अब तो चेहरों को सजाने लग गये हैं मुखौटे !
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध"
सेवानिवृत प्राध्यापक प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय
Jabalpur (M.P.)INDIA
मोबा. 9425484452
Email vivek1959@sify.com
अब तो चेहरों को सजाने लग गये हैं मुखौटे !
इसी से बहुतों को भाने लग गये हैं मुखौटे !
रूप की बदसूरती पूरी छिपा देते हैं ये
झूठ को सच बताने लग गये हैं मुखौटे !
अनेकों तो देखकर असली समझते हैं इन्हें
सफाई !सी दिखाने लग गये हैं मुखौटे !
क्षेत्र हो शिक्षा या आर्थिक धर्म या व्यवसाय का
हरएक में एक मोहिनी बन छा गये हैं मुखौटे !
इन्हीं का गुणगान विज्ञापन भी सारे कर रहे
नये जमाने को सहज ही भा गये हैं मुखौटे !
सचाई और सादगी लोगों को लगती है बुरी
बहुतों को अपने में भरमाने लग गये हैं मुखौटे !
समय के संग लोगों को रुचियों में अब बदलाव है
खरे खारे लग रहे सब मधुर खोटे मुखौटे !
बनावट औ दिखावट में उलझ गई है जिंदगी
हर जगह लगते रिझाते जगमगाते मुखौटे !
मुखौँटों का ये चलन पर ले कहाँ तक जायेगा
है विदग्ध विचारना ये क्यों हैं आखिर मुखौटे !
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