Monday 2 September, 2024

धूप में अलाव सी सुलग रही रेत पर

 

धूप में अलाव सी सुलग रही रेत पर
राजेंद्र नागदेव
बोधि प्रकाशन , जयपुर
मूल्य  १५० रु
पृष्ठ १००
चर्चा .... विवेक रंजन श्रीवास्तव , मीनाल रेजीडेंसी , भोपाल
 
राजेंद्र नागदेव एक साथ ही कवि , चित्रकार और पेशे से वास्तुकार हैं .  वे संवेदना के धनी रचनाकार हैं . १९९९ में उनकी पहली पुस्तक सदी के इन अंतिम दिनो में , प्रकाशित हुई थी । उसके बाद से दो एक वर्षो के अंतराल से निरंतर उनके काव्य संग्रह पढ़ने मिलते रहे हैं । उन्होने यात्रा वृत भी लिखा है । वे नई कविता के स्थापित परिपक्व कवि हैं . हमारे समय की राजनैतिक तथा सामाजिक  स्थितियों की विवशता से हम में से प्रत्येक अंतर्मन से क्षुब्ध है . जो राजेंद्र नागदेव जी जैसे सक्षम शब्द सारथी हैं ,  हमारे वे सहयात्री कागजों पर अपने मन की पीड़ा उड़ेल लेते हैं . राहत इंदौरी का एक शेर है
" धूप बहुत है , मौसम ! जल , थल भेजो न . बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न "
अपने हिस्से के बादल की तलाश में धूप में अलाव सी सुलग रही रेत पर भटकते "यायावर" को ये कवितायें किंचित सुकून देती हैं । मन का पंखी अंदर की दुनियां में बेआवाज निरंतर बोलता रहता है . "स्मृतियां कभी मरती नहीं" , लम्बी अच्छी कविता है । सभी ३८ कवितायें चुनिंदा हैं . कवि की अभिव्यक्ति का भाव पक्ष प्रबल और अनुभव जन्य है . उनका शब्द संसार सरल पर बड़ा है . कविताओ में टांक टांक कर शब्द नपे तुले गुंथे हुये हैं , जिन्हें विस्थापित नहीं किया जा सकता । एक छोटी कविता है जिज्ञासा ... " कुछ शब्द पड़े हैं कागज पर अस्त व्यस्त , क्या कोई कविता निकली थी यहां से " । संभवतः कल के समय में कागज पर पड़े ये अस्त व्यस्त शब्द भी गुम हो जाने को हैं , क्योंकि मेरे जैसे लेखक अब सीधे कम्प्यूटर पर ही लिख रहे हैं , मेरा हाथ का लिखा ढ़ूढ़ते रह जायेगा समय . वो स्कूल कालेज के दिन अब स्मृति कोष में ही हैं , जब एक रात में उपन्यास चट कर जाता था और रजिस्टर पर उसके नोट्स भी लेता था स्याही वाली कलम से ।
संवेदना हीन होते समाज में लोग मोबाईल पर रिकार्डिंग तो करते हैं , किन्तु मदद को आगे नहीं आते , हाल ही दिल्ली में चलती सड़क किनारे एक युवक द्वारा कथित प्रेमिका की पत्थर मार मार कर की गई हत्या का स्मरण हो आया जब राजेंद्र जी की कविता अस्पताल के बाहर की ये पंक्तियां पढ़ी
" पांच से एक साथ प्राणो की अकेली लड़ाई ..... मरे हुये पानी से भरी , कई जोड़ी आंखें हैं आस पास , बिल्कुल मौन .... किसी मन में खरौंच तक नहीं , आदमी जब मरेगा , तब मरेगा , पत्थर सा निर्विकार खड़ा हर शख्स यहां पहले ही मर गया है । "
राजेंद्र नागदेव की इन कविताओ का साहित्यिक आस्वासादन लेना हो तो खुद आराम से पढ़ियेगा । मैं कुछ शीर्षक बता कर आपकी उत्सुकता जगा देता हूं ... संवाद , बस्ती पर बुलडोजर , दिन कुछ रेखा चित्र , मेरे अंदर समुद्र , मारा गया आदमी , अंधे की लाठी , कवि और कविता , सफर , लहूलुहान पगडंडियां , अतीतजीवी ,  मशीन पर लड़का , जा रहा है साल , कुहासे भरी दुनियां , हिरण जीवन , प्रायश्चित , स्टूडियो में बिल्ली , तश्तरी में टुकड़ा , कोलाज का आत्मकथ्य , टुकड़ों में बंटा आदमी , अंतिम समय में ,जैसे कहीं कुछ नहीं हुआ ,  उत्सव के खण्डहर संग्रह की अंतिम कविता है . मुझे तो हर कविता में ढ़ेरों बिम्ब मिले जो मेरे देखे हुये किन्तु जीवन की आपाधापी में अनदेखे रह गये थे । उन पलों के संवेदना चित्र मैंने इन कविताओ में मजे लेकर जी है .
सामान्यतः किताबों में नामी लेखको की बड़ी बड़ी भूमिकायें होती हैं , पर धूप में अलाव सी सुलग रही रेत पर में सीधे कविताओ के जरिये ही पाठक तक पहुंचने का प्रयास है । बोधि प्रकाशन जयपुर से मायामृग जी कम कीमत में चुनिंदा साहित्य प्रकाशित कर रहे है , उन्होंने राजेंद्र जी की यह किताब छापी है , यह संस्तुति ही जानकार पाठक के लिये पर्याप्त है । खरीदिये , पढ़िये और वैचारिक पीड़ा में साहित्यिक आनंद खोजिये , अर्थहीन होते सामाजिक मूल्यों की किंचित  पुनर्स्थापना  पाठकों के मन में भी हो तो कवि की लेखनी सोद्देश्य सिद्ध होगी ।

चर्चा .... विवेक रंजन श्रीवास्तव ,ए 233, ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी , भोपाल
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