रहे क्यूंकि हमारे देश में डॉक्टरों का (लाला टाइप धंधे) अकाल कभी नही पड़ने वाला है और विदेश जाने वाले बच्चे लालागिरी करने की शिक्षा लेने ही जाते हैं, जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है सो हमारे देश में सच्चे डॉक्टरों का हमेशा से अकाल रहा है और उसका देश या विदेश से कोई सरोकार कभी नही रहा है


Wednesday 7 April, 2010

एक कागज जलाने का मतलब है कि हमने एक हरे पेड़ की एक डगाल जला दी ....

एक कागज जलाने का मतलब है कि हमने एक हरे पेड़ की एक डगाल जला दी ....

स्कूलों में , कार्यालयों में प्रतिदिन ढ़ेरों कागज साफ सफाई के नाम पर जला दिया जाता है ....... कभी आपने जाना है कि कागज कैसे बनता है ???? जब हम यह समझेंगे कि कागज कैसे बनता है , तो हम सहज ही समझ जायेंगे कि एक कागज जलाने का मतलब है कि हमने एक हरे पेड़ की एक डगाल जला दी ....रद्दी कागज को रिसाइक्लिंग के द्वारा पुनः नया कागज बनाया जा सकता है और इस तरह जंगल को कटने से बचाया जा सकता है

हमारे देश में जो पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट हैं , जैसे खटीमा , उत्तराखण्ड में वहां रिसाइक्लिंग हेतु रद्दी कागज अमेरिका से आयात किया जाता है ...दूसरी ओर हम सफाई के नाम पर जगह जगह रोज ढ़ेरो कागज जलाकर प्रदूषण फैलाते हैं ....

अखबार वाले , अपने ग्राहकों को समय समय पर तरह तरह के उपहार देते हैं ... क्या ही अच्छा हो कि अखबार की रद्दी हाकर के ही माध्यम से प्रतिमाह वापस खरीदने का अभियान भी अखबार वाले चलाने लगें और इसका उपयोग रिसाइक्लिंग हेतु किया जावे .

विवेक रंजन श्रीवास्तव
मो ९४२५८०६२५२
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर

Monday 22 March, 2010

अमिताभ श्रीवास्तव का किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयन


अमिताभ श्रीवास्तव का किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयन
भारत सरकार के विज्ञान और तकनीकी विभाग द्वारा प्रायोजित किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का मुख्य उद्देश्य शोध कार्यो में रुचि रखने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करना है।
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर द्वारा आज घोषित इस वर्ष के परिणामो में नगर के क्राइस्ट चर्च बायज स्कूल के छात्र अमिताभ श्रीवास्तव का चयन पूरे देश से लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार के द्वारा अंतिम रूप से बेसिक साइंस की फैलोशिप हेतु चुने गये २१५ बच्चो में किया गया हैं . अमिताभ श्रीवास्तव , शिक्षाविद प्रो. सी.बी श्रीवास्तव के नाती व म. प्र. राज्य विद्युत मण्डल जबलपुर में अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर सिविल श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव व श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव के सुपुत्र हैं .अमिताभ अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता पिता व अपने शिक्षको को देते हैं . बचपन से ही मेधावी अमिताभ को एन टी एस ई की राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पहले से ही मिल रही है . ओलम्पियाड फाउण्डेशन द्वारा आयोजित साइंस ओलंपियाड , मैथ्स ओलम्पियाड, व साइबर ओलम्पियाड में भी अमिताभ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम १०० छात्रो में स्थान मिला है . बेसिक साइंस, इंजीनियरिंग और मेडिकल साइंस की पढाई करने वाले छात्र किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का लाभ उठा सकते हैं। किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना को तीन भागों में बांटा गया है -प्रथम बेसिक साइंस के छात्र, द्वितीय इंजीनियरिंग के छात्र और तृतीय मेडिकल साइंस के छात्र। बेसिक साइंस के छात्रों का चयन भी तीन भागों में बांट कर किया जाता है, जिनमें प्रथम कक्षा 10 की परीक्षा पास किए छात्र, द्वितीय बीएससी और एमएससी इंटिग्रेटेड के प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्र तथा तृतीय एमएससी और एमएससी इंटिग्रेटेड के चतुर्थ और पांचवें वर्ष के छात्र इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। भारत सरकार की इस योजना के तहत छात्र को ४000 से ७000 रुपये प्रति माह तक फेलोशिप प्रदान की जाती है।
किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का लाभ केवल भारत में पढने वाले भारतीय छात्र ही उठा सकते हैं। बेसिक साइंस के तहत इस योजना का लाभ उठाने के लिए दसवीं में गणित और विज्ञान विषय में न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त होना अनिवार्य है। अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रों को 65 प्रतिशत अंक आवश्यक है, जो छात्र विज्ञान विषय के साथ ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं, वे भी इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं। बीएससी प्रथम वर्ष और एमएससी इंटिग्रेटेड के द्वितीय वर्ष के छात्र, जिन्होंने बारहवीं में 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किया हो, वे भी आवेदन कर सकते हैं। तृतीय 11वीं और 12वीं में अध्ययनरत छात्र, जो किसी भी अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में शामिल हों, वे भी आवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इंजीनियरिंग के वे छात्र, जो बीई/ बीटेक/ बीआर्क के प्रथम वर्ष में हैं, जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा में कम-से-कम 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों, वे भी आवेदन के पात्र हैं।
चयन प्रक्रिया : इस योजना में बेसिक साइंस के छात्रों का चयन लिखित परीक्षा के आधार पर होता है।राष्ट्रीय स्तर पर लिखित परीक्षा में चयनित छात्रों को साक्षात्कार हेतु बुलाया जाता है , जहां विषय विशेषज्ञ विज्ञान के प्रति अभिरुचि का गहन परीक्षण कर अंतिम चयन करते हैं . इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र के चयन का मुख्य आधार छात्र का प्रोजेक्ट रिपोर्ट होता है।
इस योजना के तहत प्रत्येक फेलोशिप के लिए अलग-अलग आवेदन पत्र भरना होता है।यह परीक्षा इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर के द्वारा प्रति वर्ष आयोजित की जाती है . अमिताभ को उसके साथियो , शिक्षको ने इस राष्ट्रीय उपलब्धि पर बधाई दी है .

