Monday 2 September, 2024

लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन

पुस्तक चर्चा
लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन
 व्यंग्य संकलन
व्यंग्यकार  ... रण विजय राव
प्रकाशक .. भावना प्रकाशन , दिल्ली
मूल्य ३२५ रु , पृष्ठ १२८
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल



हमारे परिवेश तथा हमारे क्रिया कलापों का , हमारे सोच विचार और लेखन पर प्रभाव पड़ता ही है . रण विजय राव लोकसभा सचिवालय में सम्पादक हैं .  स्पष्ट समझा जा सकता है कि वे रोजमर्रा के अपने कामकाज में लोकतंत्र के असंपादित नग्न स्वरूप से रूबरू हो रहे हैं . वे जन संचार में पोस्ट ग्रेजुएट विद्वान हैं . उनकी वैचारिक उर्वरा चेतना में रचनात्मक अभिव्यक्ति  की  अपार क्षमता नैसर्गिक है . २९ धारदार सम सामयिक चुटीले व्यंग्य लेखों पर स्वनाम धन्य सुस्थापित प्रतिष्ठित व्यंग्यकार सर्वश्री हरीश नवल , प्रेमजनमेजय , फारूख अफरीदी जी की भूमिका, प्रस्तावना , आवरण टीप के साथ ही समकालीन चर्चित १९ व्यंग्यकारो की प्रतिक्रियायें भी पुस्तक में समाहित हैं . ये सारी समीक्षात्मक टिप्पणियां स्वयमेव ही रण विजय राव के व्यंग्य कर्म की विशद व्याख्यायें हैं . जो एक सर्वथा नये पाठक को भी पुस्तक और लेखक से सरलता से मिलवा देती हैं . यद्यपि रण विजय जी हिन्दी पाठको के लिये कतई नये नहीं हैं , क्योंकि वे सोशल मीडीया में सक्रिय हैं, यू ट्यूबर भी हैं , और यत्र तत्र प्रकाशित होते ही रहते हैं .
  कोई २० बरस पहले मेरा व्यंग्य संग्रह रामभरोसे प्रकाशित हुआ था  , जिसमें मैंने आम भारतीय को राम भरोसे प्रतिपादित किया था . प्रत्येक व्यंग्यकार किंबहुना उन्हीं मनोभावों से दोचार होता है , रण विजय जी रामखिलावन नाम का लोकव्यापीकरण भारत के एक आम नागरिक के रूप में करने में  सफल हुये हैं . दुखद है कि तमाम सरकारो की ढ़ेरों योजनाओ के बाद भी परसाई के भोलाराम का जीव के समय से आज तक इस आम आदमी के आधार भूत हालात बदल नही रहे हैं . इस आम आदमी की बदलती समस्याओ को ढ़ूंढ़ कर अपने समय को रेखांकित करते व्यंग्यकार बस लिखे  जा रहे हैं.
बड़े पते की बातें पढ़ने में आईं है इस पुस्तक में मसलन " जिंदगी के सारे मंहगे सबक सस्ते लोगों से ही सीखे हैं विशेषकर तब जब रामखिलावन नशे में होकर भी नशे में नहीं था . "
"हम सब यथा स्थितिवादी हो गये हैं ,हम मानने लगे हैं कि कुछ भी बदल नहीं सकता "
" अंगूर की बेटी का महत्व तो तब पता चला जब कोरोना काल में मयखाने बंद होने से देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लगी " रण विजय राव का रामखिलावन आनलाइन फ्राड से भी रूबरू होता है , वह सिर पर सपने लादे खाली हाथ गांव लौट पड़ता है . कोरोना काल के घटना क्रम पर बारीक नजर से संवेदनशील , बोधगम्य , सरल भाषाई विन्यास के साथ लेखन किया है , रण विजय जी ने . चैनलो की बिग ब्रेकिंग , एक्सक्लूजिव , सबसे पहले मेरे चैनल पर तीखा तंज किया गया है , रामखेलावन को  लोकतंत्र की मर्यादाओ का जो खयाल आता है , काश वह उलजलूल बहस में देश को उलझाते टी आर पी बढ़ाते चैनलो को होता तो बेहतर होता . प्रत्येक व्यंग्य महज कटाक्ष ही नही करता अंतिम पैरे में वह एक सकारात्मक स्वरूप में पूरा होता है . वे विकास के कथित एनकाउंटर पर लिखते हैं , विकास मरते नहीं ... भाषा से खिलंदड़ी करते हुये वे कोरोना जनित शब्दों प्लाज्मा डोनेशन , कम्युनिटी स्प्रेड जैसी उपमाओ का अच्छा प्रयोग करते हैं . प्रश्नोत्तर शैली में सीधी बात रामखेलावन से किंचित नया कम प्रयुक्त अभिव्यक्ति शैली है . व्हाट्सअप के मायाजाल में आज समाज बुरी तरह उलझ गया है , असंपादित सूचनाओ , फेक न्यूज , अविश्वसनीयता चरम पर है , व्हाट्सअप से दुरुपयोग से समाज को बचाने का उपाय ढ़ूढ़ने की जरूरत हैं. वर्तमान हालात पर यह पैरा पढ़िये " जनता को लोकतंत्र के खतरे का डर दिखाया जाता है , इससे जनता न डरे तो दंगा करा दिया जाता है , एक कौम को दूसरी कौम से डराया जाता है , सरकार विपक्ष के घोटालो से डराती है , डरे नहीं कि गए . " समझते बहुत हैं पर रण विजय राव ने लिखा , अच्छी तरह संप्रेषित भी किया . आप पढ़िये मनन कीजीये .
हिन्दी के पाठको के लिये यह जानना ही किताब की प्रकाशकीय गुणवत्ता के प्रति आश्वस्ति देता है कि लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन ,  भावना प्रकाशन से छपी है .  पुस्तक पठनीय सामग्री के साथ साथ  मुद्रण के स्तर पर भी स्तरीय , त्रुटि रहित है . मैं इसे खरीद कर पढ़ने के लिये अनुशंसित करता हूं .



No comments: