Friday, 27 September 2024

देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू

 पुस्तक समीक्षा

देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू

कृति - बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)
कवि - हरेराम समीप
प्रकाषक - पुस्तक बैंक, फरीदाबाद
पृष्ठ  - 104
मूल्य - 195-
समीक्षक- विवेक रजंन श्रीवास्तव, संयोजक पाठक मंच

न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है। विषेष रूप से जब वह कविता जापान जैसे देष से हो जहा वृक्षो के भी बोनसार्इ बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को अभिव्यकित मिलती है। साहित्य विष्वव्यापी होता है। वह किसी एक देष या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकता। जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैषिवक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विष्वविधालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैषिवक साहितियक प्रतिष्ठा दिलवार्इ।
जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यकित है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्षन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गर्इ। किंतु तीन पकिंतयो मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुषासन  आज भी हाइकू की विषेषता है।
हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है। वे विगत लंबे समय से जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि तीन मूर्ति भवन मे सेवारत है। उन्हें संत कबीर राष्ट्रीय षिखर सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी पुस्तक पुरस्कार, फिराक गोरखपुरी सम्मान जैसे अनेक सृजन सम्मान प्राप्त हो चुके है। स्वाभाविक ही है कि उनके वैषिवक परिदृष्य एवं राष्ट्रीय चिंतन का परिवेष उनकी कविताओ मे भी परिलक्षित होगा। उदाहरण स्वरूप यह हाइकू देखे-
किताबें रख
बस इतना कर
पढ ले दिल
वसुधैव कुटुम्बक का भारतीय ध्येय और भला क्या है, या फिर,
गलीचे बुने
फिर भी मिले उन्हे
नंगी जमीन

हिंदी एवं उर्दू भाषाओ पर हरे राम समीप का समान अधिकार है। अत: उनके हाइकू मे उर्दू भाषा के शब्दो का प्रयोग सहज ही मिलता है।
पहने फिरे
फरेब के लिबास
कीमती लोग
     या
शराफत ने
कर रखा है मेरा
जीना हराम

कबीर से प्रभावित समीप जी लिखते है
चाक पे रखे
गिली मिटटी, सोचू मैं
गढूं आज क्या
    और
कैसा सफर
जीवन भर चला
घर न मिला
अंग्रेजी को देवनागरी मे अपनाते हुये भी उनके अनेक हाइकू बहुत प्रभावोत्पादक है।
हो गए रिश्ते
पेपर नेपकिन
यूज एंड थ्रो
     या
निगल गया
मोबाइल टावर
प्यारी गौरैया
कुल मिलाकर बूढा सूरज मे संकलित हरेराम समीप के हाइकू उनकी सहज अभिव्यकित से उपजे है। वे ऐसे चित्र है जिन्हें हम सब रोज सुबह के अखबार मे या टीवी न्यूज चैनलो मे रोज पढते और देखते है किंतु कवि के अनदेखा कर देते है। किंतु उनके संवदेनषील मन ने परिवेष के इन विविध विषयो को सूक्ष्म शब्दो मे अभिव्यक्त किया है। संकलन मे कुल 450 हाइकू संग्रहित है। सभी एक दूसरे से श्रेष्ठ है। पुस्तक का शीर्षक बूढा सूरज जिस हाइकू पर केनिद्रत है वह इस तरह है।
बूढा सूरज
खदेडे अंधियारे
अन्ना हजारे
वर्तमान सामाजिक सिथति मे अन्ना हजारे के लिये इससे बेहतर भला और क्या उपमा दी जा सकती है। कवि से और भी अनेक सूत्र स्वरूप हाइकू की अपेक्षा हिंदी जगत करता है। समीप जी ने गजले, कहानिया और कवितायें भी लिखी है पर हाइकू मे उन्होने जो कर दिखाया है उसके लिये यही कहा जा सकता है कि देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर. समीप जी ने अपने अनुभवो के सागर को हाइकू के छोटे से गागर में सफलता पूर्वक ढ़ाल दिया है .



