Thursday 23 December, 2010

रामचरित मानस के मनोरम प्रसंग

रामचरित मानस के मनोरम प्रसंग

विवेक रंजन श्रीवास्तव

मो . 09425806252

हम , आस्था और आत्मा से राम से जुडे हुये हैं । ऐसे राम का चरित प्रत्येक दृष्टिकोण से हमारे लिये केवल मनोरम ही तो हो सकता है । मधुर ही तो हो सकता है। अधरं मधुरमं वदनम् मधुरमं ,मधुराधि पते रखिलमं मधुरमं -कृष्ण स्तुति में रचित ये पंक्तियां इष्ट के प्रति भक्त के भावों की सही अनुभूति है, सच्ची अभिव्यक्ति है । जब श्रद्वा और विश्वास प्राथमिक हों तो शेष सब कुछ गौंण हो जाता है। मात्र मनोहारी अनुभूति ही रह जाती है। मां प्रसव की असीम पीडा सहकर बच्चे को जन्म देती है , पर वह उसे उतना ही प्यार करती है ,मां बच्चे को उसके प्रत्येक रूप में पसंद ही करती है। सच्चे भक्तों के लिये मानस का प्रत्येक प्रसंग ऐसे ही आत्मीय भाव का मनोरम प्रसंग है।

किन्तु कुछ विशेष प्रसंग भाषा ,वर्णन , भाव , प्रभावोत्पादकता ,की दृष्टि से बिरले हैं । इन्हें पढ ,सुन, हृदयंगम कर मन भावुक हो जाता है । श्रद्वा ,भक्ति , प्रेम , से हृदय आप्लावित हो जाता है । हम भाव विभोर हो जाते हैं । अलौलिक आत्मिक सुख का अहसास होता है ।

राम चरित मानस के ऐसे मनोरम प्रसंगों को समाहित करने का बिंदु रूप प्रयास करें तो वंदना , शिव विवाह , राम प्रागट्य , अहिल्या उद्वार ,पुष्प वाटिकाप्रसंग , धनुष भंग , राम राज्याभिषेक की तैयारी , वनवास के कठिन समय में भी केवट प्रसंग , चित्रकूट में भरत मिलाप , शबरी पर राम कृपा , वर्षा व शरद ऋतु वर्णन ,रामराज्य के प्रसंग विलक्षण हैं जो पाठक ,श्रोता , भक्त के मन में विविध भावों का संचार करते हैं । स्फुरण के स्तर तक हृदय के अलग अलग हिस्से को अलग आनंदानुभुति प्रदान करते हैं । रोमांचित करते हैं । ये सारे ही प्रसंग मर्म स्पर्शी हैं , मनोरम हैं ।
मनोरम वंदना
जो सुमिरत सिधि होई गण नायक करि बर बदन

करउ अनुगृह सोई , बुद्वि रासि सुभ गुन सदन

मूक होहि बाचाल , पंगु चढिई गिरि बर गहन

जासु कृपासु दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन

प्रभु की ऐसी अद्भुत कृपा की आकांक्षा किसे नहीं ऐसी मनोरम वंदना अंयत्र दुर्लभ है । संपूर्ण वंदना प्रसंग भक्त को श्रद्वा भाव से रूला देती है।
शिव विवाह
शिव विवाह के प्रसंग में गोस्वामी जी ने पारलौकिक विचित्र बारात के लौककीकरण का ऐसा दृश्य रचा है कि हम हास परिहास , श्रद्वा भक्ति के संमिश्रित मनो भावों के अतिरेक का सुख अनुभव करते हैं ।

गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं

भोजन करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहिं

जेवंत जो बढ्यो अनंदु सो मुख कोटिहूं न परै कह्यो

अचवांई दीन्हें पान गवनें बास जहं जाको रह्यो ।



राम जन्म नहीं हुआ , उनका प्रागट्य हुआ है ।


भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी

लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आमुद भुजचारी

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा

कीजै सिसु लीला अति प्रिय सीला यह सुख परम अनूपा

सचमुच यह सुख अनूपा ही है । फिर तो ठुमक चलत राम चंद्र ,बाजत पैजनियां.... , और गुरू गृह पढन गये रघुराई.... , प्रभु राम के बाल रूप का वर्णन हर दोहे ,हर चैपाई , हर अर्धाली, हर शब्द में मनोहारी है ।

