Thursday, 11 September 2008

हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है

हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है


आप भी इसका इस्तेमाल करें

by vibhuti khare
vibhutikhare@ymail.com

हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
इसको बढ़ाने की मेरी अभिलाषा है
हर भारत वासी के दिल में समाई है
पर इंग्लिश के बोझ तले फलक नही पाई है
इसको फलकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है ..
संस्कृत की बेटी है , और राष्ट्र भाषा है
सीधी है सरल है हम सबकी आशा है
शीघ्र ग्राह्य भाषा है इसमें गहराई है
धूमिल सी हो रही , चमक नहीं पाई है
इसको चमकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
अपने भारत वर्ष में उचित मिले जब इसको मान
तब विदेश में मानेंगे सब और इसे देंगे सम्मान
सुन्दरता ,सहजता और सच्चाई है
खुश्बू है इसमें पर महक नहीं पाई है
इसको मकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
बहुत समय बीत गया दबे और सहमें से
आगे तो आना है अब किसी को हममें से
आइये अब साथ मेरे कैसी निराशा है
जोर होगा हिन्दी का अब पलटा पाँसा है
इस पर इठलाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है

आज हिन्दी दिवस में हम ये शपथ उठायें
हिन्दी में काम करें सब इसका नाम बढ़ायें
फलकेगी , चमकेगी और इठलायेगी
फैलेगी महकेगी और लहलहायेगी
इस पर इतराने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है

हिन्दी को बढ़ाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है

विभूति खरे
M.Sc.
पत्नी डा.प्रकाश खरे
मौसम वैज्ञानिक
पुणे , महाराष्ट्र

Wednesday, 23 July 2008

बदल डालो उसे , बह रही हवा जो .................

बदल डालो उसे , बह रही हवा जो .................

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२

देश ने तो तरक्की बहुत की मगर , देश निष्ठा हुई आज बीमार है
बोलबाला है अपराध का हर जगह , जहाँ देखो वहीं कुछ अनाचार है


नीति नियमों को हैं भूल बैठे सभी , मूलतः जिनके हाथों में अधिकार हैं
नहीं जनहित का जिनको कोई ख्याल है , ऐसे लोगों की ही भरमार है
सोच उथला है , धनलाभ की वृत्ति है , दृष्टि ओछी , नहीं दूरदर्शी नयन
कुर्सियाँ लोभ के हैं भँवर जाल में , दूर उनसे बहुत अब सदाचार है

नियम और कायदे सिर्फ कहने को हैं , हर दुखी दर्द सहने को लाचार है
योजनायें अनेकों हैं कल्याण हित , किंतु जनता का बहुधा तिरस्कार है
सारे आदर्श तप त्याग गुम हो गये , बढ़ गया बेतरह अनीतिकरण
दलालों का चलन है , सही काम कोई चाह के भी न कर पाती सरकार है

देश कल कारखानों से बनते नही , देश बनते हैं श्रम और सदाचार से
देश के नागरिको की प्रतिष्ठा , चलन , समझ श्रम , गुण तथा उनके आचार से
है जरूरी कि अनुभव से लें सीख सब , सुधारे आचरण और वातावरण
सचाई , न्याय ,कर्तव्य की लें शरण , देश से अपने जो तनिक प्यार है

बदलने होंगे व्यवहार सबको हमें , अपने सुख के लिये देश हित के लिये
जहाँ भी है आज तक अंधेरा घना , जलाने होंगे उन झोपड़ियों में दिये
देश में आज जो सब तरफ हो रहा देख उसको जरूरी है नव जागरण
क्योंकि जो पीढ़ियाँ आने वाली हैं कल उनको भी सुख से जीने का अधिकार है

जो सरल शांत सच्चे हैं वे लुट रहे , सब लुटेरों के हाथो में व्यापार है
देश हित जिन शहीदों ने दी जान थी क्या यही उनकी श्रद्धा का उपहार है ?
है कसम देश की सब उठो बंधुओं ! बदल डालो उसे बह रही जो हवा
बढ़े नैतिक पतन हित हरेक नागरिक और नेता बराबर गुनहगार है .


प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

Sunday, 18 May 2008

जयपुर बम विस्फोट पर


जयपुर बम विस्फोट पर

प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर

बह चुका आंसानियत का खून कई बाजार में
कोसते हैं लोग सब अब तुम्हें इस संसार में
सिरफिरों ! आतंकवादी ! आदमियत के दुश्मनों
आदमियत को भी तो समझो लौट फिर इंसा बनो

निरपराधों की निरर्थक ले रहे तुम जान क्यों
नासमझदारी पै अपनी है तुम्हें अभिमान क्यों
आये दिन चाहे जहाँ पर लगाते तुम आग हो
जला के रख देगी वह ही तुम्हारे ही बाग को

खून का औ आग का ये खेल है अच्छा नहीं
तुम्हारा ये जुनुं कल कर सकेगा रक्षा नहीं
आदमी हो ये नहीं है आदमी का आचरण
कुत्तों सा होता है जग में दुष्टों का जीवन मरण

