Tuesday 3 September, 2024

जिंदगी एक उपन्यास ही होती है

 पुस्तक चर्चा

तूफानों से घिरी जिंदगी , आत्म कथा
हरि जोशी
प्रकाशक इंडिया नेट बुक्स , नोएडा दिल्ली
पृष्ठ २१८ , मूल्य ४०० रु

चर्चा... विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल

मेरी समझ में हम सब की जिंदगी एक उपन्यास ही होती है . आत्मकथा खुद

का लिखा वही उपन्यास होता है . वे लोग जो बड़े ओहदों से रिटायर होते हैं उनके सेवाकाल में अनेक ऐसी घटनायें होती हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व होता है , उनके लिये गये तात्कालिक निर्णय पदेन गोपनीयता की शपथ के चलते भले ही तब उजागर न किये गये हों किंतु जब भी वे सारी बातें आत्मकथाओ में बाहर आती हैं देश की राजनीति प्रभावित होती है . ये संदर्भ बार बार कोट किये जाते हैं . बहु पठित साहित्यकारों , लोकप्रिय कलाकारों की जिंदगी भी सार्वजनिक रुचि का केंद्र होती है . पाठक इन लोगों की आत्मकथाओ से प्रेरणा लेते हैं. युवा इन्हें अपना अनुकरणीय पाथेय बनाते हैं .
हिन्दी साहित्य में पहली आत्मकथा के रूप में बनारसी दास जैन की सन १६४१ में रचित पद्य में लिखी गई " अर्ध कथानक " को स्वीकार किया गया है . यह ब्रज भाषा में है . बच्चन जी की आत्मकथा क्या भूलूं क्या याद करूं , नीड़ का निर्माण फिर  , बसेरे से दूर और  दशद्वार से सोपान तक ४ खण्डों में है . कमलेश्वर ने भी ३ किताबों के रूप में आत्मकथा लिखी है . महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग ,बहुचर्चित है .  हिन्दी व्यंग्यकारों में भारतेंदु हरीशचंद्र की कुछ आप बीती कुछ जगबीती , परसाई जी ने हम इक उम्र से वाकिफ हैं, तो रवीन्द्र त्यागी की आत्मकथा वसंत से पतझड़ तक पठनीय पुस्तकें हैं . ये आत्मकथायें लेखकों के संघर्ष की दास्तान भी हैं और जिंदगी का निचोड़ भी .
सफल व्यक्तियों की जिंदगी की सफलता के राज समझना मेरी अभिरुचि रही है . उनकी जिंदगी के टर्निंग पाइंट खोजने की मेरी प्रवृति मुझे रुचि लेकर आत्मकथायें पढ़ने को प्रेरित करती है . इसी क्रम में मेरे वरिष्ठ हरि जोशी जी की सद्यः प्रकाशित आत्मकथा तूफानों से घिरी जिंदगी ,पढ़ने का सुयोग बना तो मैं उस पर लिखे बिना रह न सका . मेरी ही तरह हरि जोशी जी भी  इंजीनियर हैं , उन्होंने मेरी किताब कौआ कान ले गया की भूमिका लिखी थी . फोन पर ही सही पर उनसे जब तब व्यंग्य जगत के परिदृश्य पर आत्मीय चर्चा भी हो जाती हैं  .
यह आत्मकथा तूफानों से घिरी जिंदगी  दादा पोतासंवाद के रूप में अमेरिका में बनी है . हरि जोशी जी का बेटा अमेरिका में है , वे जब भी अमेरिका जाते हैं छै महिनो के लम्बे प्रवास पर वहां रहते हैं . जब उनसे ६५ वर्ष छोटे उनके पोते सिद्धांत ने उनसे उनकी जिंदगी के विषय में जानना चाहा तो उसके सहज प्रश्नो के सच्चे उत्तर पूरी ईमानदारी से वे देते चले गये और कुछ दिनो तक चला यह संवाद उनकी जिंदगी की दास्तान बन गया . एक अमेरिका में जन्मा वहां के परिवेश में पला पढ़ा बढ़ा किशोर उनके माध्यम से भारत को , अपने परिवार पूर्वजों को , और अपने लेखक व्यंग्यकार दादा को जिस तरह समझना चाहता था वैसे कौतुहल भरे सवालों के जबाब जोशी जी ने देकर सिद्धांत की कितनी उत्सुकता शांत की और उसे कितने साहित्यिक संस्कार संप्रेषित कर सके यह तो वही बता सकता है , पर जिन चैप्टर्स में यह चर्चा समाहित की गई है वे कुछ इस तरह हैं , आत्मकथा का प्रारंभ खंड हरि जोशी जी का जन्म ठेठ जंगल के बीच बसे आदिवासी बहुल गांव खूदिया, जिला हरदा में हुआ था , शिशुपन की कुछ और स्मृतियाँ सुनो , कीचड़ के खेल बहुत खेले ,  हरदा ,  भोपाल , दुष्यंत जी की प्रथम पुण्यतिथि पर धर्मयुग में जोशी जी की ग़ज़ल का प्रकाशन ,  इंदौर ,  उज्जैन , दिल्ली  जहां जहां वे रहे वहां के अनुभवों पर प्रश्नोत्तरों को उसी शहर के नाम पर समाहित किया गया है . रचनात्मक योगदान और लेखक व्यंग्यकार हरि जोशी को समझने के लिये हिंदी लेखक खंड , सहित्यकारों से भेंट , विश्व हिंदी सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व , गोपाल चतुर्वेदी जी के व्यंग्य में नैरन्तर्य और उत्कृष्टता , मुम्बइया बोली के प्रथम लेखक यज्ञ शर्मा , अज्ञेय जी की वह अविस्मरणीय मुद्रा , वृद्धावस्था और गिरता हुआ स्वास्थ्य , बाबूजी मोजे ठंड दूर नहीं करते, ठिठुराते भी हैं , कोरोना काल "मेरी प्रतिनिधि रचनायें" , वृद्धावस्था के निकट, परिजन संगीत और साहित्य , लंदन , अमेरिका , पिछले दिनों फिर एक तूफानी समस्या ,और अंत में  अमेरिका में मृत्यु पर ऐसा रोना धोना नहीं होता जैसे चैप्टर्स अपने नाम से ही कंटेंट का किंचित परिचय देते हैं . इस बातचीत में साफगोई ,ईमानदारी और सरलता से जीवन की यथावत प्रस्तुति परिलक्षित होती है . 
कभी कभी लगता है कि आम आदमी के हित चिंतन का बहाना करते राजनेता जो जनता के वोट से ही नेता चुने जाते हैं , पर किसी पद पर पहुंचते ही कितने स्वार्थी और बौने हो जाते हैं, जोशी जी ने 1982 में अपने निलंबन का वृतांत लिखते हुए स्पष्ट तत्कालीन मुख्य मंत्री अर्जुनसिह का नाम उजागर करते हुए लिखा है कि तब उन्हे प्रोफेसर कालोनी में सरकारी आवास आवंटित था , उस आवास पर एक विधायक कब्जा चाहते थे , इसलिए जोशी जी की रचना रिहर्सल जारी है को आधार बनाकर उन्होंने मुख्य मंत्री से उनका स्थानांतरण करवाना चाहा, उस रचना में किसी का कोई नाम नहीं था , और पूर्व आधार पर जोशी जी के पास कोर्ट का स्थगन था फिर भी विधायक जी पीछे लगे रहे , और अंततोगत्वा जोशी जी का निलंबन अर्जुन सिंह जी ने कर दिया । पुनः उनकी रचना दांव पर लगी रोटी छपी , विधान सभा में जोशी जी के प्रकरण पर स्थगन प्रस्ताव आया  । अस्तु , अंततोगत्वा जोशी जी की कलम जीती , आज वे सुखी सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं। पर उनकी जिंदगी सचमुच बार बार तूफानों से घिरी रही । आत्मकथा के संदर्भ में 
 लिखना चाहता हूं कि यदि इसमें  शहरों , देश,  स्थानों के नाम से चैप्टर्स के विभाजन की अपेक्षा बेहतर साहित्यिक शीर्षक दिये जाते तो आत्मकथा के साहित्यिक स्वरूप में श्रीवृद्धि ही होती . आज के ग्लोबल विलेज युग में हरदा के एक छोटे से गांव से निकले हरि जोशी अपनी  प्रतिभा के बल पर इंजीनियर बने , जीवन में साहित्य लेखन को अपना प्रयोजन बनाया , व्यंग्य के कारण ही उनहें जिंदगी में तूफानों , झंझावातों , थपेड़ों से जूझना पड़ा पर वे बिना हारे अकेले ईमानदारी के बल पर आगे बढ़ते रहे , तीन कविता संग्रह , सोलह व्यंग्य संग्रह , तेरह उपन्यास आज उनके नाम पर हैं , हिन्दी व्यंग्य जगत की ओर से मेरी मंगलभावना है कि यह सूची अनवरत बढ़ती रहे . इन दिनों वे मजे में अपनी सुबहें धार्मिक गीत संगीत से प्रारंभ करते हैं . मैं अक्सर कहा करता हूं कि यदि प्रत्येक दम्पति सुसभ्य संवेदनशील बच्चे ही समाज को दे सके तो यह उसका बड़ा योगदान होता है ,हरि जोशी जी ने सुसंस्कारित सिद्धांत सी तीसरी नई पीढ़ी और अपना ढ़ेर सारा पठनीय साहित्य समाज को  दिया है , वे अनवरत लिखते रहें यही शुभ कामना है . यह आत्मकथा अंतरराष्ट्रीय संदर्भ बने .

विवेक रंजन श्रीवास्तव , ए २३३ , ओल्ड मीनाल , भोपाल 

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