Saturday 27 February, 2010

विचार वीथी

DEBATE:हुसैन का सम्मान या भारतीयों का अपमान..?
SENT:26-Feb-2010 04:15COMMENT:कला , संगीत , साहित्य की ताक़त कट्टरपंथियो की ताक़तों और राष्ट्रों की सीमाओं से कही ऊपर हैं. हुसैन अकेले नहीं हैं, सलमान रश्दी, तस्लीमा नसरीन.सभी की अपनी अपनी कहानियाँ हैं.हाँ यह ज़रूर है कि कलाकार को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ओछा फायदा नही उठाना चाहिए. किसी के मन को आहत करना कभी भी आदर्श नही कहा जा सकता,सम्मान के लिए सम्मान का सदा सम्मान होता है, पर यदि किसी को चिढ़ाने के लिए कोई झूठा सम्मान दिया जाए तो उसे सामाजिक स्वीकार्यता मिलनी मुश्किल है.

DEBATE:बजट से क्या है उम्मीदें
SENT:23-Feb-2010 13:35COMMENT:बजट से उम्मीदें तो बहुत हैं पर वित्त मंत्री जी क्या-क्या पूरा कर सकेंगे, सरकार चलाने के लिए उन्हे तो पैसा चाहिए ही, बार-बार के चुनावो ने ख़ज़ाना ख़ाली कर रखा है, फिर भी एक कर्मचारी होने के नाते बड़ी राहत की आशा है ... अपेक्षा है कि देश का अंतिम व्यक्ति "रामभरोसे" दो जून, भर पेट खा सके और सम्मान का जीवन जी सके कुछ ऐसा हो बजट.


DEBATE:समलैंगिकता के लिए निलंबन कितना जायज़...?
SENT:23-Feb-2010 13:23COMMENT:मै इस निलंबन को उचित मानता हूं, हम सामाजिक प्राणी हैं और सामाजिक मूल्यों का हमें पालन करना ही चाहिए, तभी समाज सुव्यवस्थित रह सकता है. यदि समलैंगिकता को आज योग्यता के कारण गौण माना गया तो कल भ्रष्टाचार को, परसों अवैद्य प्रेम संबंधों को तरजीह मिलेगी और हमारा सामाजिक ढांचा चरमरा जाएगा.