विवके रंजन श्रीवास्तव



हाईकू




पुस्तक समीक्षा

देखन मे छोटे लगे - हाइकू


कृति - मैं सागर सी  (हाइकू तांका संग्रह)

कवि - मंजूषा मन 

प्रकाशक - पोएट्री पुस्तक बाजार , लखनऊ

पृष्ठ  - ९६

मूल्य - १४०.००

समीक्षक- विवेक रजंन श्रीवास्तव,   ए 1 एमपीर्इबी कालोनी रामपुर जबलपुर


 न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है। 

जब वृक्षो के भी बोनसार्इ बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को अभिव्यकित मिलती है। कविता विश्वव्यापी विधा है। मनोभावों की अभिव्यक्ति किसी एक देष या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकती.  जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैश्विक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविधालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैश्विक साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलवार्इ।

 जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यक्ति है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्शन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गर्इ। किंतु तीन पकिंतयो मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुशासन  आज भी हाइकू की विशेषता है।

 दिल्ली के हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है उनका हाइकू संग्रह चर्चित रहा है . जबलपुर से गीता गीता गीत ने भी हाइकू खूब लिखे हैं . अन्य अनेक हिन्दी कवियो की लम्बी सूची है जिन्होने इस विधा को अपना माध्यम बनाया . बलौदाबाजार छत्तीसगढ़ की मंजूषा मन कविता , कहानीयों के जरिये हिन्दी साहित्य जगत में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर चुकी हैं . मैं सागर सी उनका पुरस्कृत हाईकू तांका संग्रह है . 

उदाहरण स्वरूप इससे कुछ हाइकू देखे-


 मन पे मेरे 

ये जंग लगा ताला 

किसने डाला 

.. 

चला ये मन 

ले यादों की बारात 

माने न बात 

..

हुई बंजर 

उभरी हैं दरारें 

मन जमीन 

..

बासंती समां 

मन बना पलाश

महका जहाँ .

..

इंद्र धनुष 

मन उगे अनेक 

रंग अनूप


मन के विभिन्न मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पुस्तक की इन नन्हीं कविताओ में परिलक्षित होती है . किताब एक बार पठनीय तो हैं ही . मंजूषा जी से सागर की अथाह गहराई से मन के और भी मोतियों की अपेक्षा हम रखते हैं . 



चर्चाकार ..

विवेक रंजन श्रीवास्तव




कुकड़ू क्यूं



पुस्तक परिचय

मुर्गे की आत्मकथा

लेखक अजीत श्रीवास्तव

प्रकाशक अयन प्रकाशन , नई दिल्ली 

मूल्य २५० रु , पृष्ठ १२८, हार्ड बाउंड 


किताबें छप तो बहुत रही हैं , किन्तु पढ़ी बहुत कम जा रही हैं . मेरा प्रयास है कि कम से कम पुस्तकों के कंटेंट की कुछ चर्चा होती रहे ,  जिस पाठक को रुचि हो वह जानकारी के आधार पर पुस्तक ढ़ूंढ़कर पढ़ सके . आप सब के फीड बैक से इस प्रयास के सुपरिणाम परिलक्षित होते दिखते हैं तो नई ऊर्जा मिलती है . अनेक लेखक व प्रकाशक अपनी पुस्तकें इस हेतु भेज रहे हैं , कई कई पाठको की प्रतिक्रियायें मिल रही हैं . 

इसी क्रम में मुर्गे की आत्मकथा व्यंग्य उपन्यासिका मिली . दरअसल पुस्तक में एक नही दो लघु व्यंग्य उपन्यासिकायें हैं .पहली राजनीति के योगासन है . राजनीति प्रत्येक व्यंग्यकार का सर्वाि प्रिय कच्चामाल है . अजीत श्रीवास्तव जी ने राजनीति के योगासन में  र आसन राशन , भ आसन भाषण , अश्व आसन आश्वासन , करजोड़ासन , पदासन, शासन , निष्काशन , पुनरागमनआसन , चमचासन , कुर्सियासन , सिंहासन , वगैरह वगैरह शब्दों की विशद विवेचना करते हुये हास्य ,व्यंग्य के संपुट के साथ नवाचार किया है . यह रोचक शैली पठनीय है . 