अहिल्या उद्वार

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तप पुंज सही

देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही

अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नही आवई बचन कही

अतिसय बड भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जल धार बही

मन मस्तिष्क के हर अवयव पर प्रभु कृपा का प्रसाद पाने की आकांक्षा हो तो इस प्रसंग से जुडकर इसमें डूबकर इसका आस्वादन करें , जब शिला पर प्रभु कृपा कर सकते हैं तो हम तो इंसान हैं । बस प्रभु कृपा की सच्ची प्रार्थना के साथ इंसान बनने के यत्न करें , और इस प्रसंग के मनोहारी प्रभाव देखें ।

पुष्प वाटिका प्रसंग

श्री राम शलाका प्रश्नावली के उत्तर देने के लिये स्वयं गोस्वामी जी ने इसी प्रसंग से दो सकारात्मक भावार्थों वाली चैपाईयों का चयन कर इस प्रसंग का महत्व प्रतिपादित कर दिया है ।

सुनु प्रिय सत्य असीस हमारी पूजहिं मन कामना तुम्हारी

एवं

सुफल मनोरथ होंहि तुम्हारे राम लखन सुनि भए सुखारे

जिस प्रसंग में स्वयं भगवती सीता आम लडकी की तरह अपने मन वांछित वर प्राप्ति की कामना के साथ गिरिजा मां से प्रार्थना करें उस प्रसंग की आध्यत्मिकता पर तो ज्ञानी जन बडे बडे प्रवचन करते हैं । इसी क्रम में धनुप भंग प्रकरण भी अति मनोहारी प्रसंग है ।

राम राज्याभिषेक की तैयारी

लौकिक जगत में हम सबकी कामना सुखी परिवार की ही तो होती है समूची मानस में मात्र तीन छोटे छोटे काल खण्ड ही ऐसे हैं जब राम परिवार बिना किसी कठिनाई के सुखी रह सका है ।

पहला समय श्री राम के बालपन का है । दूसरा प्रसंग यही समय है जब चारों पुत्र ,पुत्रवधुयें , तीनों माताओं और राजा जनक के साथ संपूर्ण भरा पूरा परिवार अयोध्या में है , राम राज्याभिपेक की तैयारी हो रही है । तीसरा कालखण्ड राम राज्य का वह स्वल्प समय है जब भगवती सीता के साथ राजा राम राज काज चला रहे हैं ।

राम राज्याभिषेक की तैयारी का प्रसंग अयोध्या काण्ड का प्रवेश है । इसी प्रसंग से राम जन्म के मूल उद्देश्य की पूर्ति हेतु भूमिका बनती है । लौकिक दृष्टि से हमें राम वन गमन से ज्यादा पीडादायक और क्या लग सकता है पर जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है । पल भर में होने वाला राजा वनवासी बन सकता है , वह भी कोई और नहीं स्वयं परमात्मा ! इससे अधिक शिक्षा और कैसे प्रसंग से मिल सकती है ।यह गहन मनन चिंतन व अवगाहन का मनोहारी प्रसंग है।

केवट प्रसंग

मांगी नाव न केवट आना कहई तुम्हार मरमु मैं जाना

जिस अनादि अनंत परमात्मा का मरमु न कोई जान सका है न जान सकता है , जो सबका दाता है , जो सबको पार लगाता है , वही सरयू पार करने के लिये एक केवट के सम्मुख याचक की मुद्रा में है! और बाल सुलभ भाव से केवट पूरे विश्वास से कह रहा है - प्रभु तुम्हार मरमु मैं जाना। और तो और वह प्रभु राम की कृपा का पात्र भी बन जाता है । सचमुच प्रभु बाल सुलभ प्रेम के ही तो भूखे हैं । रोना आ जाता है ना .. कैसा मनोरम प्रसंग है ।

इसी प्रसंग में नदी के पार आ जाने पर भगवान राम केवट को उतराई स्वरूप कुछ देना चाहते हैं किन्तु वनवास ग्रहण कर चुके श्रीराम के पास क्या होता यहीं भाव , भाषा की दृष्टि से तुलसी मनोरम दृश्य रचना करते हैं । मां सीता राम के मनोभावों को देखकर ही पढ लेती हैं ,और -

