वैश्विक आतंकवाद: साए में छिपा खतरा
विवेक रंजन श्रीवास्तव
आतंकवाद आज दुनिया का सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। डेटा बताते हैं कि ज्यादातर बड़ी आतंकी घटनाओं का तार एक ही धर्म, चरमपंथ से जुड़ता दिखता है, और ये घटनाएं अक्सर पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक जैसे देशों से लिंक होती हैं। इन घटनाओं के इतिहास, जांच रिपोर्टों, दुनिया की आतंक-विरोधी पहल और भारत की जीरो टॉलरेंस नीति का विस्तार से विश्लेषण करें
, तो हम देखते हैं कि आतंकी घटनाओं का काला इतिहास
दोहराव से बचाना है तो विश्व को समग्र पहल करना जरूरी है।
आतंकवाद का वैश्विक इतिहास 21वीं सदी में इस्लामिक समूहों के वर्चस्व वाला है। 2001 का अमेरिका में 9/11 हमला, जिसमें अल-कायदा ने अमेरिका पर 2977 लोगों की हत्या की, ने दुनिया को हिला दिया। उसी तरह 2008 का मुंबई 26/11 हमला, जहां लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने 175 निर्दोषों को मार डाला, पाकिस्तान से सीधा कनेक्शन दिखाता है। 2005 का 7/7 लंदन बम धमाका (52 मृत्यु), 2015 का पेरिस बैटाक्लान (130 मृत्यु, आईएसआईएस), और 2014 का पेशावर स्कूल हमला (140 बच्चे मारे गए, तालिबान) जैसी घटनाएं इस पैटर्न को सबूत सहित मजबूत करती हैं। आंकड़े बताते हैं कि 85% ऐसी घटनाएं मुस्लिम बहुल देशों में हुईं, हालांकि गैर-इस्लामिक उदाहरण जैसे कांगो में लॉर्ड्स रेसिस्टेंस आर्मी या इंडोनेशिया में क्रिश्चियन मिलिटेंट्स भी हैं, लेकिन संख्या में बहुत कम। स्पष्ट आंकड़े हैं कि दुनिया भर में समाज में ड्रग्स , आपराधिक व्यवसाय से आजीविका कमाने में भी इसी धर्म जाति वर्ग के लोग बहुतायत में हैं। अतः ऐसे वर्ग के मूल सिद्धांत, संस्कृति, संस्कारों पर सुधार के आधार भूत कार्य आवश्यक हो चले हैं। उन्हें आजादी के नाम पर गलत दिशा में बढ़ने देना उनकी पीढ़ियों के प्रति नैसर्गिक अन्याय ही समझ आता है।
अपराधों, आतंकी घटनाओं की जांच रिपोर्टों से निकली सच्चाई
राज्य प्रायोजित आतंकी समर्थन को उजागर करती हैं। मुंबई 26/11 की जांच में डेविड हेडली ने पाक आईएसआई और लश्कर की साजिश खोली, लेकिन दोषियों को सजा मिलना मुश्किल रहा। 9/11 आयोग ने ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा को जिम्मेदार ठहराया, जबकि पेरिस हमलों की रिपोर्ट आईएसआईएस के वैश्विक नेटवर्क से जोड़ती है। ये रिपोर्टें पाकिस्तान जैसे देशों को आतंकी फैक्ट्री बताती हैं, जहां राजनीतिक दबाव से न्याय अधर में लटक जाता है।
विश्व समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में काउंटर-टेररिज्म स्ट्रैटेजी (2006) अपनाई, जो रोकथाम, क्षमता निर्माण, कानूनी कार्रवाई और मानवाधिकार पर आधारित है। यूएनएससी रेजोल्यूशन, सीटीआईटीएफ और आईएमओ जैसे संगठन वित्तीय ट्रैकिंग व समुद्री सुरक्षा पर काम करते हैं। लेकिन ये प्रयास इस्लामिक चरमपंथ पर ज्यादा फोकस्ड हैं, जबकि गैर-राज्य समूहों की विविधता को नजरअंदाज करने से चुनौतियां बनी रहती हैं।
भारत की आतंक पर जीरो टॉलरेंस नीति आक्रामक कदम है। मोदी सरकार में आतंक पर शून्य सहनशीलता अपनाई, एनआईए को मजबूत कर जम्मू-कश्मीर में फंडिंग रोकी। 2025 का ऑपरेशन सिंदूर, जहां पाकिस्तानी कैंपों पर हवाई हमले कर लश्कर, जैश और हिजबुल को ध्वस्त किया, इसकी मिसाल है। सर्जिकल स्ट्राइक्स और इंडस वाटर संधि निलंबन जैसे कदम पाकिस्तान को सबक सिखाते हैं, जो वैश्विक समर्थन पा रहे हैं। पर क्या परिणाम संतोषजनक हैं?
समीक्षात्मक नजरिया: कारण और भविष्य..
आतंक का एक धर्म से लिंक नजर आता है, यह आंकड़ों से साफ है, लेकिन जड़ें भू-राजनीति, गरीबी और सरकारी या मिलिट्री के समर्थन में हैं। भारत की नीति सफल रही, पर वैश्विक प्रयासों में समन्वय की कमी है। सभी विचारधाराओं पर संतुलित फोकस जरूरी, वरना पूर्वाग्रह पनपेगा। यह खतरा तब तक रहेगा, जब तक अपराध , ड्रग्स , आतंक के स्रोत देशों पर वैश्विक दबाव न बने , और उन धर्मों के मूल्यों , उनकी सोच , उनकी शिक्षा में सही तब्दीली नहीं होती।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
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