इसी क्रम में एक मुर्गे की आत्मकथा , में मुर्गे को प्रतीक बना कर बिल्कुल नई शैली मे समाज की विद्रूपताओ पर मजेदार कटाक्ष किये गये हैं .समाज में हर कोई दूसरे को मर्गा बनाने में जुटा हुआ है , ऐसे समय में यह उपन्यासिका वैचारिक पृष्ठभूमि निर्मित करती है . अजीत जी पुरस्कृत , वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं , पेशे से एड्वोकेट हैं , उनका कार्यक्षेत्र बड़ा है , लेखन दृष्टि परिपक्व है , अभिव्यक्ति की सशक्त नवाचारी क्षमता रखते हैं , किताब पढ़कर ही सही मजे ले पायेंगे . आपकी उत्सुकता जगाना ही इस चर्चा का उद्देश्य है . 

चर्चाकार ... विवेक रंजन श्रीवास्तव

गीत गुंजन

 



पुस्तक चर्चा

गीत गुंजन 

कवि ओम अग्रवाल बबुआ 

प्रकाशक प्रभा श्री पब्लिकेशन , वाराणसी

मूल्य २५० रु , पृष्ठ ११६, हार्ड बाउंड 


गीत , कविता मनोभावी अभिव्यक्ति की विधा है , जो स्वयं रचनाकार को तथा पाठक व श्रोता को हार्दिक आनन्द प्रदान करती है . सामान्यतः फेसबुक , व्हाट्सअप को गंभीर साहित्य का विरोधी माना जाता है , किन्तु स्वयं कवि ओम अग्रवाल बबुआ ने अपनी बात में उल्लेख किया है कि उन्हें इन नवाचारी संसाधनो से कवितायें लिखने में गति मिली व उसकी परिणिति ही उनकी यह प्रथम कृति है . किताब में धार्मिक भावना की रचनायें जैसे गणेश वंदना , सरस्वती वन्दना , कृष्ण स्तुतियां , दोहे , हास्य रचना मेरी औकात , तो स्त्री विमर्श की कवितायें नारी , बेटियां , प्यार हो तुम , प्रेम गीत , आदि भी हैं . पहली किताब का अल्हड़ उत्साह ,रचनाओ में परिलक्षित हो रहा है , जैसे यह पुस्तक उनकी डायरी का प्रकाशित रूपांतरण हो . अगली पुस्तको में कवि ओम अग्रवाल बबुआ जी से और भी गंभीर साहित्य अपेक्षित है . 

पुस्तक से चार पंक्तियां पढ़िये ..

आशाओ के दर्पण में 

पावन पुण्य समर्पण में 

जब दूर कहीं वे अपने हों 

जब आंखों में सपने हों

तब नींद भाग सी जाती है 

जब याद तुम्हारी आती है .

रचनायें आनन्द लेने योग्य हैं.


चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

निज महिमा के ढोल

 पुस्तक चर्चा

निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे 

लेखक श्रवण कुमार उर्मलिया

प्रकाशक भारतीश्री प्रकाशन , दिल्ली ३२

मूल्य ४०० रु , पृष्ठ २३२, हार्ड बाउंड 


इस सप्ताह मुझे इंजीनियर श्रवण कुमार उर्मलिया जी की बढ़िया व्यंग्य कृति निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे पढ़ने का सुअवसर सुलभ हुआ . बहुत परिपक्व , अनुभव पूर्ण रचनायें इस संग्रह का हिस्सा हैं . व्यंग्य के कटाक्षो से लबरेज कथानको का सहज प्रवाहमान व्यंग्य शैली में वर्णन करना लेखक की विशेषता है .पाठक इन लेखो को पढ़ते हुये  घटना क्रम का साक्षी बनता चलता  है . अपनी रचना प्रक्रिया की विशद व्याख्या स्वयं व्यंग्यकार ने प्रारंभिक पृष्ठो में की है . वे अपने लेखन को आत्मा की व्यापकता का विस्तार बतलाते हैं . वे व्यंग्य के कटाक्ष से विसंगतियो को बदलना चाहते हैं और इसके लिये संभावित खतरे उठाने को तत्पर हैं . पुस्तक में ५२ व्यंग्य और २ व्यंग्य नाटक हैं . ५२ के ५२ व्यंग्य ,ताश के पत्ते हैं , कभी ट्रेल में , तो कभी कलर में , लेखों में कभी पपलू की मार है ,तो कभी जोकर की . अनुभव की पंजीरी से लेकर निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे पीटने के लिये ईमानदारी की बेईमानी , भ्रृ्टाचार का शिष्टाचार व्यंग्यकार के शोध प्रबंध में सब जायज है . हर व्यंग्य पर अलग समीक्षात्मक आलेख लिखा जा सकता है , अतः बेहतर है कि पुस्तक चर्चा में मैं आपकी उत्सुकता जगा कर छोड़ दूं कि पुस्तक पठनीय , बारम्बार पठनीय है . 



चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ट्रंप की नाक

  पुस्तक चर्चा 


पुस्तक चर्चा

डोनाल्ड ट्रम्प की नाक 

व्यंग्यकार  अरविन्द तिवारी 

प्रकाशक किताबगंज प्रकाशन दिल्ली 

मूल्य १९५रु , पृष्ठ १२४, 

ISBN  9789388517560


इस सप्ताह व्यंग्य के एक अत्यंत सशक्त सुस्थापित मेरे अग्रज वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री अरविन्द तिवारी जी की नई व्यंग्य कृति डोनाल्ड ट्रम्प की नाक पढ़ने का अवसर मिला . तिवारी जी के व्यंग्य अखबारो , पत्र पत्रिकाओ सोशल मीडिया में गंभीरता से नोटिस किये जाते हैं . जो व्यंग्यकार चुनाव टिकिट और ब्रम्हा जी , दीवार पर लोकतंत्र , राजनीति में पेटीवाद , मानवीय मंत्रालय , नल से निकला सांप , मंत्री की बिन्दी , जैसे लोकप्रिय , पुनर्प्रकाशित संस्करणो से अपनी जगह सुस्थापित कर चुका हो उसे पढ़ना कौतुहल से भरपूर होता है . व्यंग्य संग्रह  ही नही तिवारी जी ने दिया तले अंधेरा , शेष अगले अंक में हैड आफिस के गिरगिट , पंख वाले हिरण शीर्षको से व्यंग्य उपन्यास भी लिखे हैं . बाल कविता , स्तंभ लेखन के साथ ही उनके कविता संग्रह भी चर्चित रहे हैं . वे उन गिने चुने व्यंग्यकारो में हैं जो अपनी किताबों से रायल्टी अर्जित करते दिखते हैं . तिवारी जी नये व्यंग्यकारो की हौसला अफजाई करते , तटस्थ व्यंग्य कर्म में निरत दिखते हैं .  

पाठको से उनकी यह किताब पढ़ने की अनुशंसा करते हुये मैं किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हूं . जब आप स्वयं ४० व्यंग्यों का यह  संग्रह पढ़ेंगे तो आप स्वयं उनकी लेखनी के पैनेपन के मजे ले सकेंगे . प्रमाण पत्रो वाला देश , अपने खेमे के पिद्दी , राजनीति का रिस्क , साहित्य के ब्लूव्हेल , व्यंग्य के मारे नारद बेचारे , दिल्ली की धुंध और नेताओ का मोतियाबिन्द , पुस्तक मेले का लेखक मंच , उठौ लाल अब डाटा खोलो , पूरे वर्ष अप्रैल फूल , अपना अतुल्य भारत , जुगाड़ टेक्नालाजी , देशभक्ति का मौसम , टीवी चैनलो की बहस और  शीर्षक व्यंग्य डोनाल्ड ट्रम्प की नाक सहित हर व्यंग्य बहुत सामयिक , मारक और संदेश लिये हुये है .इन व्यंग्य लेखो की विशेषता है कि सीमित शब्द सीमा में सहज घटनाओ से उपजी मानसिक वेदना  को वे प्रवाहमान संप्रेषण देते हैं , पाठक जुड़ता जाता है , कटाक्षो का मजा लेता है , जिसे समझना हो वह व्यंग्य में छिपा अंतर्निहित संदेश पकड़ लेता है , व्यंग्य पूरा हो जाता है . मैं चाहता हूं कि इस पैसा वसूल व्यंग्य संग्रह को पाठक अवश्य पढ़ें . 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

