जींस वाली ज़िंदगी : अमेरिकी परिधान से वैश्विक पहचान तक
: विवेक रंजन श्रीवास्तव
न्यूयॉर्क से
अमेरिका का फैशन केवल आधुनिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि विविधता, व्यावहारिकता और आत्म-अभिव्यक्ति की खुली संस्कृति का दर्पण है। जींस ,इसी संस्कृति की सबसे सशक्त पहचान बन चुकी है । डेनिम वस्त्र का यह रूप आज दुनिया की हर सड़क, स्कूल, दफ्तर और समारोह में दिखता है। परंतु यह यात्रा, मजदूरों के कार्य-परिधान से लेकर वैश्विक फैशन के मंच तक, बेहद दिलचस्प और संघर्षपूर्ण रही है।
जींस का जन्म 19वीं सदी के मध्य में अमेरिकी सामाजिक और औद्योगिक इतिहास से जुड़ा है। कैलिफ़ोर्निया गोल्ड रश (1848) के दौरान, मजबूत और टिकाऊ कपड़े की ज़रूरत महसूस की जा रही थी। लिवाइ स्ट्रॉस, एक जर्मन-यहूदी व्यापारी, और दर्ज़ी जैकब डेविस ने *
1869 में डेनिम कपड़े पर कॉपर रिवेट्स लगाकर पहली जींस बनाई । यह मजदूरों के लिए सस्ती, मजबूत और टिकाऊ पैंट थी । यही साधारण वस्त्र धीरे-धीरे अमेरिकी मेहनतकश , स्वतंत्र आत्मा की पहचान बन गया।
20वीं सदी में हॉलीवुड फिल्मों, विशेषकर वेस्टर्न्स (राज्य के काउबॉय पात्रों) ने जींस को स्टाइल का प्रतीक बना दिया। 1950 के दशक में जेम्स डीन और मर्लन ब्रैंडो जैसे सितारों ने “रबेल विना कॉज़” जैसी फिल्मों में जींस पहनकर विद्रोही युवा संस्कृति को परिभाषित किया। इसके बाद जींस केवल कामगारों का परिधान नहीं रही, बल्कि स्वतंत्रता और पहचान का सामाजिक प्रतीक बन गई।
अमेरिकन डेनिम इंडस्ट्री 20वीं सदी के उत्तरार्ध में वैश्विक ब्रांड संस्कृति का केंद्र बनी। Levi’s, Wrangler, Lee जैसी कंपनियों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखला विश्वभर में फैलाकर, डेनिम उत्पादन को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अटूट हिस्सा बना दिया।
भारत, बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे देशों में अब जींस का विशाल उत्पादन होता है। हर साल लगभग 1.25 अरब जोड़ी जींस पेंट बनाई जाती हैं।
विश्व फैशन बाज़ार में डेनिम उद्योग का मूल्य 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक है।
यह केवल फैशन नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण घटक बन गया है। जींस ने भौगोलिक सीमाओं और सांस्कृतिक अंतर को मिटाते हुए एक “वैश्विक वेशभूषा” का दर्जा पा लिया है।
पर्यावरण और डेनिम : रीसाइक्लिंग की दिशा में कदम
आज जींस केवल फैशन नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चिंता का विषय भी है। एक जोड़ी जींस बनाने में औसतन 7000 से 10000 लीटर तक पानी लगता है। इसलिए अमेरिकी कंपनियाँ अब “सस्टेनेबल डेनिम” की दिशा में शोध की ओर अग्रसर हैं।
तकनीक से पानी की खपत 80% तक घटाई जा रही है।
Patagonia और Everlane जैसी कंपनियाँ जैविक कपास और रीसाइकल्ड फाइबर से जींस तैयार कर रही हैं।
न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों में “Denim Swap” या “Re-Denim” कार्यक्रमों के ज़रिए पुराने कपड़े इकट्ठे कर नए उत्पादों में बदले जाते हैं।
पुराने कपड़ों का दान और पुनः उपयोग , अमेरिकी संस्कृति की संवेदनशीलता का प्रतीक है।
अमेरिका में उपयोग किए गए कपड़ों को फेंकने के बजाय चैरिटी संगठनों के माध्यम से दान करने की परंपरा है। Goodwill, Salvation Army, और Habitat for Humanity जैसे संस्थान देशभर में ऐसे वस्त्र दान केंद्र चलाते हैं। लोग अपने पुराने वस्त्र “Donation Drive” या “Clothing Bin” में डालते हैं, जिन्हें बाद में या तो कम आय वर्ग को मुफ्त, सस्ती कीमत में दिया जाता है या पुनर्चक्रित कर नए उत्पाद बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया से न केवल पर्यावरणीय अपशिष्ट कम होता है, बल्कि “साझा ज़िम्मेदारी” और “सहायता संस्कृति” का प्रसार भी होता है।
अमेरिकी फैशन में जींस केवल वस्त्र नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, गतिशीलता और समानता का रूपक है। यह अमीश समुदाय की सादगी, मूल अमेरिकी जनजातियों के परिधानों, और पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फैले व्यावहारिक जीवन का मिश्रण है। महिलाओं ने इसे टॉप्स, हुडी, और इंडो-वेस्टर्न फ्यूजन के रूप में अपनाया है । जिससे न केवल फैशन, बल्कि लैंगिक समानता की भावना भी प्रतिष्ठित हुई।
न्यूयॉर्क फैशन वीक में भारतीय कढ़ाई वाले डेनिम जैकेट और धोबी-वॉश स्कर्ट्स इस बात के प्रमाण हैं कि जींस ने सभ्यताओं को जोड़ने का कार्य किया है। टाइम्स स्क्वायर की क्रॉप्ड जींस से लेकर राजस्थान के टाई-डाई डेनिम तक , यह परिधान अब वैश्विक जीवनशैली का प्रतीक है।
जींस वाली ज़िंदगी एक नई परिभाषा है।
जींस एक ऐसा परिधान बन चुका है जो समय, समाज और संस्कृति की सीमाओं से ऊपर है। यह पहनने वाले की पहचान, स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का विस्तार है। इसी कारण भारतीय युवाओं से लेकर अमेरिकी कलाकारों तक, सभी के लिए जींस अब केवल कपड़ा नहीं बल्कि जीवन की व्यावहारिक, आरामदायक और आत्माभिव्यक्ति पूर्ण जीवन शैली है।
जींस पूरी दुनिया की साझा कहानी बन चुकी है , सहजता, समानता और आत्मविश्वास की कहानी।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
इन दिनों न्यूयार्क से
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