DEBATE:क्यों फैल रहा है नक्सली आंदोलन?
SENT:17-Feb-2010 14:10COMMENT:शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सिर छिपा कर हम कथित बुद्धिजीवी अब और चुप नही रह सकते. हमें नक्सलवाद के विरुद्ध खुलकर सामने आना ही होगा. पहले नक्सल प्रभावित पिछड़े लोगों को समाज में समाहित कर उन्हें नक्सलवादियों से विमुख करना होगा और साथ-साथ नक्सलवादियों को भी क्षमा दान देकर, देश की मूलधारा में मिलाकर ही नक्सलवाद का अंत किया जा सकता है. आइए कामना करें कि देश से जल्दी से जल्दी नक्सलवाद का पूर्णरूपेण अंत हो. नक्सली हिंसा के शिकार लोगों को यही हमारी पीढ़ी की सच्ची श्रद्धांजली होगी.


DEBATE:भारत में मीडिया की भूमिका
SENT:14-Feb-2010 16:41COMMENT:मीडिया में संपादन का महत्वपूर्ण स्थान होता है , पर लाइव मीडिया ने सबसे पहले खबर दिखाने के चक्कर में संपादन को दरकिनार कर दिया है , सबसे पहले आगरा की भारत पाकिस्तान शिखर वार्ता को विफल करने मे , विगत वर्ष मुम्बई हमले में आतंकियो को अप्रत्यक्ष मदद करने में मीडिया की यही स्थिति हास्यास्पद बनी . बीबीसी जैसी जबाबदारी और स्वनियंत्रण जरूरी है




DEBATE:क्या सरकार बातचीत को लेकर गंभीर है?
SENT:09-Feb-2010 13:13COMMENT:यदि सरकार गंभीर नही है तो उसे गंभीर होना चाहिए. नक्सलवाद कभी एक समर्पित आंदोलन था जो बाद में दिग्भ्रमित होता गया. इसके बाद भी नक्सलवादी पृथकतावादी नही है.वे सर्वहारा के लिए संघर्ष करने का स्वांग भले कर रहे हों पर कर तो रहे हैं. इसलिए उनसे बातचीत का रास्ता ठीक ही है.


DEBATE:क्या आसान निशाना बन रही हैं ख़ास हस्तियां...?
SENT:07-Feb-2010 03:01COMMENT:बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ ? ... किसी सुपरिचित नाम का विरोध करो और खुद को मशहूर करो ... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह गलत लाभ लिया जा रहा है


DEBATE:पाकिस्तान मामले पर कौन सही: शाहरुख़ या शिवसेना?
SENT:07-Feb-2010 02:55COMMENT:यह सारा प्रकरण कुछ ऐसा है जैसाकि डाकू चोर पर उंगुली उठाए.


DEBATE:शिव सेना की राजनीति
SENT:02-Feb-2010 03:07COMMENT:ठाकरे एक अनियंत्रित नेता हैं. मुझे तो लगता है कि धर्म निरपेक्षता नहीं देश को धर्म गुरू की जरूरत है जो ऐसे दिग्भ्रमित नेताओ को आत्मअवलोकन का सही पाठ पढ़ा सके. ऐसी हर हरकत का कानूनी मुकाबला पूरी ताकत से किया जाना चाहिए, जरूरी हो तो कोर्ट को स्वयं हस्तक्षेप करना चाहिए . कानून कमजोर हो तो देश की अंण्डता के लिए कानून बना कर ठाकरे पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए.


DEBATE:स्मारकों की सुरक्षा के लिए विशेष दस्ते का गठन कितना जायज़...?
SENT:02-Feb-2010 03:00COMMENT:जब संविधान निर्माताओ ने आरक्षण जैसी व्यवस्था की रही होगी तो उन्होने कभी नहीं सोचा होगा कि दलितों के नाम पर राष्ट्रीय धन का ऐसा दुरुपयोग भी किया जाएगा. मायावती एक अनियंत्रित नेता हैं. मुझे तो लगता है कि धर्म निरपेक्षता नहीं देश को धर्म गुरू की जरूरत है जो ऐसे दिग्भ्रमित नेताओ को आत्मअवलोकन का सही पाठ पढ़ा सके. यह स्मारकों की सुरक्षा के लिए विशेष दस्ते का गठन बिल्कुल ग़लत है.