‘‘ पिय हिय की सिय जान निहारी , मनि मुदरी मन मुदित उतारी ’’ ।

भारतीय संस्कृति में पति पत्नी के एकात्म का यह श्रेष्ठ उदाहरण है ।





चित्रकूट में भरत मिलाप

आपके मन के सारे कलुष भाव स्वतः ही अश्रु जल बनकर बह जायेंगे , आप अंतरंग भाव से भरत के त्याग की चित्रमय कल्पना कीजीये , राम को मनाने चित्रकूट की भरत की यात्रा , आज भी चित्रकूट की धरती व कामद गिरि पर्वत भरत मिलाप के साक्षी हैं । इसी चित्रकूट में -

चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर , तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुबीर

यह तीर्थ म.प्र. में ही है , एक बार अवश्य जाइये और इस प्रसंग को साकार भाव में जी लेने का यत्न कीजीये । राम मय हो जाइये ,श्रद्वा की मंदाकिनी में डुबकी लगाइये ।

बरबस लिये उठाई उर , लाए कृपानिधान

भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान ।

भरत से मनोभाव उत्पन्न कीजीये ,राम आपको भी गले लगा लेंगें ।

शबरी पर कृपा

नवधा भक्ति की शिक्षा स्वयं श्री राम ने शबरी को दी है । संत समागम , राम कथा में प्रेम , अभिमान रहित रहकर गुरू सेवा , कपट छोडकर परमात्मा का गुणगान , राम नाम का जाप ईश्वर में ढृड आस्था, सत्चरित्रता , सारी सृष्टि को राम मय देखना , संतोषं परमं सुखं , और नवमीं भक्ति है सरलता । स्वयं श्री राम ने कहा है कि इनमें से काई एक भी गुण भक्ति यदि किसी भक्त में है तो - ‘‘सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे ।’’ जरूरत है तो बस शबरी जैसी अगाध श्रद्वा और निश्छल प्रेम की । राम के आगमन पर शबरी की दशा यूं थी -

प्रेम मगन मुख बचन न आवा पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा

ऋतु वर्णन

गोस्वामी तुलसी दास का साहित्यिक पक्ष वर्षा ,शरद ऋतुओं के वर्णन और इस माध्यम से प्रकृति से पाठक का साक्षात्कार करवाने में , मनोहारी प्रसंग किष्किन्धा काण्ड में मिलता है ।

छुद्र नदी भर चलि तोराई जस थोरेहु धनु खल इतिराई

प्रकृति वर्णन करते हुये गोस्वामी जी भक्ति की चर्चा नहीं भूलते -

बिनु घन निर्मल सोह अकासा हरिजन इव परिहरि सब आसा

रामराज्य

सुन्दर काण्ड तो संपूर्णता में सुन्दर है ही । रावण वध , विभीषण का अभिषेक , पुष्पक पर अयोध्या प्रस्थान आदि विविध मनोरम प्रसंगों से होते हुये हम उत्तर काण्ड के दोहे क्रमांक 10 के बाद से दोहे क्रमांक 15 तक के मनोरम प्रसंग की कुछ चर्चा करते है । जो प्रभु राम के जीवन का सुखकर अंश है । जहां भगवती सीता ,भक्त हनुमान , समस्त भाइयों , माताओं , अपने वन के साथियों , एवं समस्त गुरू जनों अयोध्या के मंत्री गणों के साथ हमारे आराध्य राजा राम के रूप में आसीन हैं । राम पंचायतन यहीं मिलता है । ओरछा के सुप्रसिद्व मंदिर में आज भी प्रभु राजा राम अपने दरबार सहित इसी रूप में विराजमान है।
राज्य संभालने के उपरांत ‘ जाचक सकल अजाचक कीन्हें ’ राजा राम हर याचना करने वाले को इतना देते हैं कि उसे अयाचक बनाकर ही छोडते हैं , अब यह हम पर है कि हम राजा राम से क्या कितना और कैसे , किसके लिये मांगते हैं । हमें अपने सत्कर्मों से अपने ही हृदय में बिराजे राजा राम के दरबार में पहुंचने की पात्रता तो हासिल करनी ही होगी । तभी तो हम याचक बन सकते हैं ।

जय राम रमारमनं समनं भवताप भयाकुल पाहि जनं

अवधेश सुरेश रमेस विभो सरनागत मागत पाहि प्रभो


बस इसी विनती से इस मनोरम प्रसंग का आनंद लें कि


गुन सील कृपा परमायतनं प्रनमामि निरंतर श्री रमनं

रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं महिपाल बिलोकय दीनजनं ।।

जय राजा राम जय श्रीराम

1 comment:

Arvind Mishra said...

सुन्दर सुरुचिपूर्ण संकलन ! आभार !