जाति के भाषा के या फिर धर्म के उन्माद में
जो भी उलझे जग को उनने ही किया बरबाद है
किये तो विस्फोट इतने पर तुम्हें है क्या मिला
बद्दुआयें लेने सबकी कब रुकेगा सिलसिला

मिटा के औरों के घर परिवार उनकी जिंदगी
कर रहे हो तुम समझते हो खुदा की बन्दगी
तो ये जानो हर तरह से ये तुम्हारी भूल है
बोता जो जैसा वही मिलता उसे ये उसूल है

कुछ न हासिल होगा खुद के किये पै पछताओगे
कमाने को पुण्य निकले पाप में मिट जाओगे
राख हो जाओगे जलकर जुल्म की इस राह में
गलाने की शक्ति होती त्रस्त की हर आह में

जहाँ जन्में पले विकसे और सब कुछ पा रहे
उसी अपने देश और समाज को क्यों खा रहे
सही सोच विचार अब भी दिला सकता यश बड़ा
ज्योंकि अब्दुल हमीद को सम्मान पदक सुयश जड़ा




प्रो सी बी श्रीवास्तव

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये

प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये ।
शिथिलता कहीं कोई आने न पाये ।।

बड़ी ही प्रबल हैं विषय वासनायें
सदा अपने चंगुल में मन को फसाँये ।
वही बच सके जो रहे साफ निश्छल
औ प्रभु की कृपा से गये जो बचाये ।।१।।

यहाँ मोहमाया ने सबको भुलाया
न कोई समय पर कभी काम आया ।
हरेक रास्ते में है धोखे हजारों
सदा कर्म अपने ही बस काम आये ।।२।।

है दुनियाँ पुरानी मगर अजनबी है
कभी कुछ है लेकिन अलग कुछ कभी है ।
बदलती रही सदा ये अपनी चालें
करेगी ये कल फिर कोई क्या बताये ?३।।

है बस अपना खुद का औ प्रभु का सहारा
न ऐसा कोई जो कभी न हो हारा .।
थके हारे मन को मिली चेतना नई
तभी जब भी भगवान ने पथ दिखाये ।।४।।

सदा ध्यान से शुध्दता मन ने पाई
यही शुध्दता ही है सच्ची कमाई ।
सदा ज्योति बन आये भगवान आगे
कि निष्पाप मन से गये जब बुलाये ।।५।।

Friday, 9 May 2008

प्रकाशक चाहिए

आदरणीय महोदय,

विवेक के सारस्वत नमन
मेरी व्यंग कृति "रामभरोसे "को हाल में ही अखिल भारतीय दिव्य रजत अलंकरण प्राप्त हुआ.
मेरी कुछ व्यंग रचनायें आप मेरे ब्लाग http://vivekkevyang.blogspot.com पर देख सकते हैं .
मैं अपने अगले व्यंग संग्रह हेतु प्रकाशक के रूप में आपसे सहयोग का विनम्र आकांक्षी हूँ.

पिताजी प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव कृत रघुवंश व मेघदूत के श्लोकशह हिन्दी छन्द बद्ध पद्यानुवाद भी प्रकाशित करवाना चाहता हूँ .
कृपया संपर्क करें , जिससे पाण्डुलिपि प्रेषित कर सकूँ .
सादर ,
भवदीय
विवेक रंजन
०९४२५४८४४५२
vivekranjan.vinamra@gmail.com
Ex. Engineer
Qr. No. - C-6
M.P.S.E.B.Colony , Rampur , JABALPUR (MP)

प्रार्थना

प्रार्थना
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२



हे दीनबन्धु दयालु प्रभु तुम विश्व के आधार हो
तुम बिन्दु में हो सिन्धु , अणु में अपरिमित विस्तार हो ।

तुम चेतना , आलोक , ऊर्जा , गति अलख पावन परम्
तम में फँसे , माया भ्रमित , अल्पज्ञ , सीमित नाथ हम ।
निर्बल , समय की धार में असहाय बहते जा रहे
तुम कर कृपा दे हाथ अपना नाथ हमें उबार लो ।।१।। हे दीन...

आनन्द , सत् चित् , शाँत , शुभ , सत्यं , शिवं , तुम सुन्दरम्
अपने बुने ही जाल में भूले , फँसे , उलझे हैं हम
सब चाहकर भी रात दिन भ़म से सुलझ पाते नही
इस आर्त मन की दुख भरी प्रभु प्रार्थना स्वीकार हो ।।२।। हे दीन...

मिलता नही सुख चैन मन को कहीं भी संसार में
तृष्णा का माया मृग लुभाता मन को हर व्यवहार में ।
नल से निकल जल सी बही सी जा रही है जिन्दगी
इसको सहेज , सँवारने को देव अपना प्यार दो।।३।। हे दीन...