Thursday, 18 December 2025

अमेरिका का प्रशासन

 अमेरिका का प्रशासन तंत्र 


विवेक रंजन श्रीवास्तव 


अमेरिका में प्रशासन  लोकतंत्र की जीवंत व्यवस्था है ।  हर संस्था दूसरी संस्था पर नजर रखती है और कोई भी स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने का साहस नहीं कर पाता। इस तंत्र की आत्मा शक्ति के विकेंद्रीकरण में बसती है और यही कारण है कि प्रशासन वहां किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं बल्कि संस्थागत संतुलन से चलता है। राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च निर्वाचित प्रतिनिधि होता है पर वह सम्राट नहीं होता बल्कि एक जिम्मेदार प्रबंधक की भूमिका में रहता है जिसे हर कदम पर संविधान और संस्थाओं की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है।


अमेरिकी प्रशासन की बुनियाद संघीय ढांचे पर टिकी है जहां केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार स्पष्ट रूप से विभाजित हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा विदेश नीति मुद्रा और अंतरराज्यीय मामलों को देखती है जबकि शिक्षा पुलिस स्वास्थ्य और स्थानीय विकास जैसे विषय राज्यों के हाथ में रहते हैं। यह व्यवस्था भारतीय पाठक को थोड़ी अजीब लग सकती है क्योंकि यहां एक ही देश में कानूनों और नीतियों का रंग राज्य दर राज्य बदल जाता है। यहां तक कि इनकम टैक्स भी राज्य सरकार तय करती हैं। इसी विविधता में अमेरिका की प्रशासनिक जीवंतता छिपी है। एक राज्य में जो नीति सफल मानी जाती है वह दूसरे राज्य में असफल भी हो सकती है और इस असफलता से सीख लेकर नया प्रयोग शुरू हो जाता है।


कार्यपालिका के रूप में राष्ट्रपति का कार्यालय प्रशासन का चेहरा है। राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के माध्यम से विभिन्न विभागों को संचालित करता है। हर मंत्री अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ माना जाता है और उसे नियुक्ति से पहले संसद की स्वीकृति की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यहां प्रशासनिक पद केवल राजनैतिक वफादारी का इनाम नहीं होते बल्कि सार्वजनिक जांच के बाद दिए जाते हैं। यही कारण है कि किसी एक गलती पर मंत्री या उच्च अधिकारी को त्यागपत्र देना असामान्य नहीं माना जाता।


विधायिका के रूप में United States Congress अमेरिकी लोकतंत्र का वह मंच है जहां बहस केवल औपचारिकता नहीं बल्कि नीति निर्माण का हथियार होती है। कांग्रेस के दोनों सदन राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण रखते हैं। बजट पारित न हो तो सरकार ठप हो सकती है और राष्ट्रपति का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम कागजों में सिमट सकता है। यहां विधायिका और कार्यपालिका के बीच टकराव को लोकतंत्र की कमजोरी नहीं बल्कि उसकी ताकत माना जाता है क्योंकि इसी टकराव से संतुलन पैदा होता है।


न्यायपालिका के रूप में Supreme Court of the United States अमेरिकी प्रशासन का नैतिक प्रहरी है। सर्वोच्च न्यायालय केवल विवादों का निपटारा नहीं करता बल्कि यह तय करता है कि सरकार का कोई कदम संविधान की आत्मा के अनुरूप है या नहीं। राष्ट्रपति के आदेश से लेकर संसद के कानून तक सब न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं। यही कारण है कि अमेरिका में अदालत का निर्णय सरकार की नीतियों को पलट देने की क्षमता रखता है और सरकार उसे सिर झुकाकर स्वीकार करती है।


प्रशासनिक व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता नौकरशाही का अपेक्षाकृत पेशेवर और स्थायी स्वरूप है। सरकारें बदलती हैं पर प्रशासनिक ढांचा चलता रहता है। नीति निर्धारण में विशेषज्ञता का सम्मान किया जाता है और आंकड़ों के बिना निर्णय को गंभीरता से नहीं लिया जाता। यहां फाइलें लाल फीते में उलझती जरूर हैं पर पारदर्शिता का दबाव इतना अधिक है कि देर सबेर जवाब देना ही पड़ता है। सूचना का अधिकार केवल कानून नहीं बल्कि नागरिक स्वभाव बन चुका है।


अमेरिकी प्रशासन में मीडिया और नागरिक समाज भी अनौपचारिक किंतु प्रभावशाली स्तंभ की तरह काम करते हैं। किसी सरकारी निर्णय पर सवाल उठाना देशद्रोह नहीं बल्कि नागरिक कर्तव्य माना जाता है। पत्रकार जांच करते हैं,  अदालतें सुनती हैं और प्रशासन सफाई देता है। यह सतत संवाद प्रशासन को अहंकारी बनने से रोकता है।


कुल मिलाकर अमेरिका का सरकारी प्रशासन तंत्र किसी आदर्श लोक की व्यवस्था नहीं बल्कि निरंतर आत्मसुधार की प्रक्रिया है। वहां भी विवाद हैं , ध्रुवीकरण है और सत्ता संघर्ष है पर इन सबके बीच संस्थाओं की मजबूती यह सुनिश्चित करती है कि व्यवस्था व्यक्ति से बड़ी बनी रहे। शायद यही अमेरिकी प्रशासन की सबसे बड़ी सीख है कि लोकतंत्र का सौंदर्य आदेश में नहीं बल्कि संतुलित अव्यवस्था में छिपा होता है।


