Friday 7 September, 2018

गोपालराम गहमरी

मण्डला के नर्मदा तट पर गोपालराम गहमरी ने रचे थे हिंदी के पहले जासूसी उपन्यास

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १ ,शिला कुन्ज , रामपुर , जबलपुर
मो ७०००३७५७९८


        दुनियां में नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की परम्परा है . यही नर्मदा मण्डला नगरी की तीन ओर से परिक्रमा करती है . नदी के एक तट पर मण्डला नगर है ,  नर्मदा से बंजर नदी के संगम पर खड़ा बुर्ज और किला है तो दूसरे तट पर महाराजपुर उपनगर है जहाँ मालगुजार चौधरी मुन्नालाल व जगन्नाथ चौधरी जी का भव्य महलनुमा प्रांगण है , मंदिर हैं . मण्डला के विश्व प्रसिद्ध जंगलो , नदी तट के प्राकृतिक दृश्य लेखकीय  मन में रचनाओ का स्फुरण करते हैं . मण्डला से कोई 20 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा तट पर ही गौड राजाओ का रामनगर  किला है व पास ही सुप्रसिद्ध करिया पहाड़ है , इस पहाड़ की विशेषता यह है कि लगभग 900 मीटर उँचे पहाड़ी पर सारे पत्थर पंचकोणीय 3 से 4 मीटर लम्बी बीम के आकार के हैं , ये पत्थर किसी भी मिट्टी से जुड़े नही हैं , अर्थात ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने काले पत्थरो की बीम बनवा कर उनका बेतरतीब संग्रह कर रखा हो पर यह प्राकृतिक है . गोपाल राम गहमरी जी का एक उपन्यास है " करिया पहाड़ " निश्चित ही यह इस पहाड़ से अभिप्रेरित पृष्ठभूमि पर लिखी हुई रचना है . मधुपुरी भी मण्डला के पास ही एक गांव है , गहमरी जी का एक उपन्यास "मधुपुरी के चोर" है . उनकी रचनाओ पर मण्डला का प्रभाव  अलग विस्तृत शोध का विषय है .जिस पर कार्य किये जाने की जरूरत है . मैं मूलतः मण्डला का निवासी हूं . हमारा परिवार मण्डला के पुराने कुछ  पढ़े लिखे परिवारो में से है . मेरे घर महलात के निकट ही श्री राम अग्रवाल पुस्तकालय है ,मैं इसका सदस्य था अपने बचपन में मैंने वहां खूब किताबें पढ़ी हैं ,उन दिनो उसका संचालन श्री गिरिजा शंकर अग्रवाल करते थे . उनसे मैंने स्व गोपालराम गहमरी जी के मण्डला में ही हिन्दी के पहले जासूसी उपन्यास लेखन का संस्मरण सुना था . शायद मैने तब गहमरी जी की कोई किताब पढ़ी भी थी . अतः जब गहमर के इस आयोजन में मुझे सम्मानित करने का प्रस्ताव आया तो मैं गहमर जी के विषय में और जानने की इच्छा से मना नही कर सका यद्यपि सामान्यतः मैं सम्मानो से दूर ही रहता हूं .
        कहा जाता है कि  एक बार सन् 1882 में मुन्नालाल जी चौधरी अपने एक रिश्तेदार के यहाँ गहमर गये थे. वहां पर गोपालराम नाम के एक बालक से उनकी मुलाकात हुई.  बालक की प्रतिभा से प्रभावित होकर चौधरी जी उसे अपने साथ  महाराजपुर ले आए . महाराजपुर आने के पहले गोपालराम जी मातृ-पितृविहीन हो चुके थे क्योंकि उन्होंने अपने उपन्यास 'सास पतोहू' (1899) में  लिखा है कि बड़े लोगों के मुँह से बेटा या बेटी शब्द सुनते कैसा मीठा लगता है . चौधरी जी से उन्हें पितृवत संरक्षण मिला. गहमरी जी का कार्य महाराजपुर में जगन्नाथ चौधरी को पढ़ाना था , और मुन्नालाल जी के कार्य में सहयोग करना था.  महाराजपुर में ही रहकर गहमर जी ने बंगला उपन्यासों का अनुवाद हिन्दी में किया . चौधरी जी के रिकार्ड में अभी भी उनके द्वारा किया हुआ पत्र-व्यवहार, अनुवाद कार्य संबंधी लेखा-जोखा मौजूद है.  यहीं पर रहते हुए केहरपुर निवासी पंडित बालमुकुन्द परोहित से गहमरी जी का परिचय हुआ. पुरोहित जी उस समय सागर में तहसीलदार थे. गहमरी जी ने अपना उपन्यास 'सास पतोहू' पुरोहित जी को ही समर्पित किया है.  महाराजपुर के चौधरी बाड़ा में रहते हुए गहमरी जी ने 'शोणितचक', 'घटना घटाटोप', 'माधवीकंकण' उपन्यासों की रचना की. इसी समय मंडल महाराजपुर में 'कंठ कोकिला' नामक साहित्यिक संस्था का गठन हुआ, जिसमें बाबू जगन्नाथ प्रसाद मिश्र, पं. लोचनप्रसाद पाण्डेय, पं. रेवाशंकर चौबे, गोपाल कवि, सेठ भद्देलाल जी अग्रवाल, चौधरी जगन्नाथ प्रसाद के साथ गहमरी जी भी सदस्य थे.  उस समय गहमरी जी के द्वारा अनेक नाटक भी अनुदित किए गए जिसमें 'विद्या विनोद' (1892), 'देशदशा' (1892), 'यौवनयोगिनी' (1893), 'दादा और मैं' (1893), 'चित्रागंदा' (1895) तथा 'वग्रूवाहन' एवं 'जैसे को तैसा' आदि प्रमुख हैं . सामाजिक उपन्यासों में 'चतुरचंचला' (1893), 'भानुमति' (1884), 'नये बाबू', 'सास पतोहू', 'देवरानी-जेठानी दो बहन', 'तीन पतोहू', 'गृहलक्ष्मी', 'ठन-ठन गोपाल' आदि उपन्यासों से गहमरी जी ने विशेष प्रसिध्दि पाई. गहमरी जी ने इन उपन्यासों को मण्डला के रायबहादुर जगन्नाथ चौधरी को समर्पित किया था.  जगन्नाथ चौथरी द्वारा लिखित 'हरिशचन्द्र' नाटक महाराजपुर में ही खेला गया था , निश्चित ही उसके लेखन में गहमर जी का साथ प्रेरक रहा होगा .  1866 से 1882 तक गहमरी जी का कार्यक्षेत्र महाराजपुर ही रहा. गहमरीजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.  वे कवि, अनुवादक, उपन्यासकार, निबंधकार, नाटककार, कहानीकार के रूप में जाने जाते थे.  आपने मुम्बई के बेकेटेश्वरी प्रेस में भी काम किया था। आप राजा रामपाल के आमंत्रण पर कालाकांकर भी गये थे। आपने महाराजपुर में रहते हुए मेरठ से प्रकाशित होने वाले 'साहित्य सरोज' पत्रिका का सम्पादन किया था और वहीं से आपने पहला जासूसी ढंग का मासिक-पत्र 'गुप्तकथा' नाम से निकाला था.  फिर आप पाटन आ गये थे. 1897 में पुन: मुम्बई गये थे . 1899 में कोलकाता जाकर 'भारत मित्र' का स्थानापन्न संपादक बन कार्य किया था . 1900 में गहमर लौटे और अंत तक 'जासूस' नामक पत्रिका का सम्पादन करते रहे.गोपालराम गहमरी ने लगभग 64  मौलिक जासूसी उपन्यास लिखे , अनूदित उपन्यासों को  मिला दें तो यह संख्या 200  पहुंच जाती है . यदि गहमरी जी के साहित्य के अध्ययन के बाद कोई शोधार्थी समुचित दृष्टि के साथ मण्डला का भ्रमण करे तो गहमरी जी के साहित्य पर मण्डला के परिवेश के प्रभाव का आकलन नई खोज कर सकता है . 

