Monday, 29 December 2025

ऐतिहासिक बलिदान की स्मृति एवं समकालीन प्रासंगिकता

 ऐतिहासिक बलिदान की स्मृति एवं समकालीन प्रासंगिकता


विवेक रंजन श्रीवास्तव 


भारतीय इतिहास एवं राष्ट्रीय स्मृति में 26 दिसंबर की तिथि एक ऐसे बलिदान की गवाह है, जिसे अब वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह दिवस सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के दो नन्हें साहिबजादों , साहिबजादा जोरावर सिंह (लगभग 9 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह (लगभग 6 वर्ष) की अद्वितीय शहादत को समर्पित है। उनका बलिदान केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, अटल साहस और नैतिक दृढ़ता के मूल्यों का  स्थायी प्रतीक है, जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही अक्षुण्ण है।


वीर बाल दिवस की ऐतिहासिक जड़ें 17वीं शताब्दी के उस संघर्षपूर्ण दौर में हैं, जब गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ मुगल सत्ता के अत्याचारों का प्रतिरोध कर रहा था। वर्ष 1705 में, आनंदपुर साहिब से निकलते समय गुरु परिवार बिछड़ गया। दोनों छोटे साहिबजादे अपनी दादी माता गुजरी के साथ विश्वासघाती सेवक गंगू द्वारा पकड़वा दिए गए और सरहिंद के नवाब वजीर खान के हवाले कर दिए गए। नवाब ने उन पर जबरन धर्म परिवर्तन का भारी दबाव डाला, परंतु इतनी छोटी आयु में भी उन बालकों ने किसी भी प्रलोभन या भय के आगे झुकने से स्पष्ट इनकार कर दिया। उनकी इस अडिग नैतिक दृढ़ता से क्रोधित होकर, नवाब वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों नन्हें साहिबजादों को जीवित दीवार में चिनवा देने का आदेश दिया, जिससे उन्होंने धर्म एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। 

इस घटना ने भारत के इतिहास में आस्था और साहस की एक अमिट वीर गाथा लिख दी।


इस ऐतिहासिक बलिदान को राष्ट्रीय स्मृति का एक अभिन्न अंग बनाने की दिशा में सदियों बाद , एक महत्वपूर्ण कदम 9 जनवरी, 2022 को उठाया गया। गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 26 दिसंबर का दिन अब ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। इस घोषणा का उद्देश्य सिर्फ अतीत को याद करना नहीं, बल्कि साहिबजादों के अद्वितीय साहस और बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करना था। इस प्रकार, एक गहन ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्मृति को एक व्यापक राष्ट्रीय संदर्भ प्रदान किया गया, जो भारत की सामूहिक ऐतिहासिक चेतना का हिस्सा बन गया। इस निर्णय में राजनीति भी ढूंढने की कोशिश हुई ,  पर वीर बालकों की शहादत को जो महत्व आजादी के तुरंत बाद दिया जाना चाहिए था , वह अंततोगत्वा अब दिया जा रहा है।


वीर बाल दिवस की समकालीन प्रासंगिकता इसके उत्सव के स्वरूप में स्पष्ट झलकती है, जो केवल शोक या स्मरण तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सक्रिय, भविष्योन्मुखी एवं प्रेरक आयोजन है। इस दिन का केंद्रीय आयोजन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं भाग लेते हैं एवं देशवासियों, विशेषकर युवाओं को संबोधित करते हैं। इस अवसर पर प्रदान किया जाने वाला ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ (PMRBP) ऐतिहासिक बलिदान और समकालीन उपलब्धि के बीच एक सार्थक सेतु का काम करता है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार, 5 से 18 वर्ष की आयु के उन बच्चों को दिया जाता है, जिन्होंने वीरता, खेल, समाज सेवा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण तथा कला एवं संस्कृति जैसे विविध क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धि हासिल की है। यह पुरस्कार इस सिद्धांत को मूर्त रूप देता है कि साहस एवं उत्कृष्टता की कोई आयु नहीं होती।


देशभर में इस दिन का स्मरण एक जीवंत एवं सहभागी अनुभव बनता है। स्कूलों, कॉलेजों एवं शैक्षणिक संस्थानों में निबंध लेखन, वाद-विवाद, क्विज़, कहानी सुनाने, पोस्टर निर्माण और सांस्कृतिक प्रदर्शन जैसी अनेक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ, कीर्तन एवं शहादत की कथाओं का आयोजन होता है। इन सभी आयोजनों का केंद्रीय लक्ष्य केवल इतिहास का पाठ नहीं, बल्कि ऐतिहासिक बलिदान को समकालीन नागरिक मूल्यों, जैसे निडरता, नैतिक बल, कर्तव्यनिष्ठा एवं धार्मिक सहिष्णुता, से जोड़ना है। इस प्रकार, वीर बाल दिवस अतीत की गाथा को वर्तमान की प्रेरणा में रूपांतरित कर देता है।


वीर बाल दिवस भारतीय इतिहास चेतना की उस गहरी परत को उद्घाटित करता है, जहाँ बलिदान राष्ट्र निर्माण की एक मूलभूत इकाई बन जाता है। साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह का बलिदान उन मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, जो किसी भी युग में अपनी प्रासंगिकता नहीं खोते। 2022 में इसकी आधिकारिक घोषणा ने इस कथा को एक राष्ट्रीय संवाद का विषय बना दिया। आज, यह दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि सिद्धांतों के प्रति निष्ठा, अन्याय के प्रति प्रतिरोध और धर्म के प्रति अटल आस्था की भावना ही किसी राष्ट्र की वास्तविक शक्ति होती है। साथ ही, यह दिवस भविष्य के निर्माण में युवा शक्ति के महत्व को रेखांकित कर, एक प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण के संकल्प का भी द्योतक है। इस अर्थ में, वीर बाल दिवस केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि एक सजग चेतना का नाम है, जो अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान को गढ़ने तथा भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने का संकल्प दोहराता है।


विवेक रंजन श्रीवास्तव 

न्यूयॉर्क

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