राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
हो रहा आचरण का निरंतर पतन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
हैं जहाँ भी कहीं हैं दुखी साधुजन लेके उनकोशरण क्यों बचाते नहीं !
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन
स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को पंचवटियों में बढ़ गया है अपहरण
घूमते हैं असुर साधु के वेश में अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला
सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला
हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं आचरण में अधिकतर है मनमानियां
जिसकी लाठी है उसकी ही भैंस है राजनेताओं में दिखती हैं नादानियां
स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई
मान मिलता है कम समझदार को भीड नेताओं की इतनी है बढ़ गई
हर जगह डगमगा गया है संतुलन राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
बढ़ती जाती है कलह हर जगह बेवजह नेह सद्भाव पडते दिखाई नहीं
एकता प्रेम विश्वास हैं अधमरे आदमियत आदमी से हुई गुम कहीं
स्वार्थ सिंहासनों पर आसीन है कोई समझता नहीँ किसी की व्यथा
मिट गई रेखा लक्षमण ने खींची थी जो राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
Monday, 22 October 2007
Wednesday, 17 October 2007
श्री चित्रगुप्त देवेश

ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी.................सुखदाता तुम , दुखत्राता तुम , प्रभु अन्तरयामीब्रम्ह देव के मानस सुत तुम , काया से उभरे जग का लेखा जोखा रखते कलम दवात धरे समदर्शी निष्पक्छ विचारक शांत न्यायकारी विमल दृष्टि ,ग्यानी , गुन सागर जग के हितकारि ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............चिर अविनाशी , घट घट वासी जन जन के स्वामी हर मन की इच्छा के ग्याता , वरदाता नामी रखते प्रभु तुम छण छण हर जन जीवन का लेखा छुपी न तुमसे कभी किसी की ,गुप्त चित्त रेखा ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............वीतराग तुम तुम्हें परम प्रिय ,सत्य न्याय शिक्छा सदा शांति प्रिय सात्विक भक्तों की करते रक्छा भक्ति भाव से मिल हम करते पूजन आराधन करो देव स्वीकार , सफल हो तन मन धन साधनॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी...............कृपा करो प्रभु हर कुल में नित सुख समृद्धि पले हो सदभाव हरेक के मन में , प्रेमल ज्योति जले दूर अँधेरा हो हर घर से , आश किरन छाये दुःखो से तपता जीवन पा आशीष मुस्काये ॐ श्री चित्रगुप्त देवेश जय हो श्री चित्रगुप्त स्वामी................
Tuesday, 16 October 2007
राम जाने कि क्यों राम आते नहीं
हो रहा आचरण का निरंतर पतन ,
राम जाने कि क्यों राम आते नहींहै
सिसकती अयोध्या दुखी
देके उनको देके शरण क्यों बचाते नहीं ?
..................अनुगुंजन से
राम जाने कि क्यों राम आते नहींहै
सिसकती अयोध्या दुखी
देके उनको देके शरण क्यों बचाते नहीं ?
..................अनुगुंजन से
मेघदूतम् का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् का श्लोकशः हिन्दी
द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
संस्कृत
सुखमुपगतं दुःखमेकान्ततोवानीचैर्गच्छिति उपरिचदशा चक्रमिक्रमेण
अनुवाद
किसको मिला सुख सदा या भला दुःखदिवस रात इनके चरण चूमते हैंसदा चक्र की परिधि की भाँति क्रमशःजगत में ये दोनों रहे घूमते हैं...................मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद से अंश
द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
संस्कृत
सुखमुपगतं दुःखमेकान्ततोवानीचैर्गच्छिति उपरिचदशा चक्रमिक्रमेण
अनुवाद
किसको मिला सुख सदा या भला दुःखदिवस रात इनके चरण चूमते हैंसदा चक्र की परिधि की भाँति क्रमशःजगत में ये दोनों रहे घूमते हैं...................मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद से अंश
धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है
हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे
हम सबकी माँ भारत माता
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