DEBATE:भाषा के आधार पर रोज़गार?
SENT:24-Jan-2010 04:29COMMENT:खेद है कि लोकतंत्र की स्वतंत्रता के नाम पर हमारे देश में कुछ भी कहा जा सकता है , भाषा , धर्म संप्रदाय के नाम पर रोजगार के ऐसे बयानों को देशद्रोह, संविधान का उल्लंघन कहा जाना चाहिए ...


DEBATE:हॉकी की इतनी दुर्दशा के ज़िम्मेदार कौन...?
SENT:18-Jan-2010 14:51COMMENT:हॉकी हमारी राष्ट्रीय पहचान रही है, जसदेव सिंह की रेडियो कमेंट्री सुनकर जो रोमांच होता है वह अविस्मरणीय है. इसकी वर्तमान स्थिति के लिए किसी एक को कोसने की अपेक्षा समूचे माहौल को बदलने की जरूरत है. हॉकी ही नहीं अन्य खेलो में भी जो पदक इत्यादि देश के नाम पर मिलते हैं उनके लिये संग्रहालय बनाया जाना चाहिए.


DEBATE:शिक्षा में गिरावट का ज़िम्मेदार कौन?
SENT:18-Jan-2010 14:38COMMENT:जिसका जो काम है उसे वही करने दिया जाए तो सब कुछ ठीक चले. शिक्षा,शिक्षक और स्कूलों से नित नये प्रयोग करने पर प्रतिबंध होना चाहिए. कभी परीक्षा प्रणाली बदलकर कोई मंत्री जी अपना नाम कमाना चाहते हैं, तो कोई स्कूलों को स्वास्थ्य के नाम पर किचन में बदल देता है, कभी शिक्षक चुनाव कराते है तो कभी जनगणना. यह सब न हो तो शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे.


DEBATE:कैसे याद करेंगे ज्योति बसु को
SENT:18-Jan-2010 14:33COMMENT:भारतीय इतिहास में केवल ज्योति दा और सोनिया गाँधी जी ही दो ऐसे नेता हैं जो चाहते तो सहज ही प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होने इसे अस्वीकार कर दिया.
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Tuesday 23 February, 2010

बाल कल्याण संस्थान खटीमा द्वारा आयोजित इण्डो नेपाल बाल साहित्तकार सम्मेलन , दिनांक २० , २१ फरवरी २०१० को संपन्न हुआ .






मां पूर्णागिरि की छांव में , नेपाल की सरहद के पास ,हिमालय की तराई .. खटीमा , उत्तराखण्ड ...खटीमा फाइबर्स की रिसाइकल्ड पेपर फैक्ट्री का मनमोहक परिवेश ... आयोजको का प्रेमिल आत्मीय व्यवहार ...बाल कल्याण संस्थान खटीमा द्वारा आयोजित इण्डो नेपाल बाल साहित्तकार सम्मेलन , दिनांक २० , २१ फरवरी २०१० को संपन्न हुआ .
कानपुर में एक बच्चे ने स्कूल में अपने साथी को गोली मार दी ... बच्चो को हम क्या संस्कार दे पा रहे हैं ? क्या दिये जाने चाहिये ? बाल साहित्य की क्या भूमिका है , क्या चुनौतियां है ? इन सब विषयो पर गहन संवाद हुआ . दो देशो , १४ राज्यो के ६० से अधिक साहित्यकार जुटें और काव्य गोष्ठी न हो , ऐसा भला कैसे संभव है ... रात्रि में २ बजे तक कविता पाठ हुआ .. जो दूसरे दिन के कार्यक्रमों में भी जारी रहा ..
९४ वर्षीय बाल कल्याण संस्थान खटीमा के अध्यक्ष आनन्द प्रकाश रस्तोगी की सतत सक्रियता , साहित्य प्रेम , व आवाभगत से हम सब प्रभावित रहे .. ईश्वर उन्हें चिरायु , स्वस्थ रखे . अन्त में आगत रचनाकारो को सम्मानित भी किया गया ..उत्तराखण्ड के मुख्य सूचना आयुक्त डा आर एस टोलिया जी ने कार्यक्रम का मुख्य आतिथ्य स्वीकार किया


कुमायनी होली .. का आगाज ..स्थानीय डा. जोशी के निवास पर ..हम रचनाकारो के साथ ..