 अमेरिका में जिला प्रशासन सुनते ही भारतीय मन अनायास ही कलेक्टर की कुर्सी खोजने लगता है पर वहां यह कुर्सी मौजूद ही नहीं है। अमेरिकी प्रशासनिक व्यवस्था में जिला का अर्थ काउंटी से होता है और काउंटी किसी एक सर्वशक्तिमान अधिकारी के अधीन नहीं बल्कि निर्वाचित और पेशेवर पदों के सामूहिक संतुलन से चलती है। यहां जिला प्रशासन व्यक्ति केंद्रित नहीं बल्कि प्रणाली केंद्रित है और यही इसका सबसे बड़ा अंतर  है।


अमेरिका की प्रत्येक काउंटी में अलग अलग प्रकार के निर्वाचित अधिकारी होते हैं। कहीं काउंटी एग्जीक्यूटिव होता है ,कहीं बोर्ड ऑफ सुपरवाइजर नामक निर्वाचित समूह शासन करता है। कानून व्यवस्था का जिम्मा शेरिफ के पास होता है जो जनता द्वारा चुना जाता है  ।  इसीलिए वह सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होता है न कि किसी सचिवालय के प्रति या राजनैतिक व्यक्ति के लिए । कर वसूली रजिस्ट्रेशन और रिकॉर्ड प्रबंधन जैसे कार्य काउंटी क्लर्क और ट्रेजरर जैसे अधिकारी संभालते हैं जो या तो निर्वाचित होते हैं या पेशेवर नियुक्ति से आते हैं। इस व्यवस्था में किसी एक अधिकारी के पास वह सर्वाधिकार नहीं होता जो भारत में कलेक्टर के पास निहित होते हैं।


यहां प्रशासनिक शक्ति का विकेंद्रीकरण इतना गहरा है कि एक ही जिले में कई छोटी  प्रशासनिक इकाई दिखती हैं। शिक्षा का जिम्मा स्कूल बोर्ड संभालते हैं स्वास्थ्य सेवाएं अलग एजेंसियों के अधीन होती हैं और भूमि उपयोग योजना के लिए अलग विभाग होता है। इस बिखराव को अराजकता नहीं बल्कि जवाबदेही का औजार माना जाता है। यदि सड़क खराब है तो जनता जानती है कि किस विभाग से सवाल करना है और यदि पुलिस से शिकायत है तो शेरिफ सीधे मतदाताओं के सामने जवाबदेह है।


अमेरिका का सरकारी कर्मचारी भारतीय बाबू की तरह सर्वज्ञ नहीं होता बल्कि अपने सीमित दायरे का विशेषज्ञ माना जाता है। उसकी ताकत अधिकार में नहीं बल्कि प्रक्रिया में होती है। नियम पुस्तिकाएं यहां भी मोटी हैं पर उनका पालन व्यक्तिगत कृपा से नहीं बल्कि सिस्टम के दबाव से होता है। नागरिक को फाइल आगे बढ़ाने के लिए अधिकारी के मूड की नहीं बल्कि निर्धारित प्रक्रिया की जानकारी होना अधिक जरूरी होता है। यही कारण है कि रिश्वत जैसी अवधारणा यहां नैतिक अपराध से अधिक कानूनी आत्महत्या मानी जाती है।


काउंटी प्रशासन का चेहरा अक्सर एक इमारत तक सीमित नहीं रहता। नागरिक सेवाएं ऑनलाइन पोर्टल से लेकर सामुदायिक केंद्रों तक फैली हैं। आम नागरिक को यह एहसास कम होता है कि वह किसी बड़े अधिकारी से मिल रहा है बल्कि अधिक यह लगता है कि वह एक सेवा प्रणाली का उपयोग कर रहा है। यह दूरी और यही सहजता प्रशासन को अहंकार से बचाती है। अधिकारी जानता है कि उसकी कुर्सी स्थायी नहीं है और जनता जानती है कि उसका सवाल अनसुना नहीं किया जा सकता।


यदि उदाहरण के तौर पर Los Angeles County को देखें तो यह अपने आप में एक छोटे देश जितनी आबादी और बजट संभालती है फिर भी वहां प्रशासन किसी एक कलेक्टर के आदेश से नहीं बल्कि सैकड़ों पेशेवर निर्णयों और निर्वाचित संस्थाओं के तालमेल से चलता है। यह मॉडल बताता है कि बड़े प्रशासन का मतलब बड़ा अधिकारी नहीं बल्कि मजबूत संस्थाएं होता है।


कुल मिलाकर अमेरिका में जिला प्रशासन शक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि जिम्मेदारी का अभ्यास है। वहां अधिकारी जनता से डरता नहीं पर जनता की उपेक्षा भी नहीं कर सकता। शायद यही सबसे बड़ा फर्क है कि प्रशासन वहां शासन का प्रतीक नहीं बल्कि सेवा की प्रक्रिया बनकर रहता है और इसी कारण वह सार्वजनिक रूप से कम दिखता है पर अधिक प्रभावी होता है।


विवेक रंजन श्रीवास्तव 

न्यूयॉर्क से

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