Saturday 18 August, 2018

पठनीयता के अभाव को चुनौती देती म.प्र. संस्कृति परिषद की पाठक मंच योजना एक सर्वथा नवाचारी प्रयास

म. प्र. साहित्य अकादमी के नवाचारी साहित्यिक प्रयास
विवेक रंजन श्रीवास्तव
संयोजक , पाठक मंच , जबलपुर
किस तरह कोई समर्पित व्यक्ति अपने नेतृत्व व नीति से किसी संस्था को नया स्वरूप दे सकता है यह श्री मनोज श्रीवास्तव प्रमुख सचिव संस्कृति म. प्र. एवं श्री उमेश कुमार सिंह निदेशक साहित्य अकादमी भोपाल के नेतृत्व ने सिद्ध कर दिखाया है . युवाओ को साहित्य से जोड़ने के लिये अकादमी प्रदेश में जगह जगह पहुंचकर क्षेत्रीय साहित्यकारो की जयंतियो के आयोजन करने के नवाचारी प्रयास कर रही है . अकादमी ने साहित्यिक कैलेण्डर बना कर वर्ष भर के साहित्यकारो की जयंतियो , पुण्य तिथियो व आयोजनो की ओर जन सामान्य का ध्यानाकर्षण किया . सोशलमीडिया का रचनात्मक उपयोग करते हुये व्हाट्सअप ग्रुप , फेसबुक पेज आदि नवीनतम इलेक्ट्रानिक संसाधनो के माध्यमो से अकादमी की गतिविधियो को विश्व व्यापी स्तर पर साहित्य प्रेमियो के बीच त्वरित रूप से पहुंचाने का अभिनव कार्य भी किया जा रहा है .
म. प्र. साहित्य अकादमी की प्रतिनिधि इकाई के रूप में व एक सृजनात्मक स्थानीय
संस्था के रूप में प्रदेश के विभिन्न अंचलो में साहित्य प्रेमियो के संयोजन में जगह जगह पाठक मंच सक्रिय हैं. अकादमी की पाठक मंच योजना देश में इस तरह की पहली अभिन्न योजना है . समकालीन , चर्चित व महत्वपूर्ण किताबो तथा महत्व पूर्ण पत्र पत्रिकाओ पर इन पाठक मंचो में चर्चा के माध्यम से पाठको तथा लेखको को वैचारिक अभिव्यक्ति का सुअवसर सुलभ होता है . पाठक मंच संयोजको का एक वार्षिक सम्मेलन भी आयोजित किया जाता है .
पहली बार साहित्यिक पत्रिकाओ के संपादको का वैचारिक सम्मेलन भोपाल में जनवरी २०१८ के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जा रहा है . इससे पहले साहित्यिक संस्थाओ के पदाधिकारियो का राज्यस्तरीय सम्मेलन भी भोपाल में आयोजित किया गया जो अपनी तरह का पहला आयोजन था जिसमें विभिन्न क्षेत्रो की साहित्यिक संस्थाओ के प्रतिनिधियो ने परस्पर वैचारिक विमर्श किया .
अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संवाद के आयोजन भी प्रति वर्ष हो रहे हैं .
वर्तमान युग इलेक्ट्रानिक संसाधनो से भरा हुआ है , ऐसे समय में पठनीयता
का स्वाभाविक अभाव है . किन्तु अकादमी की पत्रिका साक्षात्कार जिस तरह ठीक समय पर पाठको तक नियमित रूप से पहुंच रही है , व राष्ट्र की वैचारिक साहित्यिक सांस्कृतिक अस्मिता का परिदृश्य निर्मित कर रही है उससे नव लेखन को सकारात्मक दिशा मिली है . अकादमी की टीम इन नवाचारी प्रयोगो से साहित्य जगत में चेतना जगाने के लिये बधाई की पात्र है .


पाठक मंच जबलपुर में कौशल किशोर की पुस्तक महर्षि अरविन्द घोष पर व्यापक चर्चा ......

विगत दिवस जबलपुर पाठक मंच ने सत्साहित्य प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित किताब "महर्षि अरविन्द घोष" पर चर्चा गोष्ठी का आयोजन पुस्तकालय में किया गया . किताब के परिप्रेक्ष्य में बोलते हुये वरिष्ठ कवि व अनुवादक प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध ने इसे महर्षि जी के विषय में केवल परिचयात्मक छोटी किताब बताया . उन्होने कहा कि पुस्तक में महर्षि के जीवन के सागर को गागर में भरने का प्रयास किया गया है इसलिये अनेक महत्वपूर्ण घटनाओ को स्पर्श मात्र करते हुये लेखक निकल गया है . महर्षि के प्रारंभिक जीवन , इंग्लैंड में व्यतीत उनका समय , बडौदा में उनके कार्य , बंगाल में किया गया राष्ट्रवादी योगदान , पांडीचेरी , मीरा रिचर्ड का साथ , आदि बिंदुओ पर लेखक ने थोड़ी थोड़ी बातें रखी है . युवाओ में महरंषि के प्रति कौतुहल जगाने का काम पुस्तक कर सकती है .
 फोटो संलग्न------ मनोज श्रीवास्तव एवं श्री उमेश सिंह व पुस्तक महर्षि अरविंद घोष
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तुम जरा चुपचाप रहना।
.......जयप्रकाश श्रीवास्तव

सुनते हैं
दीवारों के भी कान हैं
तुम जरा चुपचाप रहना।

कह न देना
भूलकर भी
क्षणिक से सुख की कथा
मत सुनाना
चाहकर भी
अपने इस मन की व्यथा
हमको तो
दुख का मिला वरदान है
सुखों की पदचाप सुनना।

पीढ़ियों से
ढो रहे हैं
विरासत मजदूर वाली
झूठ लगती
है सचाई
बदलती तकदीर वाली
हर तरफ
फैला हुआ श्मशान है
मना है संताप करना।

प्रति-बंधित
हो गई हैं
सब की सब आलोचनाएं
जी रही हैं
प्रकंपित हो
मौन बहरी कामनाएं
रास्तों पर
उनका ही गुणगान है
व्यर्थ पश्चाताप करना।

म. प्र. साहित्य अकादमी की अभिनव पुरस्कार योजना