Friday, 13 September 2024

व्यंग्य संग्रह ... नौकरी धूप सेंकने की

 

पुस्तक चर्चा
व्यंग्य संग्रह ... नौकरी धूप सेंकने की


लेखक ..सुदर्शन सोनी , भोपाल
प्रकाशक ...आईसेक्ट पब्लीकेशन , भोपाल
पृष्ठ ..२२४ , मूल्य २५० रु

चर्चाकार ...विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए २३३ . ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी , भोपाल , ४६२०२३

  धूप से शरीर में विटामिन-D बनता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की मानें, तो विटामिन डी प्राप्त करने के लिए सुबह 11 से 2 बजे के बीच धूप सबसे अधिक लाभकारी होती है। यह दिमाग को हेल्दी बनाती है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में पाचन का कार्य जठराग्नि द्वारा किया जाता है, जिसका मुख्य स्रोत सूर्य है। दोपहर में सूर्य अपने चरम पर होता है और उस समय तुलनात्मक रूप से जठराग्नि भी सक्रिय होती है। इस समय का भोजन अच्छी तरह से पचता है। सरकारी कर्मचारी जीवन में जो कुछ करते हैं , वह सरकार के लिये ही करते हैं । इस तरह से यदि तन मन स्वस्थ रखने के लिये वे नौकरी के समय में धूप सेंकतें हैं तो वह भी सरकारी काम ही हुआ , और इसमें किसी को कोई एतराज  नहीं होना चाहिये । सुदर्शन सोनी सरकारी अमले के आला अधिकारी रहे हैं , और उन्होंने धूप सेंकने की नौकरी को बहुत पास से , सरकारी तंत्र के भीतर से समझा है । व्यंग्य उनके खून में प्रवाहमान है , वे पांच व्यंग्य संग्रह साहित्य जगत को दे चुके हैं , व्यंग्य केंद्रित संस्था व्यंग्य भोजपाल चलाते हैं । वह सब जो उन्होने जीवन भर अनुभव किया समय समय पर व्यंग्य लेखों के रूप में स्वभावतः निसृत होता रहा । लेखकीय में उन्होंने स्वयं लिखा है " इस संग्रह की मेरी ५१ प्रतिनिधि रचनायें हैं जो मुझे काफी प्रिय हैं " । किसी भी रचना का सर्वोत्तम समीक्षक लेखक स्वयं ही होता है , इसलिये सुदर्शन सोनी की इस लेखकीय अभिव्यक्ति को "नौकरी धूप सेंकने की" व्यंग्य संग्रह का यू एस पी कहा जाना चाहिये । सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने किताब की भूमिका में लिखा है " सरकारी कर्मचारी धूप सेंक रहे हैं , दफ्तर ठप हैं , पर सरकार चल रही है , पब्लिक परेशान है । सरकार चलाने वाले चालू हैं वे काम के वक्त धूप सेंकते हैं । "
मैंने "नौकरी धूप सेंकने की" को पहले ई बुक के स्वरूप में पढ़ा , फिर लगा कि इसे तो फुरसत से आड़े टेढ़े लेटकर पढ़ने में मजा आयेगा तो किताब के रूप में लाकर पढ़ा । पढ़ता गया , रुचि बढ़ती गई और देर रात तक सारे व्यंग्य पढ़ ही डाले । लुप्त राष्ट्रीय आयटम बनाम नये राष्ट्रीय प्रतीक , व्यवस्था का मैक्रोस्कोप , भ्रष्टाचार का नख-शिख वर्णन , साधने की कला , गरीबी तेरा उपकार हम नहीं भूल पाएंगे , मेवा निवृत्ति , बाढ़ के फायदे , मीटिंग अधिकारी , नौकरी धूप सेकने की , सरकार के मार्ग , डिजिटाईजेशन और बड़े बाबू ,   एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श आदि अनुभूत सारकारी तंत्र की मारक रचनायें हैं । टीकाकरण से पहले कोचिंगकरण  से लेखक की व्यंग्य कल्पना की बानगी उधृत है " कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो अजन्मे बच्चे की कोचिंग की व्यवस्था कर लेंगे " । लिखते रहने के लिये पढ़ते रहना जरूरी होता है , सुदर्शन जी पढ़ाकू हैं , और मौके पर अपने पढ़े का प्रयोग व्यंग्य की धार बनाने में करते हैं , आओ नरेगा-नरेगा खेलें  में वे लिखते हैं " ये ऐसा ही प्रश्न है जेसे फ्रांस की राजकुमारी ने फ्रासीसी क्रांति के समय कहा कि रोटी नहीं है तो ये केक क्यों नहीं खाते ?  "सर्वोच्च प्राथमिकता" सरकारी फाइलों की अनिवार्य तैग लाइन होती है , उस पर वे तीक्षण प्रहार करते हुये लिखते हैं कि सर्वोच्च प्राथमिकता रहना तो चाहती है सुशासन , रोजगार , समृद्धि , विकास के साथ पर व्यवस्था पूछे तो । व्यंग्य लेखों की भाषा को अलंकारिक या क्लिष्ट बनाकर सुदर्शन आम पाठक से दूर नहीं जाना चाहते , यही उनका अभिव्यक्ति कौशल है ।  
अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो , अनेक पतियों को एक नेक सलाह , हर नुक्कड़ पर एक पान व एक दांतों की दुकान ,महँगाई का शुक्ल पक्ष, अखबार का भविष्यफल,  आक्रोश जोन , पतियों का एक्सचेंज ऑफर , पत्नी के सात मूलभूत अधिकार , शर्म का शर्मसार होना वगैरह वे व्यंग्य हैं जो आफिस आते जाते उनकी पैनी दृष्टि से गुजरी सामाजिक विसंगतियों को लक्ष्य कर रचे गये हैं । वे पहले अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो व्यंग्य संग्रह लिख चुके हैं । डोडो का पॉटी संस्कार , जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन इससंग्रह में उनकी पसंद के व्यंग्य हैं । अपनी साहित्यिक जमात पर भी उनके कटाक्ष कई लेखों में मिलते हैं उदाहरण स्वरूप एक पुरस्कार समारोह की झलकियां , ये भी गौरवान्वित हुए  , साहित्य की नगदी फसलें , श्रोता प्रोत्साहन योजना , वर्गीकरण साहित्यकारों का : एक तुच्छ प्रयास , सम्मानों की धुंध , आदि व्यंग्य अपने शीर्षक से ही अपनी कथा वस्तु का किंचित प्रागट्य कर रहे हैं ।
एक वोटर के हसीन सपने में वे फ्री बीज पर गहरा कटाक्ष करते हुये लिखते हैं " अब हमें कोई कार्य करने की जरूरत नहीं है वोट देना ही सबसे बड़ा कर्म है हमारे पास "  । संग्रह की प्रत्येक रचना लक्ष्यभेदी है । किताब पैसा वसूल है । पढ़ें और आनंद लें । किताब का अंतिम व्यंग्य है मीटिंग अधिकारी और अंतिम वाक्य है कि जब सत्कार अधिकारी हो सकता है तो मीटिंग अधिकारी क्यों नहीं हो सकता ? ऐसा हो तो बाकी लोग मीटिंग की चिंता से मुक्त होकर काम कर सकेंगे । काश इसे व्यंग्य नहीं अमिधा में ही समझा जाये , औेर वास्तव में काम हों केवल मीटिंग नहीं ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव