पुस्तक समीक्षा
देखन मे छोटे लगे - हाइकू
कृति - मैं सागर सी (हाइकू तांका संग्रह)
कवि - मंजूषा मन
प्रकाशक - पोएट्री पुस्तक बाजार , लखनऊ
पृष्ठ - ९६
मूल्य - १४०.००
समीक्षक- विवेक रजंन श्रीवास्तव, ए 1 एमपीर्इबी कालोनी रामपुर जबलपुर
न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है।
जब वृक्षो के भी बोनसार्इ बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को अभिव्यकित मिलती है। कविता विश्वव्यापी विधा है। मनोभावों की अभिव्यक्ति किसी एक देष या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकती. जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैश्विक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविधालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैश्विक साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलवार्इ।
जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यक्ति है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्शन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गर्इ। किंतु तीन पकिंतयो मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुशासन आज भी हाइकू की विशेषता है।
दिल्ली के हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है उनका हाइकू संग्रह चर्चित रहा है . जबलपुर से गीता गीता गीत ने भी हाइकू खूब लिखे हैं . अन्य अनेक हिन्दी कवियो की लम्बी सूची है जिन्होने इस विधा को अपना माध्यम बनाया . बलौदाबाजार छत्तीसगढ़ की मंजूषा मन कविता , कहानीयों के जरिये हिन्दी साहित्य जगत में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर चुकी हैं . मैं सागर सी उनका पुरस्कृत हाईकू तांका संग्रह है .
उदाहरण स्वरूप इससे कुछ हाइकू देखे-
मन पे मेरे
ये जंग लगा ताला
किसने डाला
..
चला ये मन
ले यादों की बारात
माने न बात
..
हुई बंजर
उभरी हैं दरारें
मन जमीन
..
बासंती समां
मन बना पलाश
महका जहाँ .
..
इंद्र धनुष
मन उगे अनेक
रंग अनूप
मन के विभिन्न मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पुस्तक की इन नन्हीं कविताओ में परिलक्षित होती है . किताब एक बार पठनीय तो हैं ही . मंजूषा जी से सागर की अथाह गहराई से मन के और भी मोतियों की अपेक्षा हम रखते हैं .
चर्चाकार ..
विवेक रंजन श्रीवास्तव
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