Saturday, 28 February 2009

कृपा प्रसाद तव श्री रघुनंदन

उर में अमी का अभिनव मंथन
भ्रमर वृंद का गुंजन वंदन
"कल्पना" का कुसमित उपवन
विकसे व्यथित "विदग्ध" सुमन
प्रफुलित चातक का चिर चिंतन
चितवत स्वाति नक्षत्र नयन
विवेक वृष्टि का नित नववर्धन
कृपा प्रसाद तव श्री रघुनंदन


ये उद्गार हैं मित्र संतोष मिश्रा जी के , जो उन्होंने "कौआ कान ले गया" पढ़कर लिख भेजे है .