Friday 30 August, 2024

विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया (जीवनी)

 पुस्तक चर्चा



विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया
(जीवनी)
आई एस बी एन ८१.७७६१.०१९.८
सुरेंद्र सिंह पवार
समन्वय प्रकाशन अभियान , जबलपुर
मूल्य  १२५ रु
चर्चा .... विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  , जे के रोड , भोपाल ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८


  मुझे भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर लिखी गई कई किताबें पढ़ने मिली हैं । मानव जीवन में विज्ञान के विकास को मूर्त रूप देने में इंजीनियर्स का योगदान रहा है और हमेशा बना रहेगा । किन्तु बदलते परिवेश में भ्रष्टाचार के चलते इंजीनियर्स को रुपया बनाने की मशीन समझने की भूल हो रही है ।  भौतिकवाद की इस आपाधापी में राजनैतिक दबाव में तकनीक से समझौते कर लेना इंजीनियर्स की स्वयं की गलती है । देखना होगा कि निहित स्वार्थों के लिये तकनीक पर राजनीति हावी न होने पावे । भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया तकनीक के प्रति समर्पित इंजीनियर थे , उनका जीवन न केवल इंजीनियर्स के लिये वरन प्रत्येक युवा के लिये प्रेरणा है ।
सुरेंद्र सिंह पवार एक कुशल शब्द शिल्पी हैं । वे नियमित रूप से हिन्दी साहित्य जगत की महत्वपूर्ण त्रैमासिक पत्रिका साहित्य संस्कार का संपादन कर रहे हैं , उन्होने इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की वार्षिक बहुभाषी पत्रिका अभियंता बंधु का संपादन भी किया है । विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया में उन्होंने विषय वस्तु को शाश्वत , पाठकोपयोगी , और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है । यह जीवनी केंद्रित कृति हाल ही समन्वय प्रकाशन जबलपुर से छपी है । योजनाबद्ध तरीके से विश्वेश्वरैया जी पर प्रामाणिक सामग्री संजोई गई है । महान अभियंता की जीवन यात्रा को १२ अध्यायों में बांटकर रोचक फार्मेट में पाठको के लिये प्रस्तुत किया है । प्रासंगिक फोटोग्राफ के संग प्रकाशन से जीवनी अधिक ग्राह्य बन सकी है ।  विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया उन पर केंद्रित सहज , प्रवाहमान शैली में , हिन्दी में पहली विशद जीवनी है । किसी के जीवन पर लिखने हेतु रचनाकार को उसके समय परिवेश और परिस्थितियों में मानसिक रूप से उतरकर तादात्म्य स्थापित करना वांछित होता है । विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया में सुरेंद्र सिंह पवार ने विश्वेश्वरैया जी के प्रति समुचित तथ्य रखने में सफलता पाई है ।
पहले अध्याय में विश्वेश्वरैया जी की १०१ वर्षो के सुदीर्घ जीवन , उनके घर परिवार की जानकारियां संजोई गई हैं । किताब के अंत में संदर्भो का उल्लेख भी है , जो शोधार्थियों के लिये उपयोगी होगा । दूसरा अध्याय विश्वेश्वरैया जी के ब्रिटिश सरकार के रूप में कार्यकाल पर केंद्रित किया गया है । इसमें उनके द्वारा डिजाइन की गई सिंचाई की ब्लाक पद्धति , खडकवासला झील के लिये बनवाया गया स्वचलित गेट , सिंध प्रांत में सख्खर पर निर्मित बांध और नहरें ,आदि कार्यों की जानकारियां समाहित की गई हैं । उल्लेखनीय है कि विश्वेश्वरैया जी ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर हैदराबाद में मूसा नदी पर बाढ़ नियंत्रण , उस्मान सागर तथा हिमायत सागर के निर्माण कार्यों में भागीदारी की थी , यह सब तीसरे अध्याया का हिस्सा है । चौथे और पांचवे अध्याय में उनके मैसूर के कार्यकाल में निर्मित सुप्रसिद्ध कृष्ण राज सागर डैम , बृंदावन गार्डन विषयक जानकारियां तथा मैसूर रियासत के दीवान के रूप में किये गये शिक्षा , रेल , बंदरगाह स्टील वर्क्स आदि कार्य वर्णित हैं । छठा अध्याय उनकी विदेश यात्राओ की रोचक बातें बताता है । सातवें अध्याय में देश के विभिन्न हिस्सों में कंसल्टैंट के रूप में किये गये विश्वैश्वरैया जी के अनेक कार्यो पर प्रकाश डाला गया है । आठवां अध्याय उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व के बारे में लिखा गया है । महात्मा गांधी तब एक राष्ट्र पुरुष के रूप में मुखरित हो चुके थे , उनके साथ विश्वेश्वरैया की भेंट के वर्णन यहां मिलते हैं । नौं वें अध्याय में विश्वेश्वरैया जी के भाषण , भात के आर्थिक विकास की उनकी सोच , तथा उनके जीवन की सुस्मृतियां संजोई गई हैं । विश्वेश्वरैया जी को देश विदेश से अनेकानेक सम्मान मानद उपाधियां , मिलीं उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया , उन पर डाक टिकिट जारी की गई । ये जानकारियां दसवें अध्याय का पाठ्य हैं । ग्यारवें अध्याय में गूगल द्वारा उन्हें प्रदत्त सम्मान , उनके जन्म दिवस पर इंजीनियर्स डे का प्रति वर्ष आयोजन , तथा उनकी अंतिम यात्रा का वर्णन है । बारहवां और अंतिम अध्याय परिशिष्ट है जिसमें अनेक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत किये गये हैं ।
१९०२ में एक मैसूर वासी नाम से युवा  विश्वेश्वरैया ने तकनीकी शिक्षा के संदर्भ में उनके विचार एक पत्रक के रूप में लिखे थे । इससे उनके वृहद सिद्धांत , स्व नहीं समाज की झलक मिलती है । उन्होंने कहीं लिखा कि मैं काम रते करते मरना चाहता हूं , वे जीवन पर्यंत सक्रिय रहे । उनकी दीर्घ आयु का राज भी यही है कि उन्होंने स्वयं पर जंग नहीं लगने दी , वे इस्पात की तरह सदा चमचमाते रहे ।  कुल मिलाकर स्पष्ट दिखता है कि सुरेंद्र सिंह पवार ने एक श्रम साध्य कार्य कर हिन्दी में विश्वेश्वरैया जी की जीवनी लिखने का बड़ा कार्य किया है , जो सदैव संदर्भ बना रहेगा । त्रुटि रहित साफ सुथरी प्रिंट में स्वच्छसफेद कागज पर पूर्ण डिमाई आकार की १३६ पृष्ठीय किताब मात्र १०० रु में सुलभ है । मेरा सुझाव है कि इसे सभी इंजीनियरिंग कालेजों में अवश्य खरीदा जाना चाहिये । यदि भीतर के चेप्टर्स में भी अनुक्रम के अध्याय नम्बर डाल दिये जाते तो रिफरेंस लेने में और सरलता होती , अगले एडीशन में यह सुधार वांछित है । अस्तु खरीदिये , पढ़िये ।

चर्चा .... विवेक रंजन श्रीवास्तव

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