Friday 27 September, 2024

कुकड़ू क्यूं



पुस्तक परिचय

मुर्गे की आत्मकथा

लेखक अजीत श्रीवास्तव

प्रकाशक अयन प्रकाशन , नई दिल्ली 

मूल्य २५० रु , पृष्ठ १२८, हार्ड बाउंड 


किताबें छप तो बहुत रही हैं , किन्तु पढ़ी बहुत कम जा रही हैं . मेरा प्रयास है कि कम से कम पुस्तकों के कंटेंट की कुछ चर्चा होती रहे ,  जिस पाठक को रुचि हो वह जानकारी के आधार पर पुस्तक ढ़ूंढ़कर पढ़ सके . आप सब के फीड बैक से इस प्रयास के सुपरिणाम परिलक्षित होते दिखते हैं तो नई ऊर्जा मिलती है . अनेक लेखक व प्रकाशक अपनी पुस्तकें इस हेतु भेज रहे हैं , कई कई पाठको की प्रतिक्रियायें मिल रही हैं . 

इसी क्रम में मुर्गे की आत्मकथा व्यंग्य उपन्यासिका मिली . दरअसल पुस्तक में एक नही दो लघु व्यंग्य उपन्यासिकायें हैं .पहली राजनीति के योगासन है . राजनीति प्रत्येक व्यंग्यकार का सर्वाि प्रिय कच्चामाल है . अजीत श्रीवास्तव जी ने राजनीति के योगासन में  र आसन राशन , भ आसन भाषण , अश्व आसन आश्वासन , करजोड़ासन , पदासन, शासन , निष्काशन , पुनरागमनआसन , चमचासन , कुर्सियासन , सिंहासन , वगैरह वगैरह शब्दों की विशद विवेचना करते हुये हास्य ,व्यंग्य के संपुट के साथ नवाचार किया है . यह रोचक शैली पठनीय है . 

इसी क्रम में एक मुर्गे की आत्मकथा , में मुर्गे को प्रतीक बना कर बिल्कुल नई शैली मे समाज की विद्रूपताओ पर मजेदार कटाक्ष किये गये हैं .समाज में हर कोई दूसरे को मर्गा बनाने में जुटा हुआ है , ऐसे समय में यह उपन्यासिका वैचारिक पृष्ठभूमि निर्मित करती है . अजीत जी पुरस्कृत , वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं , पेशे से एड्वोकेट हैं , उनका कार्यक्षेत्र बड़ा है , लेखन दृष्टि परिपक्व है , अभिव्यक्ति की सशक्त नवाचारी क्षमता रखते हैं , किताब पढ़कर ही सही मजे ले पायेंगे . आपकी उत्सुकता जगाना ही इस चर्चा का उद्देश्य है . 

चर्चाकार ... विवेक रंजन श्रीवास्तव

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